Book Title: Anuttaropapatikdasha Sutram
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Jain Shastramala Karyalay

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Page 30
________________ द्वितीयो वर्ग: जति णं भंते ! समणेणं जाव संपत्तेणं अणुत्तरोववाइयदसाणं पढमस्स वग्गस्स अयमढे पण्णत्ते, दोच्चस्स णं भंते ! वग्गस्स अणुत्तरोववाइयदसाणं समणेणं जाव संपत्तेणं के अद्वे पण्णत्ते? एवं खलु जंबू ! समणेणं जाव संपत्तेणं दोच्चस्स वग्गस्स अणुत्तरोववाइयदसाणं तेरस अज्झयणा पण्णत्ता, तं जहा—(१) दीहसेणे (२) महासेणे (३) लट्ठदंते य (४) गूढदंते य (५) सुद्धदंते (६) हल्ले(७) दुमे (८) दुमसेणे (९)महादुमसेणे (१०) आहिते सीहे य (११) सीहसेणेय (१२) महासीहसेणे य आहिते (१३) पुन्नसेणे य बोद्धव्वे तेरसमे होति अज्झयणे। यदि नु भदन्त ! श्रमणेन यावत्संप्राप्तेनानुत्तरोपपातिक दशानां प्रथमस्य वर्गस्यायमर्थः प्रज्ञप्तः, द्वितीयस्य नु भदन्त ! वर्गस्यानुत्तरोपपातिक-दशानां श्रमणेन यावत्संप्राप्तेन कोऽर्थः

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