Book Title: Bhajansangraha Dharmamrut
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Goleccha Prakashan Mandir

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Page 235
________________ पर्यो [२०१] सं० नालिका-नारिआ-नार । सुरसरि-सुरसरित्-गंगा। . १९४. पर्यो-पडा . सं० पतितः-प्रा० पडिओ-परिओ-पर्यो । देखो 'परना' का टिप्पण। १९५. वधिक-कसाई सं० 'वधिक' वा 'वधक' । भजन ७४ वां १९६ सेमर-सेमर का वृक्ष । सं० शाल्मल-प्रा० सम्मल-सम्मर-मर । भजन ७५ वां १९७. औगुन-अवगुण . । अवगुण-ओगुण-ओगुन । - सं० अपगुण १९८. घरी-घडो सं० घटिका-प्रा० घडिा-घड़ी-घरी । वस्तुतः 'घटी' शब्द 'लघु घडा' को दर्शाता है पान्न सच्छिद्र घटकी जललवण का वालकापतन की क्रिया में कालज्ञान होता है इसलिए 'घटी' दाब्द भी कालवाची हो गया है। and 1 द

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