Book Title: Jain Subodh Ratnavali
Author(s): Hiralal Maharaj
Publisher: Pannalal Jamnalal Ramlal Kimti Haidrabad

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Page 195
________________ ( १७५ ) करनफूल सिसफूल दुलाड तिलडि मुख । हीरालाल कहे सील विन नागी नारी है || ४॥ वस्तर जीरण अंग नही जाने रूप रंग | area नथाके गलामेन तार है || गेणाको नही है जोग नादारथ कहे लोग । लाज काज लिया बैठ रहे घरद्वार है || अपवती विना परपूप नहीं जोवे नेण । बाप बंधु पुत्रवत समझे संसार है || सीलने संतोषवंत दयापारे जीवजंत । हीरालाल कहे चंदसम निर्मल नार हैः ॥ ५॥ असल कनक लवणाइ चतुराई करी । तामेकाहा गुण देखो दिल में विचारी है ॥ तुरंग या गज केरी नकल बनाइ धरी । पुरुष आरूढ नहीं होत असवारी है ।। नृपकी नकल नहीं राजको चलावे काम |

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