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(१४१) मिलत-होतबकी बात है न्यारीजी । कियो ॥१॥
आपहीराजा श्रेणिक को पकडपीजरमैडालो। महाराज राजकी करली पांतीजी। सब कियोवचन प्रमाणहुवाराजाकाघातीजी। एक दिन भूपतिको देखी गफलतमांइ । महाराज दमादम मिलकर आयाजी ।
दियापकडपिंजरेसिंघजोरनहींचलेचलायाजी॥ छूट-कोणिक कुँवर गादीपर आकर बैठा ।
माता के पांव पडन को गया था बेटा ॥ माताने आदर नहीं दिया रखदिल सेंढा ।
धरलियो ध्यान रानीको झुका सिर हेटा ॥ मिलत-कँवर कहे मात हमारीजी ॥ कियो ॥२॥
में राजलियो थाने हर्ष भाव नहीं आयो। महाराज राणी हकीगत सुणावेजी । तेने किया वाप सेवैर मुझे हित कैसे