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धर्मामृत
भजन ९ वां ५१. सूना-शून्य-खाली। सं० शून्य-प्रा० सुन्न । 'सुन्न' से सूना । गुज० सूनुं । ५२. चूनियो-चूना-बंधाया।
सं० 'चिनोति' के 'चिनो' उपर से प्रा. 'चिण' धातु आया है। 'चिण' का भूतकृदंत 'चिणि'। 'चिणिअ में आध स्वर का परि-र्तन होने से 'चुणि'। 'चुणि' से 'चुनियो'
और 'चिणिअ' से चण्यो (गुज०) हिंदी का 'चुनना और गुजराती के 'चणवु क्रियापद का का मूल धातु
. ५३. एह-ए। ___ सं० एषः-प्रा. एस । 'एस' उपर से 'एह' वा 'ए' दोनों । रूप आते हैं।
भजन १० वां ५४. सवगत-सर्वव्यापक
सं० सर्वगत-प्रा० सव्वगत-सवगअ । प्रा० 'सव्वगत' से 'सबगत' पद आया है।
५५. जाने-जाने-समजे सं० जानाति-प्रा० .जाणइ-जाणे ।
-समजे। जानइ-जाने