Book Title: Jain Subodh Ratnavali
Author(s): Hiralal Maharaj
Publisher: Pannalal Jamnalal Ramlal Kimti Haidrabad

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Page 196
________________ (१७६ ) सेठकी नकलस्वांग सेटानीन धार है ॥ हीरालाल कहे तोल असलको मोल कोन । नकलीवस्तुको ओर बेचत बजार है ॥ ६ ॥ कासीमें निवास कियो मुढको न खुलियो हियो। सुरज उध्योत भयो अँधके अंधार है ॥ गंगामें न्हिलायां खर तुरंगनीहोत पर । अमृत सुसीच्या नीम मधुना नीहार है । जोगमिल गयो सुध तोही नहीं छाडे रूढ । ज्ञान नहीं पायो मुढ काकी मार है ॥ समुदर माहि पेस प्यासो जो को रहे नर। हीरालाल कहे तेने पडे धिकार है ॥७॥ चोरिको करन चोर चाल्या राते कोही गैर । आया है नगर पोर खातखणे सुररे ॥ सेठानी कहत सुनो सेठ चोर आया पोर । सेठजी कहे तेजाणुं याहि बात पूररे ॥

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