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तृतीयो वर्गः
भाषाटीकासहितम् ।
चहिरी गावा प्रज्ञायन्त इति भण्यते।
यूनाव = 43383 ___ पदार्थान्वयः- धन्नस्स-वन्य अनगार की नामाए-नामिका तप-तेज से एमी हो गई थी से जहा-जैसी अंगपेमियाति बा-आम की फांक होती है अथवा अंबाडगपमियाति वा-अम्रानक-अम्बाडा की फांक होती है अथवा मातुलुंगपसियाति वा-मातुलुग-बीजपूरक फल की फांक हानी है जो तरुणियाकोमल ही काट कर धूप मे सुखा दी गई हो एवामेव-यही दया धन्य अनगार की नासिका की भी हो गई थी । धनस्म-धन्य अनगार की अच्छीणं०-आंग्यों की यह दया हो गई थी से जहा०-जैसे वीणाछिड्डति-वीणा के छिद्र की होती है अथवा बीमगछिडुति वा-बढीमक नाम वाले वाद्य विशेष के छिद्र की होती है अथवा पामातियताग्गा इवा-प्रभात समय का नारा होता है एवामेव-हमी प्रकार धन्य अनगार की आख भीतर बम गई थी । धन्नस्स-वन्य अनगार के करणाणं-कानों की यह उद्या हो गई थी से जहा-जैसे मृला छल्लियाति वा-मूली का छिल्का होता है अयबा वालुक-चिमटी की छाल होती है अथवा काग्लय-छल्लियाति वाकरेल का छिल्का होता है एवामव-इसी प्रकार धन्य अनगार के कान भी मृग्य गये थे। धन्नस्म-वन्य अनगार के सीमस्म-शिर एमा हो गया था से जहा-जैसे तरुणगलाउएति वा-कोमल तुम्बक अथवा तरुणगएलालुएति वा-कोमल आलू अथवा सिण्हालएति वा-मिस्तालक-सफालक नामक फल विशेप जो तरूपए-कोमल जाव-चावत-तोड़कर धूप में कुम्हलाया हुआ चिट्ठति-रहना है एवामेव-इसी प्रकार बन्नस्म-धन्य अनगार का सीसं-शिर मुक्कं-शुष्क हो गया लुक्ख-सन्न हो गया णिम्मंग-माम रहिन हो गया और केवल अट्टिचम्मच्छिरत्ताए-अस्थि, चर्म
और नामा-जाल के कारण पन्नायति पहचाना जाता था ना चेव णं-न कि मंमसीगियत्ताए-मांस और रुधिर के कारण एवं-इसी प्रकार मचन्य-मब अगों के विषय में जानना चाहिए णवरं-विशेषता इतनी है कि उढरभायण-दर-भाजन कन्न-फान जीहा-जिह्वा उट्टा-ओंट एएम-इन विषय में अट्ठी-'अम्थिं यह पद ण मन्नति-नदी कहा जाता. क्योकि इनमे अम्यि नहीं होती अनः केवल चम्मच्छिरनाए-चर्म और नामा जाल मे पएणाय इति-जाने जाते थे इस प्रकार मन्ननिकहना चाहिए । अर्थान जिन म्याना में अन्थि नहीं होती उनके विषय में केवल चम