Book Title: Bhajansangraha Dharmamrut
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Goleccha Prakashan Mandir

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Page 241
________________ 'मही _[२०७] तथा 'बगडवू' (गुज०) क्रियापद का मूल 'विघड' धातु में है। अथवा सं० 'कृत' के स्थान में अनेक जगह प्रा० 'कड' प्रयोग आता है। 'कड' को 'वि' पूर्व करने से और 'क' का “ग' करने से 'विगड' शब्द होता है। प्रस्तुत 'विगड से भी “बिगडना, बगडच्यु' और 'बगडq का होना संभवित है और अर्थमें भी कोई क्षति नहि । 'विगड' माने विकृत-विकार प्राप्त -बिगड गया। २२४. मही-दही। संस्कृत के कोशोमें 'गो' के पर्यायोमें 'माहेयी' और 'माहा' शब्द आते हैं। जिस प्रकार 'गव्य' शब्द से दूध, दही और घी का बोध होता है उसी प्रकार 'माहेय' शब्द ले दूध और दही का बोध होता है। क्यों कि 'माहेय' का मूल 'माहेयी' और "माही' शब्द है तथा उनका अर्थ 'गाया है। माहेव्याः इदम् अथवा माहाया इदम् 'माहेयम्' । प्रस्तुत 'महो' शब्द की मूल प्रकृति. 'माहेय' शब्द है। दूध वेचनेवाली को 'महियारी' कहते हैं। क्योंकि 'महियारो' शब्द का भी संबंध उक्त 'माहेयी' या 'माहा' से है। जो 'माहेयी' वा 'माही को पालती है-चगनी है वह 'महियारी एसा भाव 'महियारी' शब्दमें होना चाहिए। "माहेयी सौरभेयी गौ:"-(अमरकोश वैश्य वर्ग कां. २

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