Book Title: Bhajansangraha Dharmamrut
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Goleccha Prakashan Mandir

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Page 207
________________ धरम [१७३ ] १००. धरम - शुकल धर्मध्यान और शुक्लध्यान ये दो ध्यान जैन प्रवचन में प्रसिद्ध है । १०१. कनदोरो -कटीका दोरा-धागा--कटीका भूषण । कटीदवर - कढीदवर - कडीदोर - कनदोर - कंदोर | 'कटीदवर' में 'कटी' शब्द संस्कृत है और ' दवर' शब्द 'धागे' के अर्थ में देश्य प्राकृत है । " दवरो तन्तुः " - ( देशोनाममाला वर्ग ५ गा० ३५ ) 'दवर' शब्द का मूल समज में नहि आता । कटयाः दवरो कटीदवरो-कटीका डोरा | अमरकोश का टीकाकार महेश्वर लिखता है कि " शृङ्खलम्' इति एकं कटिभूषणस्य 'कडदोरा' इति ख्यातस्य " - ( अमरकोश टीका पृ० १५८ श्लो० १०७ ) अर्थात् “पुरुष के कटिभूपण के लिए 'शृङ्खल' (गू० सांकळी ) शब्द है जिसको भाषा में 'कडदोरा ' कहते हैं " महेश्वर के उपर्युक्त उल्लेख से प्रतीत होता है कि (गुज०) 'कंदोरो' का मूल 'कडदोरो' शब्द है 'कनकदारो' नहि । प्रस्तुत 'कडदोरा', पुरुष की कटीका आभूषण है, त्री की कटीका नहि यह ख्याल में रहे । भजनकार ने 'कनदोरो' के स्थान में 'शम' की कल्पना की है अर्थात् योगियों का कंदोरा 'शम' है । १०२ कोपीन - लंगोट सं० कौपीन - प्रा० कोपीन ।

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