________________
(६०)
या जिनवाणीका नीर भर २ पीलावे । मन वच कायाकी जेर धोरी चलावे ॥ जब अमृत फलके खाया रोग नही आवे। सब जन्म जरा के दुःख दूर टलावे ॥ हीरालालकहेऐसीवागकीवहारकरोनरनारी।फुल॥५॥
आत्मज्ञान-लावणी. अगर दुनिया में हो होशियार। करत दिल जान सो विचार ॥ आं०॥ कहां से आया हो तुम चाल। कहां के हो तुम रहने वाल ।। किसीके हुकमसे करते ख्याल । इहां तुम मोज करो महाबाल ॥ दोहा-क्या तुम लेकरआविया।किसकाकिया उधार॥ ' क्या कमाइ पल्ले बान्धी । अब क्या करो विचार।।