Book Title: Jain Subodh Ratnavali
Author(s): Hiralal Maharaj
Publisher: Pannalal Jamnalal Ramlal Kimti Haidrabad

View full book text
Previous | Next

Page 188
________________ (१६८) नेह निभावण जगमें दोहिलो। धारणो धर्म व्यवहार साधूसतीनवलीसूरमा।यहथोडाहीदीसेसंसाराासां॥५ एहवा जो सजन मिले । नहीं तजिये तेहनो संग॥ भीडपड्यापणभागेनहीं चोलमजीठकोरंगासां॥६॥ आप आपने घर आवियानिज२ पुत्रको बुलाय ॥ भारसोंप्योसबसंसारको।यांकेवैराग्यरह्योघटछाय सां७ सहू मिलि संयम आदयों । अहंत मुनिसुवृत्त पास। दुवादशवर्षवृतपालिया।मनमाहीमुक्तिकीआस॥सांट मास संथारे स्वर्ग सुधर्मे । सेठ सकेंन्द्र पदे होय ॥ पांचसे सामानिक ऊपनासहेश्रनेत्र रह्या जोय।।सा॥ महाविदेहक्षेत्रमेंमुक्तिपामसी।सहूनोएकअधिकार। सूत्रभगवतीमेंभाखियो।सुणियांवरतेमङ्गलाचार सां१० संवत उन्नीसो बरस बांसटे । रामपुरामें अभिराम ॥ गुरुजवाहरलालजीप्रशादथी।हीरालालकरेगुणग्राम११ ॥ इति संपूर्णम् ॥

Loading...

Page Navigation
1 ... 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221