Book Title: Anuttaropapatikdasha Sutram
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Jain Shastramala Karyalay
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तृतीयो वर्ग:
जति णं भंते ! समणेणं जाव संपत्तेणं अणुत्तरो० दोच्चस्स वग्गस्स अयमढे पन्नत्ते तच्चस्स णं भंते ! वग्गस्स अणुत्तरोववाइयदसाणं सम० जाव सं० के अढे पं० ? एवं खलु जंबू ! समणेणं अणुत्तरोववाइयदसाणं तच्चस्स वग्गस्स दस अज्झयणा पन्नत्ता, तं जहा
धण्णे य सुणक्खत्ते, इसिदासे अ आहिते। पेल्लए रामपुत्ते य, चंदिमा पिढिमाइया ॥१॥ पेढालपुत्ते अणगारे, नवमे पुटिले इय। वेहल्ले दसमे वुत्ते, इमे ते दस आहिते ॥२॥
यदि तु भदन्त ! श्रमणेन यावत्संप्राप्तेनानुत्तरोपपातिकदशानां द्वितीयस्य वर्गस्यायमर्थः प्रज्ञप्तः, तृतीयस्य नु भदन्त ! वर्गस्यानुत्तरोपपातिक-दशानां श्रमणेन यावत्संप्राप्तेन कोऽर्थः

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