Book Title: Jain Subodh Ratnavali
Author(s): Hiralal Maharaj
Publisher: Pannalal Jamnalal Ramlal Kimti Haidrabad
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(१५७) त्याग खन्डयां धर्महारे। यों करती है प्रकाशजी॥ चो-श्रावक कुंवरको आइसेंठो कीधो ।
कुंवर अणसण पचखी लीधो ॥ स्वर्गबारमें पहोतोसीधोत्याग चारतणोफललीधोजी। मिलत-श्री जवाहरलालजी महाराज तणे प्रसादे। __ महाराज हीरालाल कहे सुमतिके धरताजी|या४॥ ॥ मानतुंग मानवतीकी लावणी ।। चाल-दूणकी। यह एवंती देश उजेनी नामें नगरी । महाराज मानतुंग महीपाल कहवानाजी । त्रियाकीजालका फंद काम अन्धभोगठगानाजी॥टेर॥ एकदिन भूप रजनीका मौका देखी । महाराज शहरमें फिर वो चलकेजी।। चार चतुर कन्या मिल वातां करे हिलमिलकेजी॥ आपारमा आजकी रात व्याव मन्डे कलकोजी। महाराज सासरे वासज लेनोजी।
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