Book Title: Anuttaropapatikdasha Sutram
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Jain Shastramala Karyalay

View full book text
Previous | Next

Page 64
________________ ५८ ] अनुत्तरोपपातिकदशासूत्रम् । [ तृतीयो वर्गः I या वूढे बैल का खुर हो । इसी प्रकार उनका उदर भी सूख गया था । उसकी सूख कर ऐसी हालत हो गई थी जैसी सूखी मशक, चने आदि भूनने के पात्र अथवा कोलम्ब नामक पात्र - विशेष की होती है । शुष्क आदि शब्दों की वृत्तिकार निम्नलिखित व्याख्या करते हैं : VA शुष्कः - शोपमुपगतो दृतिः - चर्ममयजलभाजनविशेषः । चणकादीनां भर्जनम् - पाकविशेपापादान तदर्थं यत्कभल्लम् - कपालं घटादिकर्परं तत्तथा । शाखि - शाखानामवनतमग्रं भाजनं वा कोलम्ब उच्यते काष्ठस्य कोलम्ब इव काष्ठकोलम्बः, परिदृश्यमानावनतहृदयास्थिकत्वात् । कहने का तात्पर्य यह है कि धन्य अनगार का उदर भी सूखकर उक्त वस्तुओं के समान बीच में खोखला जैसा प्रतीत होता था । इसी प्रकार उनकी पांसुलिएं भी सूखकर कांटा हो गई थी । उनको इस तरह गिना जा सकता था जैसे --दर्पण की पक्ति हो या गाय आदि पशुओं के चरने के पात्रों की पंक्ति अथवा उनके बाधने के कीलों की पंक्ति हो । उनमे मांस और रुधिर देखने को भी न था । यही दशा पृष्ठ- प्रदेशों की भी थी। उनमे भी मांस और रुधिर नहीं रह गया था और ऐसे प्रतीत होते थे मानो मुकुटों की, पाषाण के गोलकों की अथवा लाख आदि से बने हुए बच्चों के खिलौनों की पंक्ति खड़ी की हुई हो । उस तप के कारण धन्य अनगार के वक्ष:स्थल ( छाती ) मे भी परिवर्तन हो गया था । उससे भी मास और रुधिर सूख गया था और पसलियों की पंक्ति ऐसी दिखाई दे रही थी मानो ये किलिञ्ज आदि के खण्ड हों अथवा यह बांस या ताड़ के पत्तों का बना हुआ पङ्खा हो । इन सब अवयवों का वर्णन, जैसा पहले कहा जा चुका है, उपमालङ्कार से किया गया है । इससे एक तो स्वभावतः वर्णन मे चारुता आगई है, दूसरे मे पढने वालों को वास्तविक ज्ञान प्राप्त करने में अत्यन्त सुगमता प्राप्त होती है । जो विषय उदाहरण दे कर शिष्यों के सामने रखा जाता है, उसको अत्यल्प - बुद्धि भी बिना किसी विशेष परिश्रम के समझ जाता है । हा, यह ध्यान रखने योग्य है कि धन्य अनगार का शरीर यद्यपि सूख कर कांटा हो गया था किन्तु उनकी आत्मिक शक्ति दिन-दिन बढती चली जा रही थी । अब सूत्रकार वन्य अनगार के शेप अवयवों का वर्णन करते हैं :

Loading...

Page Navigation
1 ... 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118