Book Title: Jain Subodh Ratnavali
Author(s): Hiralal Maharaj
Publisher: Pannalal Jamnalal Ramlal Kimti Haidrabad

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Page 187
________________ (१६७) करीरममतारहेजगभमताजिप्सोभाडेतीभारकोवहनो ५ मुमुणउपदेशसमजगइसारी।मातपिताकेसंगमेलेनो॥६॥ कहेहीगलालसवमहावृत्तधारे । साचोसंघमिल्योसुख जेहनो । कामण ॥ ७॥ ॥सुदर्शनसेठामहला वेठीराणीकमलावती-एदेशी सांभलहो सेठा । संसार जाण्यो सवही स्वार्थी ॥ टेर॥ बोले यो एक सहश्र आठ। जो मार्ग आप आदरो॥ में नहींजास्या वीजी वाटासांभलहोसेठा॥संसार॥१॥ संसारयहस्वपनासारीखोहिमपणलेस्यासंयमभार ॥ डाभरणीजलविन्दवो।आयुष्यधनपरिवारासा॥२॥ स्वार्थी सगा सहु आइ मील्या। धर्म सगो नर जोय॥ अविचलराखांआपांप्रीतडी।जोहममाणसहोय ॥सां३ संगत मिलीआपसारखी । तो यो धर्मको ढंग ।। गजअस्वारीअरूटजोहुवा। कौनकरेऋसभकोसंगासां

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