________________
१०
शब्दार्थ-कोष
पडिगए-चला गया
। की पडिगओ-चला गया
६० पब्वतिते-प्रव्रजित हुआ ३६, ४२, ८६ पडिगता-चली गई
६० पब्वयामि-प्रव्रजित होता हूँ, दीक्षा ग्रहण पडिगया चली गई ७२ करता हूँ
३६ पडिगाहेति ग्रहण करता है
४६ | पव्वाय-वदण-कमले जिसका कमलरूपी । पडिग्गहित्तते ग्रहण करने के लिए ४२
मुख मुरझा गया था पडिणिक्खमति-बाहर निकलता है ४६,४६ पाउणित्ता-पालन कर
१२,१३ पडिदसेति-दिखाता है
४६ पाउन्भूते-प्रकट हुआ पडिवंधं-प्रतिबन्ध, विन, देरी ४२ | पांसुलि-कडएहिं पसलियों की पंक्ति से ६७ पढम-छठ्ठ-क्खमण पारणगंसि-पहले पांसुलिय-कडाणं पार्श्वभाग की अस्थियों -
पष्ठ व्रत (वेले) के पारण में ४५ । (हड्डियों ) के कटकों की पढमस्स-पहले ८१, ११,२०,२४,३४,८१ पाणं पानी पढमाए-पहली
४५ | पाणावली-पाण-एक प्रकार के वर्तनों पढमे पहले (अध्ययन) में
२० की पक्ति पण्णग-भूतेणं सर्प के समान ४६ | पाणिं हाथ पएण(न)त्ता प्रतिपादन किये हैं ८, ११, पात-जघोरुण-पैर, जड्डा और ऊरुओं से ६७ १३, २६, ३२,८०, ११ पादाणं-पैरों की
५१, ७२ पएण(न)त्ते प्रतिपादन किया है, कहा है।
पाभातिय-तारिगा-प्रातःकाल का तारा ६४ ३२, ११, २०, २४, २७२, ३२२,
पायंगुलियाणं-पैरों की अँगुलियों की ५१
३४,८१, ६५ पायगलियातो-पैरों की अँगलियाँ ५१ पण्णा(ना)यंति-पहचाने जाते हैं ५१, ६४
पाय-चारेण पैदल पत्त-चीवराई-पात्र और वस्त्रों को १३
पाया पैर पयययाए=अधिक यन वाली ४५ पारणयंसि-पारण करने पर, पारण के परिनिव्वाण-वत्तियं-परिनिर्वाण प्रत्य
समय
४२ , किसी की मृत्यु के उपलक्ष्य में पासायवडि(डे)सए, ते श्रेष्ठ-सर्वोत्तम किया जाने वाला
१३ | महल में १२, ३७,३८, ७२, ८६ परियातो सयम-वृत्ति या साधु-वृत्ति का । पि-भी पालन
२७, ६०
पिटि-करंडग-संधीहि-पृष्ठ-करण्डक परिवसइ-रहती है (थी)
(पीठ के उन्नत प्रदेशों) की सन्धियो परिवसतित्रहता है
८६ से परिमा-परिपद्, श्रोतृ-गण ३,३६, ७१, पिटि-करंडयाणं-पीठ की हड़ियों के उन्नत
७२२,६० प्रदेशों की पलास-पत्ते-पलाश (ढाक) का पत्ता ५६,६१ पिट्टि-मवस्सिएणं-पीठ के साथ मिले हुए ६७ पबहने प्रत्रजित हुआ, माधु-वृत्ति धारण पिट्टि माइया पृष्टिमातृक कुमार
३६
४२