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धर्मामृत
राग कौशिया-तीन ताल राम राम सब जगही माने,
राम राम को रूपं न जाने || रा०॥टेक॥ कवण राम कुण नगरी वासो
कहांसे आयो किहां भयो वासो॥रा० ॥ राम राम सहु जगमें व्यापी,
राम विना है कैसे आलोपी । २ ॥
राम विना हे जंगलवासा, · पाछे कोइ जाकीन करे आसा॥रा०३ ॥
राम हि राजा राम हि राणी, __ राम राम हि हैरो तानि । ४ ॥ रटन करत हे कवन रामको,
कैसो रूप बतावो वाको ॥ रा० ५ ॥ जे केइ वाको रूप बतावे,
ते हि ज साचो मुज मन भावे । ६ ॥ • सो निधि चारित ज्ञानानंदे,
जाने आपनो राम आनंदे ॥रा० ७॥