Book Title: Jain Subodh Ratnavali
Author(s): Hiralal Maharaj
Publisher: Pannalal Jamnalal Ramlal Kimti Haidrabad

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Page 199
________________ ( १७९) ॥ सवैया ३१ ॥ आदिहीमें वीररस दान दिया होवे जस। तपस्या करियांसुकस करे कोइ तनको ॥ निग्रंथ धर्म धीर होवे महा सुरवीर । राज पद त्याग व्रत धारेजके जनको ॥ काम क्रोध मोह प्रीत शत्रु मोटा लिया जीत । वेरिको विनासे तहां धारे वीर मनको ॥ . हीरालाल कहे महावीर सिद्ध नाम एह । घातिक करम क्षय कीधामहाघनको ॥ १॥ बीजो हे अंगार रस ललनाके होतवस । बिलोक विलास लीला रति गुण जाणिये ।। कांकण मोत्याको हार नवा २ सिणगार । अंजन मंजन शुभ गंधादिक आणिये ।। सिंगार वचन वक्त उपजत ऊनमत्त । तरुण पुरुष युवतिके संग गणिये ॥

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