Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay

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Page 231
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir य कयरे० ?, गो० ! सव्वत्थोवा मणुस्सा णेरड्या असं० देवा असं० तिरिया अनंतगुणा, से तं चउव्विहा संसारसमावण्णगा जीवा ॥२२४॥ चउविहपडिवती ॥ प्रति० ३ बेमा० ३०२ ॥ तत्थ णं जे ते एवमाहंसु पंचविहा संसारसमावण्ण्णगा जीवा पं० ते एवमाहंसु, तं० एगिंदिया बेइंदिया तेइंदिया चउरिदिया पंचिंदिया, से किं तं एगिंदिया ?, २ दुविहा पं० नं० - पज्जत्तगा य अपज्जत्तगा य. एवं जाव पंचिंदिया दुविहा पज्जत्तगा य अपज्जत्तगा य, एगिंदियस्स णं भंते! केवइयं कालं विती पं०?, गो० ! जह० अंतोमुहुत्तं उक्को० बावीसं वाससहस्साइं बेइंदिय० जह० अंतोमु० उक्को० बारस संवच्छराणि एवं तेइंदियस्स एगूणपण्णं राइंदियाणं चउरिदियस्स छम्मासा पंचेंदियस्स जह० अंतोमु० उक्को० तेत्तीसं सागरोवमाई, अपज्जत्तएगिंदियरस णं केवतियं कालं ठिती पं०?, गो० ! जह० अंतोमु० उक्को० अंतो०. एवं सव्वेसिं, पज्जत्तेगिंदियाणं जाव पंचिन्दियाणं पुच्छा, जह० अंतो० उक्को० बावीसं वाससहस्साइं अंतमुहुत्तोणाई, एवं उक्कोसिया ठिती अंतोमुहत्तोणा सव्वेसिं पज्जत्ताणं कायव्वा, एगिंदिए णं भंते! एगिंदिएत्ति कालओ केवचिरं होइ ?, गो० ! जह० अंतोमु० उक्को! वणस्सतिकालो, बेइंदियस्स णं भंते!० जह० अंतोमु० उक्को० संखेजं कालं जाव चउरिदिए संखेज्जं कालं पंचेंदिए णं भंते! पंचिदिएत्ति० केवचिरं०, गो० ! जह० अंतोमु० उक्को० सागरोवमसयपुहुत्तं साइरेगं, एगिंदिए णं अपज्जत्तए णं भंते!, गो० ! जह० अंतोमु० उक्को० अंतोमुहुत्तं जाव पंचिंदियापज्जत्ता, पज्जत्तगएगिंदिए णं भंते! ०?, गो० ! जह० अंतोमुहत्तं उक्को० संखिज्जाई वाससहस्साइं एवं बेइंदिएवि णवरिं ॥ श्री जीवाजीवाभिगम् ॥ पू. सागरजी म. संशोधित २२१ For Private And Personal

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