Book Title: Bhajansangraha Dharmamrut
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Goleccha Prakashan Mandir

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Page 249
________________ अणभे " वर्तिः गात्रानुलेपिन्यां दगायां दीपकस्य च । दीपे भेषज निर्माण - नयनाञ्जनलेखयोः ॥ १९० ॥ (हैम अनेकार्थ संग्रह द्वितीय कांड ) अर्थात् वर्ति - १ अगरवाट, २ दीपकी वाट, ३ दीप, ४ ओषध की वाट और आंख में आंजने की वाट । २४८. अणभे-भयरहित - अभय - अभयदशा प्राप्त होने पर । सं०-न+भय - अभय प्रा० अणभय- अणभइ - अणभे । २४९. ताळु-ताला सं० तालकम्–प्रा०-तालअं - तालउं - तालुं - तालुं । "द्वारयंत्रं तु तालकम्”– (हैमअभिधान चिंतामणि ४ कांड श्लो० ७१) " द्वारपिधानाय लोहमयं यन्त्रं द्वारयन्त्रम्" - टीका) ' द्वारयंत्र ' - हार को ढकने के लिए लोहे का यंत्र और 'तालक' दोनों पर्याय शब्द है । प्रस्तुत 'तालक' शब्द अमरकोश में नहि है । भजन ९४ वां [२१५] गाथा ७ वीं का भाव चरण १- क्रोध को निकालना हो तो क्रोध के ही प्रति क्रोध करना चाहिए | चरण २ - अभिमान का नाश करना हो तो ' में सत्र से बडा दोन हुं ' ऐसा अभिमान रखना चाहिए ।

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