________________
विनयविजय
(३४)
राग बिहागडो
मन न काहु के वश मन कीए सब वश, मन की सो गति जाने या को मन वश हे ॥ १ ॥
पढो हो बहुत पाठ तप करो जैने पाहार, मन वश कीए बिनु तप जप बश हे ॥ २ ॥
काहेकुं फीरे हे मन काहु न पावेगो चेन, विषय के उमंग रंग कछु न दुरस हे ॥ ३ ॥ सोऊ ज्ञानी सोऊ ध्यानी सोउ मेरे जीया प्रानी, जिने मन वश कियो वाहिको सुजा हे ॥ ४ ॥ विनय कहे सौ धनु याको मनु छिन् छिन्, सांइसाइ सांसां सांइसें तिरस हे ॥ ५ ॥
[३७]