________________
( १ ० १ )
तख्त सिला एक नगरीजी । और रहे अटाएं पुत्रजनों को दे दी सगरीजी ॥ यह ब्राह्मी सुन्दरी पुत्री आपकी दोई || महाराज || रही वो अकनकं वारीजी ।
इन के नहीं कर्मका भोग । जाउंजिनकी बलिहारीजी ॥ अव पुण्योदय भरतेश्वर छः खन्ड मांही ॥ महाराज ॥ वेरीको किया आधिनोजी ॥ दिया ॥ १ ॥ यह चक्र रत्न नहीं आवे आपठिकाने || महाराज ।। भाईसे करी तकरारीजी ॥
देखी भरतेश्वरकी खेंच | आदम पे गये पुकारीजी ॥ यह ऋषभदेव उपदेश देइ समझाया || महाराज ॥ अटाणूं कारज सार्याजी ||
रवा चावल सरदार | बांका तरखार्याजी ॥ नहीं माने आण परवाना परापठाया || महाराज ॥ शैन्य पर हुकमज दीनोजी ॥ दिया ॥ २ ॥