________________
[१८६]
धर्मामृत आने से और '' का 'व' हो जाने से पावडी । 'पावडी' से भी फिर स्वार्थिक 'ल' आने से 'पावडली' बन जाता है ।
१३६. साचो-संचय करो-एकठा करो ।
'सं+चि' उपर से 'संच (गुज०) प्रस्तुत 'साचा का मूल 'संचि' धातु में है। 'संचो' क्रिया का मूल भी 'संचि' है।
१३७. गोर-अभिमान । सं० गौरव-प्रा० गोरव 'गोरव' से गोर । ११३८. अंगिटी-आग रखने की हण्डिया ।
सं० 'अग्निष्ठ' प्रा० अग्गिटू । 'अग्गि' से 'अंगिठी' शब्द आया है।
जिसमें आग रक्खी जाती है उसका नाम 'अग्निष्ठ' है । 'अग्निष्ठ'' शब्द की सिद्धि व्याकरण प्रतीत है। देखो हैम व्याकरण २-३-७० सूत्र । पाणनीय व्याकरण ८-३-९७ सूत्र |
भजन ३६ वां १३९. लाठी-लाठी-लकडी सं० यष्टि-लद्धि-लाठी। १४०, पकरूं-पकडं-धर रक्खं
सं० प्रकृष्ट प्रा० पकड्ड । संभव है कि 'पकड्ड' से 'पकडना' और गूजराती 'पक़डवु' पद नीकला हो । 'प्रकृष्ट' माने अतिशय खींचा हुआ-जोरसे धरा हुआ । 'पकडना' और 'प्रकृष्ट' के