Book Title: Jain Subodh Ratnavali
Author(s): Hiralal Maharaj
Publisher: Pannalal Jamnalal Ramlal Kimti Haidrabad
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( १८०) नेवरको झणकार धुंघर सबद प्यार। हीरालाल कहे रस सिंगार वखाणिये ॥ २ ॥ अद्भूत रस अपूर्व वस्तु कोइ देख्या सेती। मुख अरू नेनको विकार विकसात है ॥
शुभाशुभ रूप जोवे हर्ष विखवाद होवे । · ताके चित्त माही विकल्प उपजात है ॥ जिन दरसन जिन वाणी अद्भूत रस । सुणिया भविक हर्ष चडत अगात है । हीरालाल कहे अद्भुत रस पियालहे। परम मुगती पंथ सिद्धगति पात है ॥३॥ रुधिरको रस जहां रौद्र प्रणाम जाण । भ्रकुटि लिलाड नेत्र मुखको विकार है । पशु वध परिणाम वैरीको बिनासे ठाम ।
असुर दानव पर वहे तखार है ॥ - रूधिर प्रणाम सेती विनोको विभंग करे ।

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