Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay

View full book text
Previous | Next

Page 249
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kotain.org Acharya Stel Kalashsagarsen Byamande |सजोगिभवत्थकेवलिअाहारगस्स जह० अंतो० उकोसेणवि, अजोगिभवत्थकेवलिअणाहारगस्स पत्थि अंतरं, एएसिं णं भंते! आहारगाणं अणाहारगाण य क्यरे०?, गो०! सव्वत्थोवा अणाहारगा आहारगा असंखेजगुण॥२४८। अहवा दुविहा सव्वजीवा पं० २०-भासगा य अभासगा य, भासए णं भंते! भासएत्ति कालओ केवचिरं होति?, गो०! जहण्णेणं एवं समयं उदो० अंतोमुहत्तं, अभासए णं भंते०!, गो०! अभासए दुविहे पं० २०-साइए वा अपज्जवसिए सातीए वा सपज्जवसिए, तत्थ णं जे से साइए सपज्जवसिए से जह० अंतो० उक्को० अणंतं कालं अणंता उस्सप्पिणीओसप्पिणीओ वणस्सतिकालो, भासगस्स णं भंते! केवतियं कालं अंतरं होति?, जह० अंतो० उक्को० अणंतं कालं वणस्सतिकालो, अभासग० सातीयस्स अपज्जवसियस्स त्यि अंतरं, सातीयसपज्जवसियस्स जह एवं समयं उक्को० अंतो०, अप्पाबहुगं सव्वत्थोवा भासगा अभासगा अणंतगुणा, अहवा दुविहा सव्वजीवा पं० २०-ससरीरी य असरीरी य, असरीरी जहा सिद्धा, थोवा असरीरी ससरीरी अणंतगुणा १२४९१ अहवा दुविहा सव्वजीवा पं० २०-चरिमा चेव अचरिमा चेव, चरिमे णं भंते! चरिमेत्ति कालतो केवचिरं होति?, गो०! चरिमे अणादीए सपज्जवसिए, अचरिमे दुविहे पं० २०-अणातीए वा अपज्जवसिए सातीए वा अपज्जवसिते, दोण्हंपि णत्थि अंतरं, अप्पाबहुगं सव्वत्थोवा अचरिमा चरिमा अणंतगुणा, (प्र० अहवा दुविहा सव्वजीवा पं० २०-सागरोवउत्ता य अणागारोवउत्ता य, दोण्हंपि संचिढणावि अंतरंपि जह० ३० अंतो०, अप्पाबहगं सव्वत्थोवा अणागारोवउत्ता सागारोवउत्ता असंखेजगुणा) सेत्तं दुविह। (प्र० सिद्धसइंदियकाए ॥ श्री जीवाजीवाभिगम् ॥ | २३९ पू. सागरजी म. संशोधित For Private And Personal

Loading...

Page Navigation
1 ... 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267