Book Title: Jain Bhajan Sangraha
Author(s): ZZZ Unknown
Publisher: ZZZ Unknown

View full book text
Previous | Next

Page 36
________________ सजे होठ पर सबके खुशिया, रहेना जग मैं कोई दुखिया | गाये सब जन गीत प्यार का, दर्शन होवे मुक्ति द्वार का || पारस प्रभु चरनन चित लाये, जो पारस इकतीस गाये | उसकी हर मंशा हो पूरी प्रभु से रहे न उसकी दुरी || पास प्रभु के द्वार पर, खड़ा झुकाकर शीश | हरो पीर मन की प्रभु, दो मंगल आशीष || ___ जैसा हु वैसा प्रभु, हु तेरा ही दास | चन्द्र चरण की शरण मैं, एक तुम्हारी आस || मैं अनाथ पर नाथ तू, रखना मुझ पर हाथ | स्वीकारो मुझ पतित को, प्रभु पारसनाथ || 36

Loading...

Page Navigation
1 ... 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78