Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay

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Page 211
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir |दुब्धिसहत्ताए परिणमंति दुब्भिसहा पोग्गला सुब्भिसहत्ताए परिणमंति?, हंतो गो०! सुब्भिसद्दा दुब्भिसहत्ताए परिणमंति दुब्भिसद्दा सुब्भिसहत्ताए परिणमंति, से गूणं भंते! सुरूवा पुग्गला दूरूवत्ताए परिणमंति दुरूवा पुग्गला सुरूवत्ताए०?, हंता गो०!, एवं सुब्भिगंधा पोग्गला दुब्भिगंधत्ताए परिणमंति दुब्मिगंधा पोग्गला सुब्भिगंधत्ताए परिणमंति ?, हंता गो०!, एवं सुफासा दुफासत्ताए?, सुरसा दूरसत्ताए०?, हंता गो०! ॥१९२॥ देवे णं भंते! महिड्ढीए जाव महाणुभागे पुवामेव पोग्गलं खिवित्ता पभू तमेव अणुपरियट्टित्ताणं गिण्हित्तए ?, हंता पभू, से केणटेणं भंते! एवं वुच्चति देवे णं महिड्ढीए जाव गिहित्तए ? गो०! पोग्गले खित्ते समाणे पुत्वामेव सिग्घगती भवित्ता तओ पच्छ। मंदगती भवति देवे णं महिड्ढीए जाव महाणुभागे पुट्विपि पच्छावि सीहे सीहगती (तुरिए तुरियगती) चेव से तेणटेणं गो०! एवं वुच्चति जाव एवं अणुपरियट्टित्ताणं गेण्हित्तए, देवे णं भंते! महिड्ढीए० बाहिरए पोग्गले अपरियाइत्ता पुव्वामेव वालं अच्छित्ता अभेत्ता पभू गठित्तए ?, नो इणढे समढे. देवे णं भंते! महिड्ढिए० बाहिरए पुग्गले अपरियाइत्ता पुव्वामेव वालं छित्ता भित्ता पभू गंठित्तए ?, नो इणढे समटे, देवेणं भंते! महिड्ढीए० बाहिरए पुग्गले परियाइत्ता पुवामेव वालं अच्छिता अभित्ता पभूगंठित्तए ?, नो इण्टे समढे, देवेणं भंते! महिड्ढीए जाव महाणुभागे बाहिरे पोग्गले परियाइत्ता |पुवामेव वालं छेत्ता भेत्ता पभू गंठित्तए ?, हंता पभू, तं चेव णं गठिं छउम्त्थे जाणति ण पासति एसुहम् च णं गढिया, देवे णं भंते! महिड्ढीए० पुव्वामेव वालं अच्छेत्ता अभेत्ता पभू दीहीकरित्तए वा हस्सीकरित्तए वा?, नो तिणढे समटे, एवं चत्तारिवि श्री जीवाजीवाभिगम् ॥ पू. सागरजी म. संशोधित २०१ For Private And Personal

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