Book Title: Tattvartha Sutra Jainagam Samanvay
Author(s): Atmaram Maharaj, Chandrashekhar Shastri
Publisher: Lala Shadiram Gokulchand Jouhari

View full book text
Previous | Next

Page 6
________________ इस ग्रंथ की विषानुक्रमणिका भी एक विशेषता है। सूत्रों की विषयानुक्रमणिका में प्रायः सूत्रों को ही देने की एक परिपाटी है। किंतु यहां प्रत्येक अध्याय का मोटे २ विषयों में विभाग करके वही विषय विषयानुक्रमणिका और परिशिष्ट नं० २ दोनों स्थान में दिये गये हैं । इससे एक बड़ा लाभ यह भी है कि प्रन्थ का विषय ( Analysis ) बिल्कुल स्पष्ट हो जाता है। अन्त में इतना निवेदन है कि इसमें कहीं मेरे प्रमादवश तथा कहीं प्रेस की कपा से प्रफ सम्बन्धो भूलें रह गई है। आशा है कि पाठक उनके लिये क्षमा करेंगे। इसके अतिरिक्त यदि कोई महानुभाव इस समन्वय के विषय में आगम पाठ संबंधी या और कोई विशेष सूचना दें तो उसका भी स्वागत किया जावेगा। इस प्रकार को त्रुटियों की सूचना मिलते रहने से उनको इस ग्रन्थ के अगले संस्करण में दूर करने का प्रयल किया जावेगा। चन्द्रशेखर शास्त्री M. O. Ph., काव्य-साहित्य-तीर्थ-आचार्य, ता.१ नवम्बर सन् १९३४ ई. प्राच्यविद्यावारिधि, आयुर्वेदाचार्य भूतपूर्व प्रोफेसर बनारस हिन्दू यूनीवर्सिटी. देहली,

Loading...

Page Navigation
1 ... 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 ... 306