Book Title: Jain Subodh Ratnavali
Author(s): Hiralal Maharaj
Publisher: Pannalal Jamnalal Ramlal Kimti Haidrabad

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Page 213
________________ ( १९१) दया पाली तोडिया कर्म पाया सुख सास्वता॥१९॥ सात राजू माही ऊर्ध लोक अधो सात राजू। मध्य एक राजद्रीप समुद्र असंख्य है।। कल्पग्रीवेग पंच अनुत्तर सुरवर । सिद्ध ठाम सबपर स्वरूप अलख है ।। व्यंतर भुवनपती सुख देख रह्या अती। सातोही नरकगती महा दुःख रंक हे ।। पट द्रव्य रूप लोक लख्यो शिवराज जोग । हीरालाल कहे जिन वचन निशंक है ॥ १२ ॥ बोध वीज दुर्लभ सुलभ सुर नररिद्ध । कारज सर्व सिद्ध आत्म स्वरूप है । शुद्ध बान समकित चारित्र है यथातथ्य । मिथ्यात भरम चित तिमर निरुप है ॥ किजीये जतन पायो रतन अमोल हाथ। पर वचनाके साप पालिये परूप है ।।

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