Book Title: Anuttaropapatikdasha Sutram
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Jain Shastramala Karyalay

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Page 36
________________ vvvvvvvvvvvvvvv vvvvvvvvv ३०] अनुत्तरोपपातिकदशासूत्रम् । [द्वितीयो वर्ग: पुत्र थे । ये तेरह महर्षि सोलह २ वर्ष तक संयम-पर्याय का पालन कर अनुत्तर विमानों में उत्पन्न हुए । उन विमानों का नाम मूलार्थ मे दे दिया गया है। यहां यह सब संक्षेप में इसलिये दिया गया है कि इन सबका वर्णन 'ज्ञाताधर्मकथासूत्र' के मेघ कुमार के समान ही है । इसके विषय में हम प्रथम अध्ययन में बहुत कुछ लिख चुके हैं । अतः यहां फिर से उसका दोहराना उचित प्रतीत नहीं होता । कहने का सारांश इतना ही है कि विशेष जानने वालों को उक्त सूत्र के ही प्रथम अध्ययन का स्वाध्याय करना चाहिए। यह बात विशेष जानने की है कि इस सूत्र के उक्त दोनों वर्गों के तेईस मुनियों ने एक २ मास का पादोपगमन अनशन किया था और तदनन्तर वे उक्त अनुत्तर विमानों में उत्पन्न हुए। अब यहां प्रश्न यह उपस्थित होता है कि एक मास के अनशनों के साठ भक्त किस प्रकार होते हैं । उत्तर में कहा जाता है कि 'ज्ञाताधर्मकथासूत्र के प्रथम अध्ययन की वृत्ति मे अभयदेव मूरि जी लिखते हैं 'मासिक्या-मास-परिमाणया, अप्पणं झूसिते त्ति-क्षपययित्वा पष्टिर्भक्तानि, अणसणाए त्ति-अनशनेन छित्त्वा-व्यवच्छेद्य किल, दिने-दिने द्वे द्वे भोजने लोकः कुरुते, एवश्च त्रिंशता दिनैः पष्टिर्भक्तानां परित्यक्ता भवतीति' अर्थात् एक दिन के दो भक्त होते हैं इस प्रकार तीस दिनों के साठ भक्त होने में कोई भी सन्देह नहीं रहता। साठ भक्तों को छेदन कर वे महर्पि अनुत्तर विमानों में उत्पन्न होते हैं जो एकावतारी हैं । अतः इस वर्ग में सम्यग् दर्शन और ज्ञान-पूर्वक सम्यक् चारित्राराधना का फल दिखाया गया है, क्योंकि यह बात सर्व-सिद्ध है कि सम्यग् दर्शन और सम्यग् ज्ञान-पूर्वक आराधना की हुई सम्यक् क्रिया ही कर्मों के क्षय करने में समर्थ हो सकती है, न कि मिथ्या-दर्शन-पूर्वक क्रिया।। यद्यपि लिखित प्रतियों में कतिपय पाठ-भेद देखने मे आते है तथापि 'झाताधर्मकथासूत्र' का प्रमाण होने से वे यहां नहीं दिखाये गये हैं। अतः जिज्ञासुओं को उचित है कि वे उक सूत्र के प्रथम अध्ययन का स्वाध्याय अवश्य करें और इन अध्ययनों से शिक्षा ग्रहण करें कि सम्यक चारित्राराधना का कितना उत्तम फल

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