Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay

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Page 184
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsur Gyanmandir णं भंते! समुहस्स केमहालए गोतित्थे पं०?, गो०! लवणस्स णं समुदस्स उभओपासिं पंचाणउतिं २ जोयणसहस्साई गोतित्थं ५०, लवणस्स णं भंते! समुहस्स केमहालए गोतित्थविरहिते खेत्ते पं०?, गो०! लवणस्स णं समुदस्स दस जोयणसहस्साई गोतित्थविरहिते खेत्ते पं०, लवणस्स णं भंते! समस्स केमहालए उदगमाले पं०?, गो०! दस जोयणसहस्साई उदगमाले पं० ११७२ लवणे णं भंते ! समुद्दे किंसंठिए पं०?, गो० गोतित्थसंठिते नावासंगणसंठिते सिप्पिसंपुडसंठिए आसखंधसंठिते क्लभिसंठिते वट्टे वलयागारसंगणसंठित पं०, लवणे णं भंते! समुद्दे केवतियं चक्कवालविक्खंभेणं केवतियं परिक्खेवेणं केवतियं उव्वेहेणं केवतियं उस्सेहेणं केवतियं सव्वग्गेणं पं०?, गो०! लवणे णं समुद्दे दो जोयसयसहस्साई चक्वालविक्खंभेणं पण्णरस जोयणसतसहस्साई एकासीतिं च सहस्साई सतं च इगुयालं किंचिविसेसूणे परिक्खेवेणं एगं जोयणसहस्सं उव्वेधेणं सोलस जोयणसहस्साई उस्सेहेणं सत्तरस जोयणसहस्साई सव्वग्गेणं पं० १७३। जइ भंते! लवणसमुद्दे दो जोयणसतसहस्साई चक्कवालविक्खंभेणं पण्णरस जोयणसतसहस्साई एकासीतिं च सहस्साई सतं इगुयालं किंचिविसेसूणं परिक्खेवेणं एगं जोयणसहस्सं उव्वेहेणं सोलस जोयणसहस्साई उस्सेधेणं सत्तरस जोयणसहस्साई सव्वग्गणं पं०, कम्हा णं भंते! लवणसमुद्दे जंबुद्दीवं दीवं नो उवीलेति नो उप्पीलेति नो चेव णं एक्कोदगं करेंति?, गो०! जंबुद्दीवे णं दीवे भरहेरवएसु वासेसु अरहंतचक्वट्टिबलदेवा वासुदेवा चारणा विजारा समणा समणीओ सावया सावियाओ मणुया प्रगतिभद्दया पगतिविणीया प्रगतिउवसंता ॥ श्री जीवाजीवाभिगम् ॥ | १७४ पू. सागरजी म. संशोधित For Private And Personal

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