Book Title: Anuttaropapatikdasha Sutram
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Jain Shastramala Karyalay

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Page 115
________________ अनुत्तरोपपातिकदशासूत्रम् ८१, ६५ वड-पत्ते-बड़ का पत्ता ५६, ६१ | वेहल्लस्स-वेहल्लकुमार का वत्तव्वया वक्तव्य, विषय २७ | वेहल्ले वेहल्ल कुमार ८,३२ वयासी-कहने लगा, बोला ३, ८, १३, ४२, वेहायसे-विहास कुमार संचाएति-समर्थ होती है ३६ वा-विकल्पार्थ-बोधक अव्यय ५१६,५५५ संजमे-संयम में, साधु-वृत्ति में ७२ वाणियग्गामेवाणिज ग्राम नगर में संजमेणं-संयम से ४६, ४६, ८६ वागरेति कहते हैं संपत्तेणं-मोक्ष को प्राप्त हुए ३२,८२,११, वारिसेणे-वारिसेन कुमार २०, २४, २६, २७, ३२, ३४, .. वालुंक-छल्लिया-चिर्भटी की छाल ६४ वावि (वाऽअवि)=भी | संलेहणा-संलेखना, शारीरिक व मानसिक वासा-वर्ष । तप-द्वारा कषादि का नाश करना, वासाई, तिवर्ष तक १२, २० अनशन व्रत ८०,६१ वासे-छेत्र में संसटुं-भोजन आदि से लिप्त (हाथों से विउलं-विपुलगिरि पर्वत दिया हुआ) विगत-तडि-करालेणं नदी के तट के सच्चेव-वही समान भयङ्कर प्रान्त भागों से ६७ सज्झायं-स्वाध्याय विजए,ये-विजय विमान में २०२, २७ सत्त-सात विजय-विमाणे-विजय नामक विमान में १३ | सत्थवाहि-सार्थवाहिनी को विपुलं-विपुलगिरि नामक पर्वत १२ सत्थवाही सार्थवाहिनी, व्यापार में विमाणे-विमान में ८०२,६१ निपुण स्त्री ३५, ३७, ८६ वियण-पत्ते-बाँस आदि का पङ्खा ५६ सद्धिं-साथ १२, ८० विहरति=विचरण करता है १२, ३८, ४३, | समएण-समय से (में) ३, १२, २७, ४६, ४६ , ७२, ८६ ३४, ३६, ७१,८६,६० विहरामि-विचरण करता हूँ ७२ समणं श्रमण भगवान् ४२, ७२, ७३२ विहरित्तते-विहार करने के लिए ४२ समण-माहण-अतिहि-किवण-वणीमगा वीतिवत्तित्ता व्यतिक्रान्त कर, अतिक्रमण श्रमण, माहन (श्रावक), अतिथि, __ कर, उसको छोड़कर उससे आगे १३,८० कृपण और वनीपक (याचक विशेष) ४२ वुच्चति कहा जाता है ७२२ समण-साहस्सीणं-हजारों मुनियों में वुत्त-पडिवुत्तया उक्ति प्रत्युक्ति से ३६ (श्रमण सहस्रों में) वुत्ते-कहा गया है समणस्स-श्रमण भगवान् का ४६, ७२, वेजयंते-वैजयत विमान में २०, २७ ७३, ८६ ववमाणीए कॉपती हुई ६७ | समणे-श्रमण भगवान् ४६, ७१ वेहल्ल-बेहायसा वेहल्ल कुमार और समणेणं श्रमण भगवान ने ३,८२, ११, विहायस कुमार २० २०, २४, २६, २७,२३२२, ३४२, ४२,

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