Book Title: Anuttaropapatikdasha Sutram
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Jain Shastramala Karyalay

View full book text
Previous | Next

Page 106
________________ शब्दार्थ-कोष उप्पि-ऊपर १२, ३८, ७२, ८६ | ओयरंति-उतरते हैं १३ उभड-घटामुहे-घड़े के मुख के समान ओरालेणं-उदार-प्रधान (तप से) विकराल मुख वाला ४६, ८०, ८६ उम्मुक-वालभावंबालकपन से अति- | कइ-कितने क्रान्त, जिसने बचपन छोड दिया है ३७ / कंक-जंघा कङ्क नाम पक्षी विशेष की उयरति-उतरते हैं ८० कंपण-वातिओ (विव) कम्पन-वातिक उर-कडग-देस-भाएणं वक्षस्थल (छाती) । रूपी चटाई के विभागों से ६७ रोग वाले व्यक्ति के समान ६७ | उर-कडयस्स-छाती की | कट्ट-कोलंवए-लकडी का कोलम्ब-पात्र विशेष उवसोमेमाणे-शोभायमान होता हुआ ६७ कट्ठ-पाउया लकड़ी की खड़ाऊँ उवयालि-उपजालि कुमार कडि-कडाहेणं-कटि (कमर) रूपी कटाह से ६७ उववजिहिंति उत्पन्न होगा कडि-पत्तस्स-कटि-पत्र की, कमर की ५५ उववरणे,न्ने उत्पन्न हुआ १३२,८०२,६१ कण्ण-कान उववायो-उपपात, उत्पत्ति उवसोमेमाणे-शोभायमान होता हुआ ७२ कण्णाणं-कानों की उवागच्छति-आता है कण्हो=कृष्ण वासुदेव ४५, ७३२ कतरे-कौनसा उवागते-आया कदाति कभी उव्वुड-णयणकोसे जिसकी ऑखें भीतर । धंस गई थी कन्नावली-कान के भूषणों की पङ्क्ति ५५ ऊरुस्स-ऊरुओं का कप्पति-उचित है, योग्य है ४२ ऊरू-दोनों ऊरु कप्पे-कल्प-सौधर्म आदि देवों के नाम एएसिं-इनके विपय में ___ वाले द्वीप और समुद्र १३ पकारस-ग्यारह १६,४६, कय-लक्खण-शुभ लक्षण वाला ७३ एग-दिवसेणं-एक ही दिन में कयाइ,ति-कदाचित्, कभी ४६,८०,६० एय-इस | करग-गीवा करवे (मिट्टी के छोटे से एयासवे इस प्रकार का ५१,५३२, ५५, ___पात्र ) की ग्रीवा अर्थात् गला ६१ एवं इस प्रकार ३,८, १२, १३, २०, करेति करते हैं २४, ३४, ४२, ५३, ६४, ७२, | करेति करता है ३६, ४५, ७३, ६१ ७३,८०,६६,६१,६४ करेह करो ४२ एवम्ही, निश्वयार्थ बोधक अव्यय ३६ | कल-संगलिया-कलाय-धान्य विरोप की एवामेव इमी प्रकार ५१२,५३, ५५, ५६, । फली ५६',६१, ६३, ६४ कलातो-कलाएँ २७, ३५ एसगाप-एपणा-समिति-उपयोगपूर्वक कलाय-संगलियाकलाय की फली ५९ आहार आदि की गवेपणा करने से ४५ | कहिं-कहाँ १३, ८०

Loading...

Page Navigation
1 ... 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118