Book Title: Anuttaropapatikdasha Sutram
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Jain Shastramala Karyalay

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Page 67
________________ ~~~~~~~vvvwwww ६२] अनुत्तरोपपातिकदशासूत्रम् । [ तृतीयो वर्गः हनोः अथ यथानामकमलाबु-फलमिति वा हकुब-फलमिति वा आम्रगुटिकेति वा, एवमेव० । धन्यस्योष्ठयोः अथ यथानामका शुष्क-जलौकेति वा, श्लेष्म-गुटिकेति वाक्तक-गुटिकेति वा, एवमेव० । धन्यस्य जिह्वायाः० अथ यथानामकं वटपत्रमिति वा पलाश-पत्रमिति वा शाक-पत्रमिति वा, एवमेव०। पदार्थान्वयः-धन्नस्स-धन्य (अनमार) की गीवाए०-ग्रीवा की ऐसी आकृति हो गई थी से जहा०-जैसी करगगीवाति वा-करवे ( मिट्टी का छोटा सा पात्र ) की ग्रीवा होती है अथवा कुंडियागीवाति वा-कुण्डिका ( कमण्डलु) की ग्रीवा होती है उच्चढवणतेति वा-अथवा उच्चस्थापनकऊँचे मुंह वाला वर्तन होता है एवामेव०-इसी प्रकार उनकी ग्रीवा भी सूखकर लम्बी दिखाई देती थी । धन्नस्स-धन्य अनगार का हणुप्राए-चिबुक-ठोडी ऐसी सुन्दर हो गई थी से जहा०-जैसे लाउयफलेति वा-तुम्बे का फल होता है हकुबफलेति वा-हकुब-वनस्पति विशेष का फल होता है अथवा अंजगद्वियाति वा-आम की गुठली होती है एवामेव०-इसी प्रकार धन्य अनगार का चिबुक भी मांस और रुधिर से रहित हो कर सूख गया था । धन्नस्स-धन्य अनगार के उट्ठाणं-ओंठ ऐसे हो गये थे से जहा०-जैसे सुक्कजलोयाति वा-सूखी हुई जोंक होती है अथवा सिलेसगुलियाति वा श्लेश्म की गुटिका होती है अथवा अलत्तगगुलियाति वाअलक्तक-मेहदी की गुटिका होती है एवामेव०-इसी प्रकार धन्य अनगार के ओंठ भी मुरझा गये थे । धन्नस्स-धन्य अनगार की जिम्भाए-जिह्वा ऐसी हो गई थी से जहा०-जैसे वडपत्तेति वा-वट वृक्ष का पत्ता होता है अथवा पलासपत्तेति वापलाश वृक्ष का पत्ता होता है अथवा साकपत्तेति वा-शाक के पत्ते होते है एवामेव०इसी प्रकार वन्य अनगार की जिह्वा मी सूख गई थी। मूलार्थ-धन्य अनगार की ग्रीवा मांम और रुधिर के अभाव से सूख कर इस तरह ढिसाई देती थी जैसी सुराई, कुण्डिका (कमण्डलु) और किसी ऊंचे मुख वाले पात्र की ग्रीवा होती है । उनका चिबुक (ठोडी) । भी इसी प्रकार मूस गया था और ऐमा दिखाई देता था जैसा तुम्वे या हकुब

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