Book Title: Anuttaropapatikdasha Sutram
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Jain Shastramala Karyalay

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Page 78
________________ [ तृतीयो वर्गः ७६] अनुत्तरोपपातिकदशासूत्रम् । इस प्रकार निश्चय से तेणं कालेणं - उस काल और तेणं समएणं - उस समय का - कंदी - काकन्दी नाम-नाम वाली नगरी - नगरी होत्था थी और वहां धन्य कुमार उपि - ऊपर पासायवर्डिसए - श्रेष्ठ प्रासाद मे विहरति- विचरण करता था तते गंउसी समय अहं-मैं अन्नया - अन्यदा कदाति - कदाचित् पुव्वाणुपुवीए - अनुक्रम से चरेमाणे- बिहार करता हुआ गामाणुगामं - एक ग्राम से दूसरे ग्राम में दूतिञ्जमाणे - विहार करता हुआ जेणेव जहां काकंदी - काकन्दी नाम की णगरीनगरी थी जेणेव - जहां सहसंबवणे - सहस्राम्रवन उज्जाणे - उद्यान था तेणेव - वहीं उवागते-आया आहापडिरूवं - यथा- प्रतिरूप उग्गहं - अवग्रह लिया और उ० २- अवग्रह लेकर संजमे० - संयम और तप के द्वारा अपनी आत्मा की भावना करते हुए जाव - यावत् विहरामि - विचरण करने लगा तब परिसा - परिपद् निग्गताधर्म-कथा सुनने के लिए नगर से सहस्राम्रवन में उपस्थित हुई तहेव - उसी प्रकार से धन्य अनगार भी आया और धर्म - कथा सुनकर पव्वइते - दीक्षित हो गया जावयावत् उसने कठिन से कठिन तप प्रारम्भ कर दिया और बिलमिव - जिस प्रकार सर्प आसानी से विल में घुस जाता है इसी प्रकार वह बिना किसी लालसा के आहारेति- आहार करता है । फिर धन्नस्स - धन्य अणगारस्स - अनगार के पादाणंपैर मास और रुधिर से रहित होकर सूख गये इसी प्रकार सरीरवन्न - सारे शरीर का वर्णन कहना चाहिए । वह सव्वो जाव - सब अवयवों के तप-रूप लावण्य से उवसोमेमाणे - शोभायमान होता हुआ चिट्टति - विराजमान हो गया । से- अथ तेणट्टेणं - इस कारण सेणिया - हे श्रेणिक एवं - इस प्रकार बुच्चति - मैं कहता हूं कि इमार्सि - इन चउदसरहं - चौदह साहस्सी गं-हजारों मुनियों मे धने-धन्य अणगारे - अनगार महादुक्करकारए-अत्यन्त कठिन तप करने वाला और महानिज्जरतराए चेवसबसे श्रेष्ट कर्मों की निर्जरा करने वाला है तते - इसके अनन्तरं - वाक्यालङ्कार के लिये है से - वह सेखिए - श्रेणिक राया - राजा समणस्स - श्रमण भगवतो - भगवान् महावीरस्स-महाबीर के अंतिए - पास एयम - इस बात को सोच्चा-सुनकर और उसका गिसम्म-मनन कर हट्ठतुट्ट०- हृष्ट और तुष्ट होकर जाव - यावत समणं - श्रमण भगवं-भगवान महावीरं—–महावीर को तिक्खुत्तो - तीन चार श्रयाहिणपयाहिआदक्षिणा और प्रदक्षिणा करेति २ - करता है और आदक्षिणा और प्रदक्षिणा कर उनकी वंढति-वन्दना करता है और गमंसति २ - नमस्कार करता है और wwww.www

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