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धर्मामृत कल्पना मात्र है। पीछे से तो 'शृङ्गार' का अर्थ ही 'सुरत' हो गयाः " शृङ्गारो गजमण्डने ॥६०७॥ सुरते रसभेदे च "(हैम अनेकार्थ संग्रह) अर्थात् शृंगार माने गज का आभूषण, सुरत-मैथुन और श्रृंगाररस ।
दूसरी कल्पना-'शृङ्गार' का सम्बन्ध 'शृङ्ग' से नहि और 'श्री' धातु से भी नहि । संस्कृत 'संस्कार' शब्द है । उसका . 'संखार' रूप तो पालीपिटको में और जैनआगमोमें सुप्रतीत है। 'संखार' से 'संगार' वा 'सिंगार' होना कठिन नहि मालूम होता। अर्थ का भी सम्बन्ध घट सकता है। परन्तु प्रस्तुत कल्पनाद्वय का संवाद नहि इसलिए अभी तो कल्पनामात्र है । 'संस्कार' का अर्थ इस प्रकार है:-"संस्कारः प्रतियत्नेऽनुभवे मानसकर्मणि" (६१०-हैमअनेकार्थ संग्रह ) संस्कार माने प्रतियत्न, अनुभव और मनोव्यापार ।
भजन ३८ वां १४६. उलटपलट-सव तरफ से-इधर से और उधर से । . देशीनाममाला में 'अल्लडपल्लट्ट' शब्द आता है। "अल्लडपल्लर्टी अंगपरिवत्ते"-(वर्ग १ गाथा ४८.) 'अल्टपल्ट' माने शरीर को इधर से उधर और उधर से इधर परिवर्तित करना । सम्भव है कि प्रस्तुत 'स्लटपलट' शब्द का देश्य 'अल्लडपल्लट्ट' से सम्बन्ध हो । मात्र भजन के 'उलटपलट' शब्द का अर्थ व्यापक