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२८]
अनुत्तरोपपातिकदशासूत्रम् । [द्वितीयों वर्गः द्रौ, वैजयन्ते द्वौ, जयन्ते द्वौ, अपराजिते द्वौ, शेषा महाद्रुमसेनादयः पञ्च सर्वार्थसिद्धे । एवं खल्लु जम्बु ! श्रमणेन० अनुत्तरोपपातिक-दशानां द्वितीयस्य वर्गस्यायमर्थः प्रज्ञप्तः । मासिक्या संलेखनया द्वयोरपि वर्गयोः (सूत्र २)
पदार्थान्वयः-भंते-हे भगवन् । णं-वाक्यालङ्कार के लिए है जति-यदि जाव-यावत् संपत्तेणं-मोक्ष को प्राप्त हुए समणेणं-श्रमण भगवान् ने दोच्चस्सद्वितीय वग्गस्स-वर्ग अणुत्तरोववाइयदसायं-अनुत्तरोपपातिक-दशा के तेरस-तेरह अज्झयणा-अध्ययन पं0-प्रतिपादन किये हैं, तो भंते-हे भगवन् दोच्च०-द्वितीय वग्गस्स-वर्ग के पढमझयणस्स-प्रथमाध्ययन का सं०-मोक्ष को प्राप्त हुए सम०३श्रमण भगवान महावीर ने के-क्या अडे-अर्थ पं०-प्रतिपादन किया है जंबूहे जम्बू एवं खलु-इस प्रकार निश्चय से तेणं कालेणं-उस काल और तेणं समएणंउस समय रायगिहे-राजगृह णगरे-नगर गुणसिलते-गुणशैलक चेतिते-चैत्य सेणिए-श्रेणिक राया-राजा धारिणी देवी-और उसकी धारिणी देवी थी। सुमिणेस्वप्न मे सीहो-सिंह का दिखाई देना जहा-जिस प्रकार जाली-जालि कुमार के विपय मे कहा गया है तहा-उसी प्रकार जम्म-जन्म हुआ, उसी प्रकार बालत्तणंवाल-भाव रहा, उसी प्रकार कलातो-कलाओं का सीखना नवरं-विशेपता इतनी है कि दीहसेणे-दीर्घसेन कुमार इसका नाम रखा गया जहा- जैसी जालिस्स-जालि कुमार की वत्तव्यया-वक्तव्यता थी सच्चेव-दीर्घसेन कुमार की वैसी ही हुई। उसी प्रकार जाव-यावत् अंतं काहिति-अन्त करेगा, एवं इसी प्रकार तेरसवि-सब तेरह कुमारों के अध्ययनों के विपय मे जानना चाहिए अर्थात् वे भी रायगिहे-राजगृह नगर मे उत्पन्न हुए सेणियो-श्रेणिक राजा पिता-उनका पिता हुआ और धारिणी माता-धारिणी माता । तेरसण्हवि-तेरह के तेरह कुमारों ने सोलस-वासा-सोलह वर्प तक परियातो-संयम-पर्याय का पालन किया आणुपुवीए-अनुक्रम से दोन्निदो विजए-विजय विमान में उत्पन्न हुए, दोन्नि-दो वेजयंते-वैजयन्त विमान में दोन्नि-दो जयंते-जयन्त विमान में और दोन्नि-दो अपराजिते-अपराजित विमान मे गए । सेसा-रोय महामदुसेण माती-महामद्रुसेन आदि पंच-पाच साधु सबट्ठमिद्धे-सर्वार्थसिद्ध विमान मे उत्पन्न हुए । जंबू-हे जम्बू एवं खलु-इस