Book Title: Bhajansangraha Dharmamrut
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Goleccha Prakashan Mandir

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Page 236
________________ [२०२] भजन ७६ वां १९९. सलोना - नमकीन - लवणवाला | सं० सलवण - प्रा० - सलउण - सलोण - सलोना | २००. रोना- रुदन करना । सं० रोदन - प्रा० रोअण - रोअन - रोना । भजन ७७ वां २०१. ठाढे - खडे सं०- स्तब्धः- प्रा० ठड्ढे - ठाढे | भजन ७८ वां धर्मामृत २०२. हाड - हड्डी । सं०-अस्थि-प्रा० अट्ठि-अड्डि- हड्डि - हाड - हाडकुं । जिस तरह ' ओष्ठ' का 'होठ' हो गया है उसी प्रकार ‘अस्थि' का ‘हड्ड' हुआ है । स्वरस्थानीय 'ह' महाप्राण नहि है यह ख्याल में रहें । देशीनाममाला में भी 'हड्डं अट्ठिम्मि' - ( वर्ग ८ गाथा ५९ ) कह कर 'हड्ड' शब्द को देश्य बताया है परंतु 'हड्ड' शब्द भी 'अस्थि' प्रकृतिक है । २०३. पोली - पूला । 1 " "पूल' संघाते " ("पूली तृणोच्चयः " धातुपारायण भ्वादिगण अंक ४२६ ) धातु से 'पोली' शब्द बना है । पूली माने घास का समूह - पूला ।

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