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धर्मामृत ' . 'प्रभात' अर्थवाची ‘विहाण' शब्द तो 'वि+भा' धातु से बनता है । 'भा' धातु का अर्थ है दीपना-प्रकाशना । वि+मा+न-विभान प्रा० विहाण। यह 'विहाण' शब्द 'प्रभात' का पर्याय है। जो धातु 'प्रभात' और 'विभात' में है वही धातु प्रस्तुत 'विहाण' में है। प्रचलित हिंदी में 'बिहान' शब्द का ठीक प्रचार है। हिंदीमें 'व' और 'ब' में ' विशेष भेद नहि है। उक्त व्युत्पत्ति देखने से प्रतीत होता है कि 'विहाण' शब्द व्युत्पन्न है परन्तु संस्कृत साहित्य में 'प्रभात' अर्थ में 'विभान' शब्द का प्रचार विरल होने से आचार्य हेमचन्द्र ने प्रस्तुत व्युत्पन्न 'विहाण' शब्द को भी देश्य में परिगणित किया है। संस्कृत कोशो में 'प्रभात' अर्थवाला — विभात' शब्द तो पाया जाता है: "प्रभातं स्याद् अहर्मुखम् । व्युष्टं विभातं प्रत्यूषम् "-इत्यादि । (हैम अभिधान चिंतामणि कांड २, श्लो० ५२-५३ )।
'प्रहाणम्' 'विहीनम्' इत्यादि प्रयोगो में भूतकृदन्त के 'त' का 'न' होता है इसी प्रकार 'विभात' में भी 'त' का 'न' होकर 'विहाण' शब्द वनता है। संस्कृत प्रयोगो में 'त' का 'न' सार्वत्रिक नहि है परन्तु छांदस प्रयोगों में किसी प्रकार का नियत विधान प्रायः कम चलता है इस हेतु से संस्कृत का 'त' के 'न' का नियत विधान
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