Book Title: Anuttaropapatikdasha Sutram
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Jain Shastramala Karyalay

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Page 35
________________ द्वितीयो वर्गः ] भापाटीकासहितम् । [ २९ प्रकार समणें - मोक्ष को प्राप्त हुए श्रमण भगवान् महावीर ने अणुत्तरोववाइयदसाणं- अनुत्तरोपपातिक दशा के दोच्चस्स - द्वितीय वग्गस्स - वर्ग का मट्ठे - यह अर्थ पत्ते - प्रतिपादन किया है। दोसुवि-दोनों ही वग्गेसु - वर्गों में मासियाएमासिक २ संलेहणाए - संलेखना से शरीर का त्याग किया । अर्थात् दोनों वर्गों के प्रत्येक साधु ने एक २ मास का पादोपगमन अनशन व्रत धारण किया था । ---- मूलार्थ - हे भगवन् ! यदि मोक्ष को प्राप्त हुए श्रमण भगवान् ने अनुत्तरोपपातिक - दशा के द्वितीय वर्ग के तेरह अध्ययन प्रतिपादन किये हैं तो फिर हे भगवन् ! द्वितीय वर्ग के प्रथम अध्ययन का श्रमण भगवान् महावीर ने क्या अर्थ प्रतिपादन किया है १ सुधर्मा स्वामी जी ने जम्बु स्वामी के इस प्रश्न के उत्तर में कहा कि हे जम्बू ! उस काल और उस समय में राजगृह नाम नगर था । उसमें गुणशैलक चैत्य था । वहां श्रेणिक राजा था । उसकी धारिणी देवी थी । उसने सिंह का स्वम देखा । जिस प्रकार जालि कुमार का जन्म हुआ था, उसी प्रकार जन्म हुआ, उसी प्रकार बालकपन रहा और उसी प्रकार कलाएं सीखीं । विशेषता केवल इतनी है कि इसका नाम दीर्घसेन कुमार रखा गया । शेष वक्तव्यता जैसे जालि कुमार की है, उसी प्रकार जाननी चाहिए। यावत् महाविदेह क्षेत्र में मोक्ष प्राप्त करेगा इत्यादि । इसी प्रकार तेरह अध्ययनों के तेरह कुमारों के विषय में जानना चाहिए। ये सब राजगृह नगर में उत्पन्न हुए और सब के सब महाराज श्रेणिक और महाराणी धारिणी देवी के पुत्र थे । इन तेरहों ने सोलह वर्ष तक संयम - पर्याय का पालन किया । इसके अनन्तर क्रम से दो विजय विमान, दो वैजयन्त विमान, दो जयन्त विमान और दो अपराजित विमान में उत्पन्न हुए । शेप महाद्रुमसेन यादि पांच मुनि सर्वार्थसिद्ध विमान में उत्पन्न हुए | हे जम्बू ! इस प्रकार श्रमण भगवान् महावीर ने अनुत्तरोपपातिकदशा के द्वितीय वर्ग का उक्त अर्थ प्रतिपादन किया है । उक्त दोनों वर्गों के मुनि एक २ मास के अनशन और संलेखना से काल गत हुए थे । अर्थात् तेईस मुनियों ने एक २ मास का पादोपगमन और अनशन किया था । टीका- उन सूत्र मे द्वितीय वर्ग के तेरह अध्ययनों का अर्थ वर्णन किया गया है । ये सब तेरह राजकुमार नेणिक राजा और धारिणी देवी के आत्मज अर्थान

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