Book Title: Jain Bhajan Sangraha
Author(s): ZZZ Unknown
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 59
________________ मोक्ष के प्रेमी हमने कर्मो से लढते देखे मोक्ष के प्रेमी हमने कर्मो से लढते देखे। मखमल मे सोनेवाले, भुमि पे गिरते देखे ॥ सरसोंका दान जिसको, बिस्तर पर चुबता था। काया की सुध नही, गीधड तन खाते देखे ॥मोक्षके प्रेमी।।1 पारसनाथ स्वामी, उसही भव मोक्षगामी। कर्मो ने नही कवट्या पत्थरतक गिरते देखे ॥मोक्षके प्रेम।।2 सुदर्शन शेठ प्यारा, राणीने फंदा डाला। शील को नही भंगा, शुलीपे चढते देखे।मोक्ष के प्रेमी॥3 बौध्द का जब जोर था, निष्कलंक देव देखे। धर्म को नही छोडा, मस्तक तककटते देखे ॥मोक्षके प्रेमी॥4 भोगों को त्यागो चेतन, जीवन तो बीता जाये। आशा ना पुरी होई मरघट मे जाते देखे।मोक्षके प्रेम हमने कर्मोसे लढते देखे।।5 59

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