Book Title: Anuttaropapatikdasha Sutram
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Jain Shastramala Karyalay

View full book text
Previous | Next

Page 45
________________ तृतीय वर्गः ] भापाटीकासहितम् । [ ३९ ही दिन उनका पाणिग्रहण कराया। उनके साथ बत्तीस (ढास, दासी और धनधान्य से युक्त) दहेज याये । तदनन्तर धन्य कुमार अनेक प्रकार के मृदङ्ग आदि बाघों की ध्वनि से गुञ्जिन प्रासादों के ऊपर पञ्चविध सांसारिक सुखों का अनुभव करते हुए विचरण करने लगा । टीका उक्त सूत्र में धन्य कुमार के बालकपन, विद्याध्ययन, विवाह - संस्कार और सांसारिक सुखों के अनुभव के विषय में कथन किया गया है । यह सब वर्णन 'ज्ञातासूत्र' के प्रथम अथवा पाचवे अध्ययन के साथ मिलता है । कहने की आवश्यकता नहीं कि पाठकों को बही से इसका बोध करना चाहिए | -- अब सूत्रकार धन्य कुमार के बोध के विषय में कहते है : तणं कालेणं तेणं समरणं भगवं महावीरे समोसढे, परिसा निग्गया, जहा कोणितो तहा जियसत्तू निग्गतो तते पणं तस्स धन्नस्म तं महता जहा जमाली तहा निग्गतो, नवरं पायचारेणं जाव जं नवरं अम्मयं भद्दं सत्थवाहिं आपुच्छामि । तते णं अहं देवाणुप्पियाणं अंतिते जाव पव्वयामि । जाव जहा जमाली तहा आपुच्छइ । सुच्छिया, वृत्त पडिवृत्तया जहा महव्वले जाव जाहे णो संचारति जहा थावच्चापुत्तो जियसत्तुं आपुच्छति । छत्त चामरातो सयमेव जितसत्तू णिक्खमणं करेति । जहा थावच्चापुत्तस्स कण्हो जाव पव्वतिते ० अणगारे जाते ईरियासमिते जाव भयारी । तस्मिन् काले तस्मिन् समये श्रमणो भगवान् महावीरः समवसृतः, परिपन्निर्गता, यथा कूणितस्तथा जितशत्रुर्निर्गतः ।

Loading...

Page Navigation
1 ... 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118