Book Title: Jain Subodh Ratnavali
Author(s): Hiralal Maharaj
Publisher: Pannalal Jamnalal Ramlal Kimti Haidrabad

View full book text
Previous | Next

Page 207
________________ (१८७) ॥ वारा भावनाका वर्णव ॥ सवैया ३१ ।। अनित्य असरण संसारने एकंतभाव। पंखि पत पंचमिया भावोनित्य भावना । अशुचिने आश्रव संवर निर्जरा जाण । धर्म भावना चित धरमको लावना ॥ लोगा लोग एकदश बोध दुहा द्वादश । जनम मरण माहीं फेर नही आवना ॥ हीरालाल कहे भव्य भावोरे भावना नित। कर्म खपाइ हित मुगतिको पावना ॥१॥ सुनोहो चतुर नर दुवादश चित धर । भाखी श्री जिनवर ताकी एह रीत है ॥ प्रथम अनित्य तन धनने जोवन पन । कारमो कुटंम्व किम कीजे तहां प्रित है ।

Loading...

Page Navigation
1 ... 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221