Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay
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गमा, पढमबिइयभंगेसु अपरियाइत्ता एगंतरियगा अच्छेत्ता अभेत्ता, सेसं तहेव, तं चेव सिद्धिं छउमत्थे ण जाणति ण पासति एसुहुमं|| च णं दीहीकोज वा० १९३। अस्थि णं भंते! चंदिमसूरियाणं हिडिंपि तारारूवा अणुंपि तुल्लावि समंपि तारारुवा अणुंपि तुल्लावि उप्पिंपि तारारुवा अणुंपि तुल्लावि?, हंता अस्थि, से केण्डेणं भंते! एवं वुच्चति अस्थि णं चंदिमसूरियाणं जाव उप्पिंपि तारारूवा अणुंपि तुल्लावि०?, गो०! जहा २ णं तेसिं देवाणं तवनियमबंभचेरवासाई उस्सियाई भवंति तह। २ णं तेसिं देवाणं एयं पण्णायति अणुत्ते वा तुलत्ते वा, से एएणटेणं गो०! अस्थि णं चंदिमसूरियाणं जाव उपिपि तारारूवा अणुंपि तुलावि १९४। एगमेगस्स णं भंते! चंदिमसूरियस्स केवइओ णक्खत्तपरिवारो पं० केवइआ महागही परिवारो केवइओ तारागणकोडाकोडिपरिवारो पं०?, गो०! एगमेगस्स णं चंदिमसूरियस्स अट्ठासीतिं च गहा अट्ठावीसं च होइ नक्खत्ता। एगससीपरिवारो एत्तो ताराण वोच्छामि ॥४४॥ छावद्विसहस्साई णव चेव सयाई पंचसयराइंस एगससीपरिवारो तारागणकोडिकोडीणं ॥८५॥१९५। जंबुदीवेणं भंते! दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरच्छिभिल्लाओ चरिमंताओ केवतियं अबाधाए जोतिसंचारं चरति?, गो० ! एक्कारसहिं एक्कवीसेहिं जोयणसएहिं अबाधाए जोतिसं चार चरति, एवं दक्खिणिल्लाओ पच्चथिमिल्लाओ उत्तरिल्लाओ, लोगंताओ भंते! केवतियं अबाधाए जोतिसे पं०?, गो०! एक्कारसहिं एकारेहिं जोयणसतेहिं अबाधाए जोतिसे पं०, इमीसे णं भंते! रयणप्यभाए पुढवीए बहुसमरमणिज्जाओ भूमिभागाओ केवतियं अबाधाए सव्वहेडिल्ले तारारूवे चारं चरति केवतियं अबाधाए सूरविमाणे चरं चरति केवतियं अबाधाए चंदविमाणे चार ॥श्री जीवाजीवाभिगम् ॥
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पू. सागरजी म. संशोधित
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