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विहानी
[१२७]] में होनेवाले रंगराग इत्यादि देखने से 'रजनी' शब्द रूढ नहि · किन्तु यौगिक-व्युत्पन्न-जान पड़ता है।
सं० रजनी-उसके उपर से प्रा० रयनी अथवा रयणीउसका परिणाम रयण, रयन अथवा रेण, रेन ।।
९. विहानी-प्रकाशयुक्त हुई-प्रातःकाल के रूप में हुई। संस्कृत-विभान प्रा० विहाण अथवा विहान-विहानी।।
'विभातायां विभावर्याम् ' वा 'प्रभातायां शर्वर्याम्' के संस्कृत वाक्यो में 'विभात' वा 'प्रभात' शब्द का जो अर्थ । है वही अर्थ प्रस्तुत 'विहानी' का है। विहानी माने प्रकाशित । ‘रयन विहानी' अर्थात् प्रकाशित रात्रि-प्रातःकाल के रूप में परिणत रात्रि ।
आचार्य हेमचंद्र अपनी देशीनाममाला में लिखते हैं कि-" विहि-गोसेसु विहाणो "-(वर्ग ७, गा० ९० ) अर्थात् 'विहाण' शब्द 'विधि' के और गोस-प्रातःकाल के अर्थ में व्यवहृत है । विचार करने से प्रतीत होता है कि 'विधि' अर्थ के 'विहाग' की और 'प्रातःकाल' अर्थ के 'विहाग' की व्युत्पत्ति सर्वथा भिन्न भिन्न है। 'विधि' अर्थवाला 'विहाण' संस्कृत 'विधान' शब्द से आया हुआ है। 'विधि' और 'विधान' में धातु भी एक ही है और उन दोनों का अर्थ प्रायः समान होता है : सं. विधान प्रा० विहाण-विधि ।