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विनयविजय
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राग आशावरी-तीन ताल नोगी एसा होय फलं, परम पुरुष शुं प्रीत करं ओरसें
प्रीत हरु ॥१॥ निर्विषय की मुद्रा पहेरुं, माला फोराउं मेरा मनकी । म्यान ध्यान की लाठी पकरुं, भभूत चढाउं प्रभु गुनको ॥२॥ शील संतोष की कथा पहेलं, विषय जलावु धूणी । पांचुं चोर पेरें करी पकरुं, तो दिलमें न होय चोरी हुणी ॥३॥ खबर लेउं में खिजमत तेरी, शब्द सींगी बजाउं । घट अंतर निरंजन बेठे, वासुं लय लगाउं ॥४॥ मेरे सुगुरुने उपदेश दिया है, निरमल जोग बतायो । विनय कहे में उनकुं ध्याऊं, जिने शुद्ध मारग दिखायो ।।५।।