Book Title: Jain Subodh Ratnavali
Author(s): Hiralal Maharaj
Publisher: Pannalal Jamnalal Ramlal Kimti Haidrabad

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Page 211
________________ (१९१) आवत करम संच जासे भारी होत है ॥ मिथ्यात्व अव्रत प्रमादने कषाय करी । अशुभ अधवसाय करमाको सोत है ॥ हिंसाझूट आदि विस बोल कह्या आश्रव । ताको जो परहरे कर्म मल्लधोत है ॥ __ कहे हीरालाल ऐसी समुद्रपाल महा ऋषि। __ भाइ हे भावना जैसी पाया धर्म जोतहै ॥ ८॥ समकित आदि वीस वोलको सुलट किया। संवर कोठाम जीयां कर्मकोन्यावहै ॥ रोकदियो आश्रव संमर भावना कर । पाप सब परहर संवुडा केवावे है ॥ जैसे नीरनाव माहीं रोकदियो आवेताही। जैसे वासुदेव दल अरिको नसावे है ॥ हीरालाल कहे कोश मुनि वंद्या सुख लहे । चरण सरण गहे ऊंचिगत जावे है ॥ ९ ॥

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