Book Title: Jain Subodh Ratnavali
Author(s): Hiralal Maharaj
Publisher: Pannalal Jamnalal Ramlal Kimti Haidrabad
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We shall work with you immediately. -The TFIC Team. Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ KIMTEE PANNALAI Time OMANIA H W पन्नालाल कीमती-हैद्राबाद ( दक्षिण ) Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री श्री १००८ श्री परमपूज्य श्री श्रीलालजी महाराज की संप्रदाय के गुरु महाराज श्री १००८ श्री रतनचंद्रजी महाराज तस्य शिष्य मुनिश्री जवाहरलालजी महाराज के आर्य शिष्य. । कविवर श्री हीरालालजी महाराज कृत मी श्री जैन सुबोध रत्नावली. SHREE JAIN SUBODH RATNAVALI जिसे पन्नालाल जमनालाल रोमलाल किमती हैद्राबाद (दक्षिण) निवासीने __ छपाके प्रसिद्ध की. प्रथमावृत्ति. प्रत १०००. मूल्य सदुपयोग. । . श्री वीर संवत् २४३९. विक्रम संवत् १९६९. इस पुस्तकको उघाडे मुखसे, वाजिंत्रके सहायसे, या दीपक प्रकाशमें इत्यादि अयत्नासे न पढियेगा. Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Printed at Shri “Satyavijaya P. Press * Ahmedabad by Sankalchand Harilal Shah. Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥प्रस्तावना॥ गाथा-नाणस्स सव्वस पगासणाय । अन्नाण मोहस्स विवजणाय ॥ रागस्त दोसस्स य संखणाय । एगंत सोख्खं समुवेश् मोख्खं ॥ ___ श्री उत्तराध्ययन सूत्रम् ज्ञान सर्व स्थानमें प्रकाशका करने वाला है, अज्ञान और मोहरूप अन्धकारका नाश करने वाला है, रागढेषरूप रोगका विध्वंश करने वाला है, और एकांत अमिश्र अनुपम मोक्ष सुखका दाता है. इसलिये सुखेच्छु प्राणियोंको अभिनव ज्ञानका पठन मनन और निध्यासन करनेकी बहुत ही आवश्यकता है. प्राचीन कालमें केवलज्ञानी तथा महा प्रज्ञा (बुद्धि)वंत सत्पुरुषों अनेक Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ थे, जिन्होंने अनेक सूत्रों जो कि गहन ज्ञान के सागर तुल्य थे, उन ग्रन्थों की रचना कर जगदुद्धारार्थ रखगये हैं; तदपि अर्वाचीन कालकी स्थिति बडी शोचनिय हो रही है, श्रेष्ट ज्ञानकी दिनोदिन हानि हो रही है, तत्वज्ञानमय कठिन विषयोंके समझनेवाले बहुत ही थोडे रहगये हैं; और एक मतके अनेक मत और बाड़े हो गये हैं. जगत्की ऐसी स्थिति देख तत्वप्रेमी दयासिन्धू महान पुरुषोंने सद्ज्ञानका प्रचार करने के आशयसे प्राचीन सत्य शास्त्रोंका पुनरुद्धार किया, और उनके गहन अर्थोंकों देशी भाषामें सरल बनाये; और संगितके रागियोंके लिये का. व्य रूपमें सत्शास्त्रानुसार शान्त वैराग्यादि रससे भरपुर चरित्र, स्तवन, सज्झाय, छन्द, लावणी, सवैया, गजल इत्यादि बनाये. ऐसे उत्तम स्तवना: Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दिको पढना, श्रवण करना और दूसरोंको पढाना, यह उत्तम जनोंका कर्त्तव्य है. इसलिये चंद स्तवन वेगेरा जोकि कविवर मुनि श्री हीरालालजी महाराजके बनाये हुवेथे, उनको संग्रह कर शुद्ध करके भव्य जीवोंके हितार्थ पठन करने योग्य जाण प्रथम ‘श्री जैन सुबोध हीरावली ' ना मक ग्रंथकी १००० प्रति छपवाकर श्री. संघको __अमूल्य अर्पण कीथी, जोकि सर्व प्रिय होनेसे थोडीही दिनोंमें सब वितिर्ण (खर्च) हो गई. ___ उसी अपेक्षासे यह 'श्री जैन सुबोध रत्नावली' नामक ग्रंथ कविवर मुनि श्री हीरालालजी महाराज रचितको शुद्ध करके १००० प्रति श्री संघकी सेवामें भेट करके कृतार्थ होते हैं. चार कमान ) श्री संवके सेवक. मा. हैद्राबाद (दक्षिण) पन्नालाल जमनालाल कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा. ) रामलाल किमती Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ग्रंथकर्ताका संक्षिप्त जीवन चरित्र ।। मालवादेशके इन्दौर स्टेटके रामपुरे जिल्लामें 'कंजरडा' नामक ग्राममें औसवाल ज्ञाति के सेठ 'रत्नचंद्रजी' रहते थे, जिनकी सुपत्नी “राजांबाई' के संवत् १९०३ में जवाहरलालजी, संवत् १९०९ में हीरालालजी, और संवत् १९१२ में नंदलालजी, यों तीन पुत्रोंकी प्राप्ती हुई. वहां रत्नचन्द्रजीके साले देवीलालजी भी रहतेथे. उसवक्त श्री साधुमार्गी जैन धर्मके प्रकाशक परमपूज्य मुनिराज गच्छाधिपति श्री हुकमीचन्द्रजी महाराजके सम्प्रदायके मुनिवर श्री राजमलजी महाराज कंजरडा ग्राममें रे और सद्बोध अमृत रससे भव्य जीवोंको करने लगे, मुनिराजश्रीका बोध सेठ रत्न. Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चन्द्रजीको प्रबल असरकारक हुवा, और तूर्त पत्नी पुत्र परिवारकी आज्ञा संपादन कर संवत् १९१४ के ज्येष्ट शुक्ल पंचमीको अपने साले देवीलालजीके साथ दिक्षा अंगिकार की. गुरुभक्ति कर ज्ञानके प्रेमी बने, और शांत दांत क्षांत शुद्धाचारी होकर जिनशासनको प्रदिप्त करने लगे. प्रामानुग्राम उग्र विहार करते हुवे संसारी कुटुम्ब उद्धारार्थ, संवत् १९२० में पुनः कंजरडा ग्राममें पधारे और सदुपदेशसे पत्नी और तीनही पुत्रों को वैरागी बनाये. प्रथम राजांबाईने आज्ञा देतीनों पुत्रोंको सहर्ष दिक्षा दिलाई, और फिर आपने भी महासतीजी श्री रंगूजीके पास दिक्षा धारन की. फिर ये सब गुरु और गुरुणीजीकी भक्ति करते हुवे यथाशक्ति ज्ञान संपादन करते हुवे विशुद्ध तपसंयमसे अपनी आत्मा Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भावत हुवे विचरने लगे. श्री राजांजी महासती सं० १९४८ में रामपुरे ग्राममें ११ दिनका सेथारी कर स्वर्ग पंधारे. और श्री रत्नचंद्रजी महाराज सं. १९५० के अपाडे मासमें जावरां में स्वर्ग पधारे. और तीनों मुनिराज विद्यमान हैं. . १:श्री जवाहरलालजी महाराज ज्ञानानन्दमें तल्लीन हो आत्मध्यानमें आत्माको भावते हुवे विचरते हैं. २ श्री हीरालालजी महाराज कविः त्वशक्ति प्रगटनेसे अनेक चरित्र और स्तवन सज्झाय सवैया लावणी वगेरः रचते हैं. और. ३ श्री नन्दलालजी महाराज श्यादाद शैलि युक्तं चर्चा कर जैन शासन दिपाते हैं.. . --.. .. .. .- मुनिगुणा रोगी " . पन्नालाल जमनालाल रामलाल कीमती. . . . । . । Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री जेन सुबोध रत्नावलीकी अनुक्रमणिका. --काविषयांक. विषय. पृष्टांक. आगमकी बधाईका प्रस्तावना. स्तवन. १४ ग्रंथकर्ताका संक्षिप्त ८ श्री जिनवाणी स्त जीवन चरित्र. ६ वन-वसंत होली. १५ १ मंगला चरणम्-आरती १ ९ श्री महावीरस्वामीका २ श्री शांतिनाथजीकी मंगलस्तवन-लावणी.१६ लावणी. ३ १० श्रीवीर प्रभुक दर्श३ श्री महावीरस्वामी नका उत्साह-स्तवन १७ का स्तवन-महाड. ५ | ११ श्रीनवकारमंत्र स्तवन.१९ ४ श्री नेमीनाथजीका १२ गुरुगुण स्तवन महाड.२१ स्तवन. ७ १३ श्री जिनरामसे वि५ श्री नेमीनाथजीका नंती स्तवन-गजल म्तवन. १० कव्वाली. २३ ६ श्री महावीर स्वामी- १४ श्री जिनवाणी स्तवन.२५ का स्तवन. १२, १५ साधु गुण स्तवन७ श्री ऋषभदेवजी के २५ Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६ गुरु उपकार स्तवन. २८ | २७ उपदेशी गजल. ४९ १७ विहारकरते मुनीरा | २८ सम्यक्त्वकी गजल. ५० जमे विनती स्तवन २९ । २९ स्मरण विधी दर्शक १८ श्री जिनवाणी सुण महाड. ५२ नेकी उत्सुकता-स्तवन३१ ३० सद्वौध-गरवी. ५३ १९ श्री जिनराजसे वि- | ३१ उपदेशी-पद. ५४ नंती स्तवनः ३३. ३२ उपदेशी पद मोक्ष२० ईश्वरसे प्रार्थना - । का बटाउ. ५६ गजल कव्वाली. ३५ । ३३ ज्ञान बगीचा लावणी.५८ २१ उपदेशी लावणी. ३६ ३४ आत्मज्ञान-लावणी. ६० २२ लोक स्वरुप दर्शक. ३५ पंडित लक्षण-लावणी.६२ ____ लावणी. ३९ ३६ पद-क्रोध निषेध. ६४ २३ श्री गुरु उपकार ३७ पद-सम्यक्त्वीको लावणी. ४१ हितशीक्षा. ६५ २४ वैरागी और स्त्रीका ३८ पद-त्रष्णांकी फांस. ६७ प्रश्नोत्तर-स्तवन. ४४ । ३९ पद-वैरागी के वाक्य ६८ २५ वैरागीसे स्त्रीकी वि- ४० पद-सद्गुरु बौध. ६९ नंवी-स्तवन. ४६ ४१ पद-सच्चामीत्र-गजल २६ फूट और सम्पविषय कव्वाली. गजल कव्वाली. ४८ | ४२ पद-सद्बोध. Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४३ पत्र - शिक्षा किसेलेग? ७३ i ७५ ४४ विनयका पद. ४५ पद -चैतन्य प्रदेशीका. ७९ 1 | ४६ पद - आत्म ध्यान. ८० ४७ पद-समता गुणदर्शक ८१ ४८ पद- निंदा दुर्गुण ४९ पद - कलियुग दर्शकहोली. ८२ ८४ ५० पद - जरा गुण दर्शक. ८५ ५१ पद - मनको सबौध. ८६ १२ पद - अभिमानी के लक्षण -महाड. ५३ महमदी फरमानगजल कव्वाली ५४. पद - अनित्यता ሪሪ ११ ८९ ९१ ९२ दर्शक - दुमरी. ५५ जक्त जाल दर्शक. ५६ पद - धारी नही होवे ९२ ५७ उपदेशी लावणी. ९३ ५८ लावणी उपदेशी . ९५ ५९ पद - प्रभु से अजी. ९७ ६० लावणी त्रिया चरित्र. ९८ | || चरित्रावली || १०० ६१ भरत बाहुबल चरित्र लावणी. ६२ लावणी - बाहुबलजीको ब्राह्मी सुदरी जीका सद्बौध. १०३ || हरिवंश चरित्रावली ॥ १०६ ६३ कृष्णलीला ६४ जीव जसांका एवंता ऋषिसे सवाल. १०९ ६५ एवंता ऋषिका जीव जसा से जवाब . ६६ जीव जसा और कंश राजाका विचार. १११ ६७ छे भाइ साधूका वणर्न - लावणी. ११० ११३ ६८ पद- द्रौपदीका सत्य. ११७ ६९ पद - कृष्णविलाप. ११९ || राम चरित्र || ७० सीता हरण-जटाउ औद्धार ७१ सीताजी से भवि १२१ Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ षणका भाषण १२२ । ८५ मानतुंग मानवतीकी ७२ बिभीषणकी रावण- लावणी. १८७ को हितशीक्षा. १२४ ८६ एलची पुत्र-चरित्र __७३ मंदोदरी राणीको ___लावणी. १६३ रावणका हितशीक्षा१२८ । ८७ जंबु कुंवर के स्त्री७४ रावणको भविष ___ यांसे प्रश्नोतर. १६५ की शिखामण. १२९ | ८८ जंबुकुंवरकाजवाब १६६ ७५:सीताजीकी खबर ८९ सुदर्शन शेठ. . १६७ हनुमानजी लाए. १३० ९० अधरवर्णोका सवैया१६९ ७६ रामजीकी जीत. १३१ । ९१ सालतका३२उपमा ७७ सीताजीकी धीज. १३४ सवैया... १७२ ७८ रामचंद्रजीकी मोक्ष. १३६ ९२ नवरस वर्णन-सवैया१७८ ७२ श्रेणिक चरित्र. १४० ९३ पाटावलीके सवैया.१८४ ८० कोणिक चेडाका युद्ध ९४ बारा भावनाका वर्णन लावणी. १४३ सवैया. १८७ ८१ श्रावक वर्णनागन. रत्नचंदजी तवाकी सझाय. १४५ महाराजके गुण८२ महाशतकजी श्राव ग्राम-सवैया. १९४ ककी सझाय. १४७ ९६ उपदेशी छप्पयछंद १९५ ८. सतीचंदनवाला ९७ श्राविकागुणस्तवन. १९८ । चरित्र-लावणी. १४९ | ९८ कान्फस वर्णन '८४ वंकचूल सम्बंध. १५३ । टुमरी. Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॐ सर्वज्ञाय नमः कविवरेन्द्र मुनीराज श्रीहीरालालजी __ महाराज रचित. "श्री जैन सुबोध रत्नावली." मङ्गला चरणम्, आरती. जय जय जिनवाणी प्रभू जय जय जिनवाणी; संकट हरणं, सम्पति करणं; - भवोदद्धी तिरणं भगवानी ॥ जय ॥०॥ बलरुप अनंतं, सब जग महंतं; करतुस्वं विश्वासं ॥ प्र० कर०॥ मन इच्छा पूर्णं, विपति हरणं; तारण तिरणं असमाकं. ॥ जय ॥ १ ॥ Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२) जरणी उरधारं, जग यशकार तिउलोक तारं गुरूज्ञानी ॥ प्र० ति०॥ अमरपतिराया, सब मिल आया; . हर्ष उमाया अघानी. ॥ जय ॥ २॥ प्रभू मेरु शिखरं, भरभर नीर; धररर धररर जलधारं ॥ प्र० धर ॥ अति कळश सुचंगं, निर्मळ गंगं; भभभभ भभभभ भभकारं ॥ जय ॥३॥ इंधवीनादं, घोर अगा, सादं सजते अति भारं ॥ प्र० सादं०॥ गाजत अंम्बर, अति आडम्बर; झणणण झणणण झणकारं ॥ जय ॥४॥ देवी देवा, हर्ष उमेवा; हडडड हडडड हिंसारं ॥ प्र० हड० ॥ रुप वेक्रयतं, हयगय हरितं; Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ घणणण घणणण घणकारं. ॥ जय॥५॥ गज रथ तुरंगा सजी सुरंगा; अति उमंगा भोपालं ॥ प्र० अति• ॥ सन्मुख आवे, शीस नमावे; गुण गावे अति उज्वालं ॥ जय ॥ ६ ॥ सदा सुरंगं, उडुपति खंगं, जीते जंगं वरदानी ॥ प्रभू० जीते० ॥ वपु 'हीरालालं, ' करो प्रतिपालं, दयालं मम हित आनी ॥ जय ॥ ७ ॥ ॥ श्री शांतीनाथजीकी लावणी ॥ श्री शांतीनाथ महाराज अर्ज सुणो मेरी । तुम शांतीकरण जिनराज सरण आयो तेरी ॥०॥ यह स्वार्थ सिद्ध विमाण से चवकर आया। हस्तीनापुर नगरमें जन्म लियो जिनराया। Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४) तिहां छप्पन कुंवारी मिलकर मङ्गल गाया। प्रभूका मेरुपर मौछब किया सुर धाया। बाजे ताल मृदंग अतिचंग, दुंधवी भेरी॥तुम॥१॥ जब शांती हुइ सब देशका रोग मिटाया । तब नाम प्रभूजीका शांती कुंवर धराया। हुवा षट खन्ड नायक चक्रवर्त पद पाया। दिया वर्षीदान फिर संयम लेना चित चहाया। जब हुवा कैवल प्रकाश जीत लिये वैरी॥तुम॥२॥ मैंने लिवी आपकी ओट चरणकी छाया। तुम जग तारण जिनराज तजी जग माया। यह अष्ट कर्मके बिकट कोटको ढाया। तुम लिया मोक्षका मेहेल हुवा मन चहाया । . जहां सुख सागरकी लेहर अनन्ती हैरी ॥तुम॥३॥ श्री जवाहर लालजी महाराज हुकम फरमाया । कुकडेश्वर गणा तीन चौमासा गया । Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५) सुत्रकी वाणी सुणकर जोर लगाया। करी पचरंगी प्रमुख तपश्या भाया । कहे 'हीरालाल' दया धर्म मोक्षकी सेरी ॥तुम।।४॥ ॥ श्री महावीर श्वामीका स्तवन ॥ महाड राग । सुरांगना गावे मङ्गलाचार, दैवांगना गावे __मङ्गालाचार ॥ ७ ॥ उर्ध अधोगति थकीरे । तिर्थकर पद पाय ॥ जननी स्वप्ना देखिया कांइ । दिग वेण दोनों मिलाय ॥ सु ॥ १ ॥ छप्पन कुंवारी सब सिणगारी । गावे मिल२ गीत ।। रति करे आप आपणी काइ । पूर्ण प्रभकी प्रीति ।। सु ॥ २ ॥ इन्द्र इन्द्राणी आवियारे । नर नार्यांका वृंद ॥ जन्म भवने जिनराजको । और जननी को नमत आनन्द ॥ सु ॥ ३॥ Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ६ ) पंचरूप पुरन्दर कियारे । लिया माधवजी हाथ ॥ मेरु गिरीपर आविया कांई । इन्द्राण्य के साथ ॥ सु४ ॥ पंडंग वनमें पधारियाजी | सब देवों के संग ॥ स्नान विधी सघली करी कांई । भर२ कलश सुरंग ॥ सु ॥ ५ ॥ नाटक गात वाजिं बजाया । पाया हर्ष अंपार ॥ माता पासे मेलिया कांइ । भरिया धन भंडार ॥ ६ ॥ सहश्र अष्ट लक्षण धणीरे । सुन्दर सघलो अंग || ऐसा पुत्र दूजा नहीं जी कांइ । गगन गति पतंग ॥ सु ॥ ७ ॥ रुप अनंत बल जानियेजी, निरामय निरलेप || पद्म कमल परमल छबी कांइ, श्वासोश्वास सुखेप | सु. ८ जगतारण जिन राजियाजी, तीर्थपति प्रमाण ॥ रालाल हर्ष भावस्यूंजी, गायो जन्म कल्याण | सु. ९ Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७) ॥श्रीनेमीनाथजीका स्तवन॥ नागजीकी देशीमें। नेमजी, यादव वंशमें ऊपनाहो प्रभू। सूर्य सरीखा दीपता हो नेमजी ॥१॥ नेमजी, समुद्रविजय राजा भलाजी कांइ। शिवादेवी सुत मलपता हो नेमजी ॥२॥ नेमजी, रमतडी रमता थकाजी प्रभू। आयुद्ध शाळामें आविया हो नेमजी ॥३॥ नेमजी, धनुष्य चडाइ शंख पूरियो प्रभू । श्रीपत सुण घबराविया हो नेमजी ॥४॥ नेमजी, अतुल्य बली अवलोकने काइ । हरीने हर्ष आयो घणो हो नेमजी ॥ ५ ॥ नेमजी, उग्रसेनकी डीकरीजी कांई । राजुलरूप सुहामणो हो नेमजी ॥६॥ नेमजी, व्याव रच्यो रंग छांटियोजी कांई। . Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (८) मङ्गल गीत जो गाइया हो नेमजी ॥७॥ नेमजी, हाथी होदे शिर सेवरोजी काइ। गोखे गोरडी जोवे छाइया हो नेमजी ॥ ८॥ नेमजी, हरी हलधर आगे हुवाजी कांइ। यादव वंशका नृपती हो नेमजी ॥९॥ नेमजी, तोरणिये वर आवियाजी कांइ। इन्द्र आया जोया जगपति हो नेमजी।। १०॥ नेमजी, पशुवांको बाडो भर्योजी कांइ । दया आई दीनानाथने हो नेमजी ॥ ११ ॥ नेमजी, रथ फेरी पाछा वल्याजी काइ।। वर्षीदान दियो सब साथने हो नेमजी॥ १२ ॥ नेमजी, सहश्र जणांका साथस्यूंजी कांइ । संयम लेइ गिरीवर चड्या हो नेमजी ॥ १३ ॥ नेमजी, विनतडी राजुल करेजी कांइ । नव भव नेह किम परहा हो नेमजी ॥१४ ॥ Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (९) नेमजी, सङ्ग नहीं छोडां तुमतणो प्रभू । नाथ हमारा हिवडे वसोहो नेमजी ॥ १५ ॥ नेमजी, संयम लेइ गिरीवर चडी राजुल । सातसो परिवारस्यूं हो नेमजी ॥ १६ ॥ नेमजी, वर्षा हुइ चीर भींजियाजी कांइ। गिरी गुफामें आविया हो नेमजी ॥१७॥ नेमजी, वस्त्र सुखावा अलगा कियाजी कांइ । दामनी जिम चमकाविया हो नेमजी ॥ १८ ॥ नेमजी, रहनेमी चित डोलियोजी कांइ । देवरने समझाविया हो नेमजी ॥ १९ ॥ नेमजी, केवल लेइ मुक्ते गयाजी कांइ । 'हीरालाल गुण गाविया हो नेमजी ॥ २० ॥ नेमजी, उन्नीसो पेंसट विपेजी काइ। गढ चितोडे सुख पाविया हो नेमजी ॥ २१ " Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१०) ॥ श्री नेमीनाथजीका स्तवन ॥ ॥ इण सरवरियारी पाल ॥ यह देशी ॥ समुद्रविजयजीका सुत । आणंदकारी घणाजी ॥ महाराज ॥ शिवादेवीजी गाया गीत । नेम कुंवर तणांजी ॥ महाराज ॥ १ ॥ सब जादव के संग। रंग वागे आवियाजी ॥ महाराज ॥ नेम कुंवरजीका लाड । हिडोले हींचावियाजी ॥ महाराज ॥ २ ॥ रेशमी वांधी डोर। सोनाकी शांकल करीजी॥ महाराज ॥ रत्न पालणिये पोडाय। हींचोला दे हिरी फिरीजी ॥ महाराज ॥३॥ इन्द्र पर संस्या सभा मांय । Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - - - - (११) मिथ्यात्वी माने नहींजी ॥ महाराज॥ बल जोवा जिनराज। स्वर्गसे आया वहीजी ॥ महाराज ॥ ४॥ लिया नेम कुंवार। आकाशमें चालियाजी ॥ महाराज ॥ प्रभू जोयो अवधि ज्ञान । वैरीने पाछा वालियाजी ।। महाराज ॥५॥ दाव्या अंगुठाका हेठ । अमर अति आरडेजी ॥ महाराज ॥ सुरपति आया दौड । छोड पांवा पडेजी ॥ महाराज ॥ ६ ॥ जोयो वलि जिनराज । आज सुरासुर मिलीजी ॥ महाराज ॥ पाछा पालणिये पोढाय । आया अमरापुरीजी. ॥ महाराज ॥ ७ ॥ Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १२ ) प्रभू रमता रामत कोड | जोड जादव तणीजी || महाराज ॥ सुरनर रह्या देख | रामत आश्चर्य घणीजी ॥ महाराज ॥ ८ इम झुले नेमकुंवार | अति घणा आगमेंजी || महाराज || इम गावे ' हीरालाल ' । श्रावण सुदी मासमैजी ॥ महाराज ॥ ९ ॥ || श्री महावीर स्तवन ॥ राग - बखो || श्री जिनराजको ध्यान लगावे | जिणघर आनन्द रंग बघावे ॥ . ॥ सिद्धार्थ रायके नंद निरोपम । राणी सलादेवी कुंखे आवे ॥ चेत सुदी तेरसकी रजनी | Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १३ ) जन्म लियो प्रभू सब सुख पावे ॥ श्री ॥ १ ॥ कंचन वरण शरीर विराजे । ॥ श्री ॥ २ ॥ केहर लंछन चरण कहवावे || दीसे देही सप्त हस्त प्रमाणे । दिनकर तेज जिम दीपावे रत्न सिंहासन उपर विराजे । छाजे छत्र चमर दुलावे ॥ मनमोहन भामंडल भासत । चतुरानन प्रभू दर्श दिखावे ॥ श्री ॥ ३ ॥ नर तिर्यंच सुरासुर केइ | कोडाकोडी गिणती न आवे ॥ प्रभूमुख जोवे तृप्त न होवे | हर्ष २ हियो उमंगावे चरम जिनेश्वर वर्ण युगलको । नमतां नवनिध पाप पलावे || ॥ श्री ॥ ४ ॥ Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कहे 'हीरालाल' दयाल प्रभूको । जन्म मरण दुःख वेग मिटावे ॥ श्री ॥५॥ ॥ श्री ऋषभदेवजीके आगमकी वधाइका स्तवन।। आज अजोध्या नगरीक मांही। हर्षे भये सब लोग लुगाइ ॥ आं.॥ माता मरुदेवी अति सुख पाइ । भरत नरेश्वर देत बधाइ ॥ कर असवारी वंदण काजे । आवत चरणों में शीस नमाइ ॥आ ॥ १ ॥ वस्त्र विलेपन कुंकुम केशर । पहरिया भूषण जोर सजाइ ॥ कर २ मंडण वंदन काजे। निरखत नयनोंमें रहे रे लोभाइ ॥ आ ॥ २ ॥ सुरनर केइ विद्याधर आये। नाचत नाटक रुप बनाइ ॥ Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१५) घन जिम गाजे अम्बर राजे। प्रभूमुख वाणी रही छवि छाइ ॥ आ ॥३॥ प्रथम जिनेश्वर आनन्दकारी । मङ्गल वरते सब दिन ताइ । कहे 'हीरालाल ' आप विराजा। माताने मुक्तीमे दिया पहोंचाइ ॥ आ ॥ ४॥ ।। श्री जिनवाणी स्तवन । राग-वसंत-होली। चली आती है, हारे चली आती है। वाणी जिनवर गंगा ॥ आं.॥ प्रभू मुखसागर वहे अति निर्मळ । गणधर गुणग्रह ऊमगा ॥च ॥ १॥ दादश अङ्गीचङ्गी सरिता । वितर्क अनेक भयो तरङ्गा ॥च ॥ २॥ या जिन वाणी दुःख दाह मिटाणी। Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१६) करत कलोल भव्य विहङ्गा ॥ च ॥३॥ घौर गुंजारव शब्द कर गूंजे।। मृदु वाक्य अति ऊतङ्गा ॥ च ॥ ४ ॥ कहे 'हीरालाल' सब शास्त्र प्रमाणिक । जामें जीवदयारस मतङ्गा ॥च ॥ ५॥ ॥ श्री महावीर स्वामीका मंगल स्तवन ॥ ॥ लावणीकी चालमें ॥ श्री महावीर बलवंत अनंता । कर्म शत्रूको दूर हरे॥ वृद्धमान वृद्धीके कारण ।ऋद्धि वृद्धि भंडार भरे॥ अमरपति नरपति खगपति । सेवा करे जिनवर चरणं॥ जयजिनेन्द्रजयजिनेन्द्रं । तुमशरणंहमसुखकरणं॥१॥ चौसट इन्द्र और इन्द्राण्यां । मिलरकर मङ्गल गावे॥ फलोंकी वर्षा होवेशुशरखा। देखअरिदल मुरजावे॥ जिनवाणीकोसुणेसुणावे।सुखसागरलीलावरणेजयर Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १७ ) अर्ज करूं जिनराज आपसे । तुम रक्षा के करनेवाले ॥ सेवे सुरिंदा तेज दिणंदा । दीपे जिणंदा प्रतिपाले | अक्षय पुण्य कमाया दमकती काया । कंचन वरणंदेह धरणं ॥ जय ॥३॥ रवि चन्द्रमा सभी जोतषी | भरा रहे समुद्र पानी | भूमण्डलअचल जिममेरु तवलगरहो यह जिनवाणी ॥ सदा रहोगुलजार गिरामी । भवश्वातकके हरणं । जय४ सदा देव गुरु धर्म आपकी । बनी रहो यह गुल क्यारी ॥ श्री रत्नचन्दजी महाराज राजके । जवाहरलालजी - यशधारी ॥ संवत उन्नीसो पैंसठ वर्षे । हीरालाल कहे तारणतिरणं ॥ जय ॥ ५ ॥ ॥ स्तवन श्रीवीर प्रभूके दर्शनका उत्साह || || हरी आजो मंदरिये रंग मानवाने || यह देशी || आलो आलोरे दर्शन वाहला वीरनोरे || आं० ॥ Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १८) तारूं तरण भवजल तारनोरे ॥ आलो ॥ १॥ दर्शन दीग से हर्षे है हीवडोरे । प्रभू वासे सुगन्धी जिम केवडोरे ॥ आलो ॥२॥ अशुभ कर्मोंको दल दूरो टलेरे। वीर प्रभूको दर्शन जो मिलेरे ॥ आलो ॥३॥ हमने होस घणी छे मिलवा तणीरे । सेवा चरणकमलकी करवा भणी रे॥ आलो ॥ ४॥ मूर्ख मित्रोंथे भर्ममें क्यों पडोरे । गृहो वीर प्रभूनो आसरोरे ॥ आलो ॥ ५॥ भाग्य उदय थवाथी प्रभू पामियांरे । सफल दहाडो आज ऊगियोरे ॥ आलो ॥६॥ हीरालाल प्रभूको मुख जोइयोरे । जाणे चन्द्र चकोर मन मोहियोरे॥ आलो॥७॥ Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१९) | नवकारमंत्र स्तवनारावणको समझावे राणीदे० करो नवकार मंत्रका जाप । कटत है जन्म २ का पाप ॥ आं० ॥ सवही शास्त्रके दरम्यान । किया नवकारमंत्र वयान ।। समझली यही ज्ञान और ध्यान । भजन विन नर है पशू समान ।। दोहा-पंचपद परमेश्वरो । वर्ण पैंतीस प्रमाण ।। अर्हत सिद्ध आचार्य उपाध्याय । साधू बतावे ज्ञान ।। मि०-खो सब दिल अपना तुम साफ ॥ कटत । अनी होवे जल समान । भूत नहीं लागे जहां स्मशान ॥ रणमें बचावे अपने प्रान । जहर सो होवे अमृत पान ।। Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२०) दोहा-अमर कुंवर अनिमें डालत गिण्यो नवकारा॥ हुवा सिंहासण छत्र शिरपरादेख रह्या नरनार॥ मि०-किया फेर गुन्हा सभीका माफ॥ कटत है।।२॥ सेठ सुदर्शन था सीलवान । राणीने करी कपटकी खान ॥ सेठपर डाली जाल दरो गान । राजको भरमाया भर्म म्यान ॥ दोहा-सूली चढावो सेठको। हुकम दियो राजान॥ हुवा सिंहासण उसीवक्तांधों मंत्रको ध्यान।। मिलत-दुशमनका हुवा काम विलाप॥कटत है॥३॥ बचाया शिवकुंवरका प्रान । चोरको सेठ बताया ज्ञान ॥ धरा नवकार मंत्रका ध्यान । जटाउ पक्षी पाया देवस्थान ॥ दोहा-या विधि केइ जीवक संकट सब दिये मेट। Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२१) अहो विरादर तुम क्यों भूले । क्यों करते हो वेट । मिलत-समजलो इसेहीमां और वाप॥ कटत हे॥४॥ चले नहींकोईकियातोफानाटलेसवग्रहगोचरमशान।। सवहीविद्यामंत्रदत्तदान । करोनवकारमंत्रकी ठान ।। दोहा-योही मंत्र त्रिकाल संध्या।होत मनोरथ सिद्ध। हीरालाल नवकार मंत्रसे । पावोगा बहु रिद्ध ॥ मिलत-सुणायो ज्ञान गुरुजी आप ॥ कटत है ।।५।। ॥ गुरु गुण स्तवन ॥ राग-महाड ॥ हो गुरुदेव तुम्हारी मृरत प्यारी । मोहनगारी लागे छेजी राज ॥ आं० ॥ पंच महावृत निर्मळ किरिया । घरिया उज्वल ध्यान ॥ सागर जेसा गम्भीर गुणाकर । जाणे सकल जहान ॥ हो गुरु ।। १॥ Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २२ ) ज्ञान गुणाकी संपती दाता । तीन लोक दरम्यान ॥ भवोदधि तारण पार उतारण । ज्ञान प्रकाशक भार ॥ हो गुरु ॥ २ ॥ चन्द्र तणी परे शीतल सोहे | अदित्य तेज प्रकाश || विनयवंत विवेकी विचक्षण । ॥ हो गुरु ॥ ३ ॥ पूरो मनकी आश रत्नचन्दजी महाराज के गणमें | जेष्ट शिष्य अभिराम ॥ जवाहर लालजी की यशः कीर्ती । फेल रही ठामो ठाम ॥ हो गुरु ॥ ४ ॥ गुण गावो गुणवंतको देखी । } परिक्षा हियामें आण ॥ नुगुरा नरका गुण किम गावे | Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२१) क्यों होवो जाण अजाण ॥ हो गुरु ॥ ५॥ जैनमार्ग दीपक ज्यों देखायो। यो मोटो उपकार ।। हीरालाल नन्दलालको तार्या । यो मोटो उपकार ॥ हो गुरु ॥ ६ ॥ ॥ श्री जिनराजसे विनंती स्तवन । ॥ गजल-कव्वाली ॥ विना जिनराजकी भक्ती। कभी नही मोक्ष पावेगा। दयाल दीनके बन्धव । वही जोप्राण वचावेगा।आं.। जिनन्दकी सूरती प्यारी । खुली गुलशनकी क्यारी। प्रीति यह लगी है हमारी । प्रभुसे लन लगावेगा ॥ विना ॥ १ ॥ तुमारे काकी छांया । शरणमें आपके आया ॥ Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२४) विनंती करूं मैं तुमसे । देना जो हमको चावेगा। बिना ॥ २॥ हमारे दिलकी आसा । पूरो जिनराज हो खासा ॥ हुज़री हुक्म फरमाया। शास्त्र जो यह वतावेगा। ॥ बिना ॥ ३ ॥ असर सोहबतकी आवे। तुख्म तासीर नहीं जावे ॥ जिन्होंकी जैसी है रीती । वही गुणकर बतावेगा। ॥ बिना ॥ ४ ॥ केइ भजे शिव गोपाला.। जिन्होंकेगले रुंड माला॥ विना एक भक्ति जो तेरी। और नहीं पार उतारेगा। ॥ बिना ॥ ५॥ जगतका देव है दूजा। करे पाखन्डकी पूजा ॥ . भूले केइ भर्ममें भोले । पारवो कैसे पावेगा ॥ ॥ बिना ॥ ६॥ हीरालाल आपकी आसा । रखे हरदम खुलासा ।। Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २५) दुरध्या दुःख मिटावो । जभी आनन्द आवेगा। ॥ विना ॥ ७ ॥ 1 ॥ श्रीजिनवाणी स्तवन ॥ अणी भोलुने कुण-- भरमावियो ।। यह देशी ।। देवी जिनन्द वाणी सुख कारणीरे । मनोवांछित पूरे हाम ।। देवी० ॥ ७० ॥ अणी देवीनो दर्शन दोहिलो रे ।। पूर्व सश्चित होवे पुण्य ॥ देवी ॥ १ ॥ देवी सर्व भूपण कर सोहतीरे। जिम थावे सूर्य प्रकाश ॥ देवी ॥ २ ॥ देवीने मस्तक मुगट विवेकनोरे । कोट पहर्या ब्रह्म नवसरहार ॥ देवी ॥ ३ ॥ देवी हाथे खड्ग लियो ज्ञानको रे। वसु वेरी हणत विकाल ॥ देवी ॥ ४ ॥ - - - Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २६) देवी सर्व जीवांने सुख कारणीरे । अम्मा गोद रमावे जिम बाल ॥ देवी ॥५॥ केई जक्तमें बाजे अम्बा चण्डिकारे। तेहना मन्डपे थावे जीव घात ॥ देवी ॥६॥ पोते रुद्राणी तिरती नयी रे। केम परने ते तारणहार ॥ देवी ॥ ७॥ जिनवाणी अहोनिश ध्यावा अमोरे । नवी जातो दहाडो जोके जेम ॥ देवी ॥ ८॥ देवीनी बधा माणस सेवा सांचवेरे । तुम आलोनी सर्वत्र भोग ॥ देवी ॥ ९॥ देवी वरदायां से बर आपिये रे । आतो परिचय पूर्ण हम मांय ॥ देवी ॥ १० ॥ देवी हर्ष धरीने हीरालालने रे । आपो आत्मसुख शुभ जोग । देवी ॥ ११ ॥ Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२७) ॥ साधू गुण स्तवन ।। राग-वसंत-होरी ॥ साधु आयारे भविक जीव तारनको। गुरू आयारे भ० ॥ आं० ।। ज्ञान सुनावे धर्म बतावे । क्रोध लोभ परिहारनको ॥ साधु ॥ १॥ जन्म मरणका जो फंद मिटावे । दुर्गति दूर निवारणको ॥ साधु ॥ २ ॥ पट कायाका जो प्राण बचावे । रागदेप दोइ हारनको ॥ साधु ।। ३ ॥ पंत्र इन्द्रीको दमन करावे । मान अहंकार मद गारनको ॥ साधु ॥ ४ ॥ करी तन तपस्या जोर लगावे । अष्ट कमरिपु मारनको ॥साधु ॥ ५ ॥ म्वर्ग गतिका जो सुख मिलावे । दयामार्ग दिल धारनको ॥ साधु ॥ ६ ॥ Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २८ ) कहे हीरालाल ऐसा संतजो आवे | भवोदधी पार उतारनको || साधु || ७ || ॥ गुरू उपकार स्तवन । हरी आजोमंदरिये रंग मानवाने || यह देशी. ॥ ॥ आं० ॥ ज्ञान आपीने कीधो गुरु निर्मलो रे । तेहथी थासे आगोतर में भलोरे अनुग्रह करीने तुम तारखारे । जेहनो जोग मिलवो अति दोहिलोरे ॥ ज्ञा ॥१॥ एहने सिंह सरीखो जायो शूरमोरे । कायर थवाथी जाण्यो जेहवो मृगलोरे ||ज्ञा ॥२॥ जाण्यो गज सरीखो समर्थयोरे । भार वहवाथी जाण्यो गधो दूबलोरे ॥ ज्ञा ॥३॥ कोकिल सरीखी वाणी जाणी मीठडी रे । जाणे बोल्यो छे जेम कालो कागलोरे ||ज्ञा || ४ || Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२९) एहने अंब जाणीने जल सींचियोरे । माटो थावाथी जाण्यो कडवो नीमडोरे ॥ज्ञा॥५॥ पहने दृध सरीखो जाण्यो ऊजलोरे । पालो जोवाथी जाण्यो जिम कागलोरे ।।ज्ञा।।६।। जाण्या हंस सरीखी गती चालसेरे । ध्यान धरवाथी जाण्यो जेहवा वगलोरे ||७|| मुमुह जाणीने शिप्य मुंडावियो रे । हागलाल कहे छ हिवडां देखलोरे ॥८॥ ॥ विहार करते मुनीराजसे विनंती स्तवन ॥ ॥ चतन तोरे ॥ यह देशी॥ वेगा आजोजी२ महागज मुनीश्वर । दरशन दीजोजी ॥ वेगा० ॥ आं० ॥ विहार करता वाहला लागो । कृपा वेगी फीजोजी॥ Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३०) हाथ जोड हुं करुं विनंती। ते मान लीजोजी ॥बेगा ॥ १ ॥ गाम नगरपुर पाटण जामे। सुखसे विहार करीजोजी ॥ वारंवार हुँ अर्ज गुजारूं। भूल मति जाजोजी ॥बेगा ॥ २ ॥ चन्द्र चकोर तणीपर निशदिन । सुरतडी दरशीजोजी ॥ धन्य भाग धन्य घडी आपका । चरण स्पर्शीजोजी ॥बेगा ॥ ३ ॥ दरशन करतां कोटि भवांका। पातक दूर करीजोजी॥ पाछा फिरतां मन नहीं माने । किम पग भरीजोजी ॥ वेगा ॥ ४ ॥ श्रावक श्राविका करे बंदणा। Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लुल २ पाय पडीजोजी॥ दरशन थांरा लागे प्यारा । भोग जोग मिलीजोजी ॥ बेगा ॥ ५ ॥ हीरालाल कहे गुरु दरशनको । हरदम ध्यान धरीजोजी ॥ मन वच काया भक्त रचाया। संसार तरीजोजी ॥ वेगा ॥ ६ ॥ ॥ श्री जिनवाणी सुननेकी उत्सुकता ॥ ॥ वेदक विरलाहो ॥ यह देशी ॥ जय जिनवाणी बोध जगानी । गुणस्प अनंत वखाणी रे ॥ जय २ हो जिनवाणी ॥ आं०॥ १॥ पपभादिक जिन वंदू चौवीसी । महा विदेह में वंदृ वीसीरे ॥ जय ।। २ ॥ Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३२ ) हर्ष उमावो हिये अति गाढो । जाणे परणवा आयो लाडोरे ॥ जय ॥ ३ ॥ पियु जे नारीनो रहे परदेशे । ॥ जय ॥ ५ ॥ ते तो वाट जोवे तिण देशेरे ॥ जय ॥ ४ ॥ तो कां नही जाणू देवा । करूं एक मने थारी सेवारे घन गाजत जिम नाचत केकी । हिरदे जाग्यो वैराग्य विवेकीरे || जय || ६ || चन्द चकोर जिम दर्शन दीठा । लागे तन मन से अति मीठारे ॥ जय ॥ ७ ॥ रात दिवस इम रहे ध्यान लागो । जाणे पतंग के बांध्यो तागोरे ॥ जय ॥ ८ ॥ केतकी फूले फुले बन वाडी | तिहां मधुकर लहे साता गाडीरे ॥ जय ॥ ९ ॥ मान गुमान अरिदल चूरो । Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३३ ) महाग मनका मनोरथ पुरोरे ॥ जय ॥ १० ॥ थे मुज साहिब अंतरजामी । आमा पुगे भगे यह हामी रे ॥ जय ॥ ११ ॥ हमागे उमावो जन्मको लावो । गायो जिनजीको रंग बधावारे ।। जय ।। १२ ।। जीवागंजमन्दसौर पेंट वर्षे । गुण गायो हीरायल हमें रे ।। जय ।। १३ ।। || श्री जिनराज विनंती स्तवन ॥ ॥ नीवडली नेह निवारीये ॥ यह देशी ॥ आज कुंरंग दधावणा । बायो वर्ष पुण्य की बेलके। समति खागण जे दियो । कुमति हो दूरी मुलके ॥ आ. ॥ १ ॥ नाथमेवान्यविगो की जोहो हमारीप्रतिपाल के ॥ करणानिधि कृपा करी | Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३४) हमने तारो हो तुम दीन दयालके ॥ आ. ॥२॥ मात पिताकी गोदमें । रमावे हो रामतडी जेमके ॥ बाल विवेक समझे नहीं। इम जाणी हो मुज पर धरो प्रेमके ॥ आ.॥३॥ उदयाचलउदयहुवे । सहश्रकीर्णेहोजिमप्रगटेभानुके॥ आतम मंडल जाणिये । जिम प्रगटे हो गुरूजीको ज्ञानके ॥ आ. ॥ ४ ॥ चंद चकोर तणी परे । इमलागोहोहमएकण चित्तक॥ क्षिण भर अलगो नहीं रहे। बालूडोहो जिम चहावे मावित्त के ॥ आ.॥ ५॥ विघ्न सभी दूराटले।सफलथाजोहोयामुखकी वाणके। श्रोता सुण सुख संपजे । बहू पावे हो आदर सन्मानके ॥ आ. ॥ ६ ॥ तात श्रीरलचंदजी। माताजी होराजांजीजाणके ।। जेष्ट पुत्र जवाहिर लालजी। Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ज्यान जाया हो हुबो जन्म प्रमाणक।। आ. ||७|| यशकीर्ती जगमें घणीस बर्मिघकोहोविनगयोदूरक। आनन्द वरत अति घणो । हिवे पामो हो ऋद्धि, भरपूरके ॥ आ. ॥ ८ ॥ संबनउन्नानमोगटामाघमामहोश भनिधीग्वारके।। पद पंगट पुरण हुवा। भीगलालज हो पामे हर्प अपार ॥ आ. ॥ ९ ॥ ॥ ईश्वररे प्रार्थना ।। गग-कव्वाली ॥ मलन तुम मोन पायांगे। हमे भी यादतो करना । स.मदिल हमपर लाबोगे।तुमाक झोकामरना। आं.॥ एक. मालिक हे नही। ऑन न देव है कोई ॥ आगम मयोभी आवेगा। तुम्हारे पापा सरणा ॥ सजन. ॥ ॥१॥ पन्ची के बन्धको बाटो । मारे. पन्दको नोडा ।। Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३६) अजलसे तुमही बचावो । तुम्हारे ॥सजन॥२॥ अगरचे हो तुझी दाता ।वक्षोहो हमको सुखसाता। वक्तपर आशान आवोगे। तुम्हारे सजन ॥३॥ चन्द रोजके माही । मिलूंगा तुमसे मैं आई॥ हमभी तुम जैसे होवेंगे। तुम्हारे० ॥सज्जन ॥ ४ ॥ वही दोस्त है मिंता । मिटावे दिलकी जो चिन्ता ।। कैसे तुम छोड जावोगे । तुम्हारे. ॥ सजन ॥५॥ हज़री हुक्मसे गोया। सभीलो शिवपुरके जोया ॥ हीरालाल ऐसा गावेगा । तुम्हारे० ॥ सजन ॥६॥ ॥उपदेशी लावणी-अधर वरणोंमे-चाल लंगडी.॥ सुणो जिकर यह इसीजक्तका।सद्गुरुराहदरसाते हैं। ज्ञानकीझडियांलगाकरातुर्तहीआनन्दआतेहैं।आं.॥ देखो चतुर नरदिलके अन्दराकौन तुझेहतारनहार॥ यह है सज्जनसारेइन्होंका।क्या तुझकोआताइतबार॥ Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 'धन दौलत औरभराखजाना।यहनहींचलनेतेरेलार॥ वयों ललचाना लालचने। दुःख देखतहेयहसंसारा॥ कुमंगत कबहु नहीं करना। कुलच्छन नाहक लगाता है ॥ ज्ञान. ।। ।। १ ॥ धन दोलन धरती अन्दरावर २ चैतन्य राह धरी॥ कोटीरजोतकर । लावा कोडों संचय करी ॥ जिस दिन चैतन्य कुंच करेगाधिरी रहेगासंचीसिरी।। जिन्दने नुरुत्य कियाइनीमे।वही मंमारसे गयेतिरी ।। निबन्ध वही नहीं लालच जिन्हक । अतानीको जगाते हैं । तान. ॥ ॥२॥ पं. अतानी करने निंदा।उनके संगमेंनहीं जाना॥ दर्जन मनी जाय अडे नो। हटकर पाठनहीं आना। गपाटेकको दर रटादो। क्यों करते हो नानांनाना।। या नगई करे कोई गुण अवगुणशी छानोमाना। तानी गुर गुण सागर । Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३६ ) अजलसे तुमही बचावो | तुम्हारे ० ॥ सज्जन ॥२॥ अगरचे हो तुझी दाता । वक्षोहो हमको सुखसाता ॥ वक्तपर आशान आवोगे | तुम्हारे० || सज्जन ॥ ३ ॥ चन्द रोजके मांही । मिलूंगा तुमसे मैं आई ॥ हमभी तुम जैसे होवेंगे। तुम्हारे० ॥सज्जन ॥ ४ ॥ वही दोस्त है मिंता । मिटावे दिलकी जो चिन्ता || कैसे तुम छोड़ जावोगे। तुम्हारे. ॥ सज्जन ॥५ ॥ हजरी हुक्मसे गोया । सभीलो शिवपुरके जोया || हीरालाल ऐसा गावेगा । तुम्हारे० ॥ सज्जन ॥ ६ ॥ ॥ उपदेशी लावणी - अधर वरणोंमे - चाल लंगडी. ॥ सुणो जिकर यह इसीजक्तका । सद्गुरुराहदरसाते हैं। ज्ञान कीझडियां लगाकर तुर्तही आनन्द आते हैं। आं ॥ देखो चतुर नरदिलके अन्दरा कौन तुझेहैतारनहार ॥ यह है सज्जन सारेइन्हों का क्या तुझको आताइतबार। Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३७ ) धन दौलत औरभराखजाना। यह नहीं चलतेतेरेलार॥ क्यों ललचाना लालचसे । दुःख देखत है यह संसार ॥ कुसंगत कबहु नहीं करना । कुलच्छन नाहक लगाता है ॥ ज्ञान. ॥ ॥ १ ॥ धन दोलत धरती अन्दराधर २ चैतन्य राह धरी ॥ कौडी जोडरकर | लाखों क्रोडों संचय करी ॥ जिसदिन चैतन्य कूंच करेगा।घरी रहेगा संचीसिरी ॥ जिन्हने सुकृत्य कियाइसी से । वही संसार से गयेतिरी ॥ निग्रन्थ वही नहीं लालच जिन्हके । अज्ञानीको जगाते हैं | ज्ञान. ॥ केइ अज्ञानी करते निंदा | उनके संगमेंनहीं जाना | दुर्जन सेती जाय अडे तो । हटकर पीछा नहीं आना ॥ गधाटेकको दूर हटादो। क्यों करते हो तानोंताना ॥ या चतुराई करे है कोई। गुण अवगुणकी छानोछाना || ज्ञानी गुरू गुणके सागर । ॥ २ ॥ Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३८) ॥ ३ ॥ सीधी राह लगाते है || ज्ञान ॥ क्याइसतनकालाडलडाया | अतरअर्गचा लगाया है || कंठी डोरा पहन गले में | चले निरखता छाया है ॥ साधूसंत को देखके दुर्जन | गंडक ज्यों घुराया है | एसे अज्ञानी हारी नरदेह | जिसे मुशकिल से पाया है | छे कायाकी रक्षा करना । सूत्रों से दिखलाते हैं | ज्ञानी. ॥ तजोत्रियाका संग झुंठा । जिनने केइ को कियेकंगाल ॥ जो नर हैं अन्धे उनको । नरकके अंदर दिये हैं डाल ॥ दानदया सत्यशील आराधो । यहीरचा है स्वर्गका ख्याल सायरका गाना सुनाते। चतुरनको यों हीरालाल || रत्नचंदजी गुरू ज्ञान सिखाया | उनको शीस झुकाते हैं. ॥ ज्ञानी ॥ 11 8 11 11 4 11 1 Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३९) ॥ लोक स्वरूप दर्शक-लावणी खांत खडी॥ सुनोजिकरयह तीन लोकका।ज्ञानीकाज्ञानसुनातेहैं।। चउदा राजू प्रमान देखलो।स्वर्गनर्कबतलातेहैं।आ॥ सात राजू प्रमाण उंचे हैं।सात राजू नीचो जानी॥ पांचसो त्रेसठ भेद जीवकाात्रस स्थावर वस्ता प्रानी॥ चार गति चौवीस दंडक हैं। सवही इसमें समानी॥ सात राजूवोअधोभवनमें।भवनपतिव्यंत्तरनठानी॥ व्यंत्तरदेवके नगरअसंख्या।लंबा चौडा पहचानी ॥ सातकोटऔरबहोत्तरलाखहै।भवनपतीयोंकेभवनानी। व्यंत्तर देवका बत्तीस इन्द्र है। वीस भवनवासी कहलाते हैं ।। च. ॥ ॥१॥ सात नर्ककावचानसुनलो।सात राजूजो फरमाया॥ गुन पञ्चासपांथडे,चोरासीलाखनौवासावतलाया। वसे जीव बहुतकाल नर्कौ । मोटा पाप जो कमाया।। परमाधामी पन्दरहजातका। पापीको दुःख देसताया। Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तिर्यंच मनुष्य और जोतषी । मध्य लोकमें कहवाया ॥ वरणन इनका सुत्रमें देखो । यहां गाने में नहीं आया || द्विप समुद्र असंख्य २ है | सूत्रों में फरमाते हैं ॥ च ॥ २॥ जंबूद्विप है सबके अंदर | लाख जोजन के मांही है || कर्मा भूमी वसे जुगलिया । क्षेत्र नव सुखदाई है || मेरु पर्वत सबसे ऊंचा । वन चार बीटचाइ है ॥ पडंग वनमें सिला चार है । मौछब करे सुर आइहै ॥ चन्द्र सूर्य और सभी जोतषी । रह्या चक्र लगाई है || सोला हजार सुर उठानेवाले | चन्द्र सूर्य के तां है || रात दिन जो करे परियटना । शुभा शुभ वरताते हैं | उदे ॥ ३ ॥ स्वर्ग छब्बीस है उंचा लोकमें । बारह कल्प कहवाना है दश इन्द्र तक सभी रचना | आगे अहेमेन्द्र देवना है ॥ चउरासीलाख सताणु सहश्र । उपर तेवीस जो जाना है "स्वार्थ सिद्ध है सबसे ऊंचा । पुण्यवंतो का ठिकाना है | } Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४१) वहासे बारह जोजन ऊंची । सिद्ध सिलापर मुक्ती पाना है॥ सुख अनंता सिद्ध भगवंतका । जन्म मरण दुःख मिटाना है ॥ जवाहर लालजी गुरु प्रसादे। हीरालाल सुख पाते हैं । चउदे ॥ ४ ॥ ॥ श्री गुरुउपकार लावणी ॥ बंदगी करो गुरुकी गुनवान । जिनोका है सिरपर अहसान ॥ आं.॥ अगर जो दिया है संयम भार। उनोका है मोटा उपकार ॥ होवे जो ज्ञानतणा दातार । गुणोंका गुण भूले जो गंवार ॥ Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४२) दोहा-रात दिवस चरणा विषे । रह्यो चित लपटाय।। अली पंखज और शंख सरीखा । उज्वल ध्यान लगाय ॥ मिलत-हमारी यही विनंती मान ॥ बंदगी॥१॥ भणगुण किया गुरु होशियार । फेरवो मरते खारोखार बचन बोबोले कठिन तलवारा चालसेचले दुष्ट आचार दोहा-अपने मत फिरता फरे । बोले औगुनवाद ॥ __ स्वछन्दी अंध मदमाता । नाम धराते साद॥ मिलत-लजाते घर अपना अज्ञान ॥ बंदगी ॥२॥ डोले केइ नुगरा होवे संसार । जिनोपर लाख पापका भार । मतकरो उनका कोइ इत्बाराफेलाते जगमें झूटीजार दोहा-निनवादि सब देखलो । परभव के दरम्यान॥ 3 काला मुंहका होवे देवता । अलग वसे अवस्थान ॥ Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४३) मिलत्-उन्होंको कोई नहीं छीते जहान॥ बंदगी॥३॥ सिखाया सुत्र अर्थ और पाट । बताइ मोक्ष जा नेकी वाट ॥ उन्होसे रखेजो दिलमें आंटकपटकी भरी गांठमें गांठ दोहा-मोका होवे कोइ कामका । टल्ला लहे तुरंत ॥ पडेल बैल गलियार गधा जिम । चले न सीधा पंथ ।। मिलत-हसरत सहेत है अजान ॥ बंदगी ॥ ४॥ नुगरा करे मोक्षमें वासाकभी नहीं होय मोक्षके पास उसके कर्मसे उसका नाश । फल जिम लगे जं गलमें वांस ॥ दोहा-कण कुन्डको त्यागकर । सूवर भिष्टा खाय ॥ सडे कानके श्वान ज्यों । शास्त्रमें बतलाय॥ मिलत-मिले क्या मान और सन्मान ॥वंदगी॥५॥ अपनी हेसीयतके प्रमानावंदगी करो पकड दो कान Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४४) तकब्बूर तजो याने अभीमान । वही गुणीजन गुणकी खान ॥ दोहा-गुरु महिमा सव मतमें । वरणन करी अनंत॥ हीरालालको जवाहिरलालजी । मिले गुरु गुणवंत ॥ मिलत-जभी तुम करते हो वाख्यान ॥वंदगी॥६॥ ॥वैरागी और स्त्रीका प्रश्नोत्तर॥ वेदक विरला हो-दे॥ बोले बचन वनीता सुणीजे । संयम मार्गइम किम लीजे रे॥सुणोर प्रीतमजी॥१॥ हम तुम घरकी पल्ले लागी। किम छांडो छो बड भागीरे॥ सुणो २ प्री० ॥२॥ परणी घरणी जो तुम प्यारी । किम रहसी घडी एक न्यारी रे ।। सुणो२प्री०॥३॥ - [ अवस्था तुम हम तरुणी। Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४५) विरह खमे किम गजगमनी रे॥ सुणो २ प्री० ॥४॥ कामातुर जो कामनी भारी।। जाणे इन्द्रकी आइ सवारी रे ॥ सुणो २ प्री० ॥५॥ नारीको अबला नाम धरायो। पुरुष पुण्य अनंता लायो रे ॥ सुणो २ प्री० ॥६॥ यो घर मंदिर सुन्दर नारी । क्यों फिरो हो घर २ द्वारी रे ॥ सुणो २ प्री०॥७॥ भोजन काजे परघर जाणो। तिहां हर्ष विखवाद न लाणोरे ॥ सुणो २ प्री० ॥८॥ विनंती म्हारी मानो हो स्वामी। अति हट कियां दुःख पामी रे।। सुणो २ प्री० ॥९॥ कहे प्रीतम सुणो हो नारी। संयम मार्ग हे सुखकारी ।। सुणोरप्रेमलावाय१०॥ जीव अनंता जे दुःख पावे । ते तो धर्म विना पस्तावेरे ॥ सुणो २ प्रे. ॥११॥ Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४६) इम समझाइ संयम लीधो । ते तो जन्म कृतार्थ कीधोरे॥ सुणो २ प्रे० ॥१२॥ कहे हीरालाल जो होवे वैरागी। जाने मोक्षतणी लवलागीरे ॥ सुणो २ प्रे० ॥१३॥ ॥ वैशगीसे स्त्रीकी विनती ॥ हो पिउ पंखीडा-दे० अहो सुणो वाहालाजी, थे लेवो संयम भारजो । माताने किम मेलो झुरती लोयणारेलो ॥ अहोसु० यो नार्यांको संयोगजो। मुखडो तो जोवे बोले वयणस्युरलो ॥१॥ अहोसु० कांइ सन्ध्या थइ तिणवारजो। प्रीतमनी या बाटज जोवे प्रेमदारेलो ॥ अहोसु० किम तजो अदबीचनो। जावे ते किम आवे घडी एक हेमदारेलो. ॥ २॥ अहोसु० नित्य उठ परघर द्वारजो। Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४७) लाधा ने अणलाधा समता राखियेरेलो ॥ अहासु० कोइ बोले कडवा बोलजो । आगो ने वली पाछो नहीं झाकियेरेलो ॥३॥ अहोसु० काइ करणो उग्र विहारजो। उष्ण परिसह शीतज सहवो दोहिलोरेलो ॥ ___ अहोसु० रहवो गुरुकुल वासजो। विनयने वली भक्ती नहीं छे सोहलीरेलो ॥ ४ ॥ अहोसु० राते किम आवे नींदजो। सेजाने संथारो कर किम सोहबोरेलो ॥ अहोसु० घडी जावे ज्यों पट मासजो। आवेरे वीमासण हिवडे जोहबोरेलो ॥ ५ ॥ अहोसु० संयमनो किस्यो जोगजो। भोगोरे मन गमता भोग सुहामणारेलो ।। अहोसु० जो जाणता एहवो संजोगजो। तारे तो किम कीधा व्याव वधामणोरेलो ॥ ६ ॥ Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४८) अहोसु० जो देख्या जिनवर भावजो । तेहनो तो कुण मेटे पुरूष मानवीरेलो॥ अहोसु० यों गावे हीरालाल जो। राणीने इम जाणी समता आणवीरेलो ॥ ७ ॥ ॥ फूट और सम्प विषय || राग कव्वाली. ॥ फूटको मेटिये भाई । किसीके काम कीनाहीं ॥ सम्पसें सम्पत्ती पावे । मिले रिजक रोशनाइ॥७॥ फूट पांडवोने डाली । नवा खुद आप छिपवाली॥ हरीकोक्रोधजो आया।नतीजाक्याउसे पाइ ॥फूट१॥ रावणको फूट क्योंडाली।दियाभविषणकोनिकाली। गया जो रामके पासे रावणपर तेग चलाइ॥फूट२॥ कोणिकने किया युद्ध भारी।लुटादी केशरकीक्यारी॥ चेडानृपबाणचलायाकोणककीजानघबराइ ॥फूट३।। भरत बाहूबल बहू गाजे । राजके लोभके काजे॥ Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४९) इन्द्र खुद आपसमझायावाहुबलसमतालाइ ॥फूट४॥ केइ राजाकी रजपूती । रही शमशेर ज्यों सूती ।। फूटसे टूट गया किल्लावैिरीको लेत दवाइ ॥फूट ॥५॥ फूट जिसे घडेसे जानी । जिसमें ठहरे नहीं पानी।। फूटका मोल हे कमतीपूछना घरोंके मांइ ॥ फूट॥६॥ किसीका चश्म जो फूटा।उसीका माल सब लूटा ॥ फूट गइ पालजो सरवराउसीमें नीरकहांपाइ॥फूट॥७॥ गुरुजवाहिरलालजीपाया।जिन्होंकीकल्पवृक्षलांया। सम्पसे सभी सुखपायाहीरालालदेतचेताइ ॥फूट८॥ ॥ उपदेशी-गजल ॥ आये थे जन्म सुधारने अव हार क्यों चले ॥ जीना जिन्दगी कर वन्दगीजो मोन तोमिलाआं०॥ अय दिल जो तूं पाय दारी जिस्मकी करे ॥ हमराह यह तेरा हुस्नकी साहिब से मिले।आये॥१॥ Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५०) हिर्सकी हवा के अन्दर डौलता हिले || मखियां जो मस्तकधूनती औरदस्तको मले ॥ आयेशा जर जेवरों जवाहर डाले अपने गले ॥ जमके उपर पांव तेरे जोरसे चले || आये || ३ || जो मुस्तफा मखलु में उनसे दूर क्यों टले || मकून सोबत जाहिलों की हसरतमें डले || आये ॥४॥ दे दान सखावत है दौलतकी हांसिले || जिना खोरी की मिजवानी दोजखमे चले || आये ॥५॥ बराय जिनराज आरजू और ना हिले । हमावतसोदरमुस्तकीमें हीरालाल कोमिले| आये ६॥ || सम्यक्त्व की - गजल ॥ सम्यक्त्व रत्न पाय मतीहाररे जिया । मिथ्यात्व मोह अन्धकार टाररे जिया || ढेर | कुगुरू देव हिंशा धर्म छोडरे जिया । Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५१) दया धर्म सती संत प्रीति मांडरे जिया ॥ स ॥१॥ जो सात व्यश्न संग रंग त्यागरे जिया। ज्ञान ध्यान दया दान पंथ लागरे जिया ।। स ॥२॥ चहाय जीववो सभी जीवा दया पालरे जिया। जिनराजके हुकममें तूं चालरे जिया ॥ स ॥ ३ ॥ यह काम क्रोध लोभ चोर मार रे जिया । कर त्याग यो संसार है असार रे जिया ॥ स॥४॥ यह आजकाल कालआज मति कर रे जिया। दम दार वेडापार अव धररे जिया ॥ स ॥ ५॥ जो अवल अमर अविकार हे स्थान रेजिया ॥ हीरालालको हरवक्त वहां सुख मान रे जिया।स॥६॥ उनीससे गुन्नसटका चौमास रे जिया।। जीवागंजमें जैनधर्मका प्रकाश रे जिया ।। स ॥७॥ - Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५२) ॥ स्मरण विधीदर्शक-राग महाड ॥ होसुणचैतन्यप्यारा,मोहनगारा,माळाफेरोरेराज।आंक द्रढासन द्रढमन करी रे । द्रढही ध्यान लगाय ॥ जाप जपो जिनराज कारे। जन्म मरण मिट जाय ॥ हो सुण ॥१॥ यो अवसर चूको मतीरे । ज्यों पारधीको बाण ॥ कम रिपु हणवा भणीरे । कीजो यों परिमाण ॥ हो सुण ॥ २ ॥ मन वच काया स्थिर करीरे। लव लगावो एक ठौर।। गगन गमन पतंगकी जिम । हाथ में लीनी डोर ॥ हो सुण ॥ ३ ॥ मधुकर चित मालती विषेरे । कुंजर कजली बन॥ या विध आत्मा आपणी रे। _ कीजो राम रमन ॥ हो सुण ॥ ४ ॥ जैसे नटवो नाचतां रे । धारे एकण चिन ॥ Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ५३ ) हीरालाल सिद्ध पदको ध्यातां । राखो यही ज रीत ॥ हो सुण ॥ ५ ॥ ॥ सद्बोध - गरवी ॥ प्राणी थारो दया विन कांइ होसी सूल । तूं तो भ्रमनामें गयो भूल || प्राणी || आं० ॥ करत धंधो दिन रात के मांइ । माया देख २ रह्यो फूल || प्राणी ॥ १ ॥ माता कहे मेरा पुत्र कमाऊ । पिता कहे मेरा दीपक कूल ॥ प्राणी ॥ २ ॥ सज शृंगार काया करी चंगी । जास्यो वृक्ष निगुण को मूल || प्राणी ॥ ३ ॥ कर २ कष्ट जन्म एल गमायो । दया धर्म विन जगमें झूल ॥ प्राणी ॥। ४ ॥ काल अनादि से चौगति मांही। Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५४) रह्यो जीवडो यो रुल ॥ प्राणी ॥ ५॥ आंबकी छांयसे सहु सुख पाय । तूं तो बायो पेड बंबूल ॥ प्राणी ॥ ६॥ सतगुरु सीख सुनावे सुत्रकी। तूंतो श्वान ज्यों सामो करे गूल ॥ प्राणी॥७॥ गुरू विन ज्ञान ज्ञान विन नर भव । जैसे गज सिर डाले धूल ॥ प्राणी ॥ ८॥ कहे हीरालाल गुरू जवाहरलालजी । रह्या चांदणी जो खूल ॥ प्राणी ॥ ९ ॥ उपदेशी पद ॥ ऐसे तो गुरु देते हमको ज्ञान ॥०॥ मिलीजी थाने काया नगरी सिरदार । यामे बणज कर हो होशियार ॥ आं०॥ 'कंचन कातो कोट बनाया। सोभे दसही दार ॥ Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ५५ ) देखत सुन्दर लागत सबको । आते जाते संसार || मिली ॥ १ ॥ इस नगरी में बसते केइ | चोर ढोर साहूकार || कइ चतुर और मूर्ख के | केइ गाफिल होशियार ॥ मिली ॥ २ ॥ जो चाहे सो माल भरा है । लेना कर विचार || खाली रहेगा फिर पस्तावे | गुरु कहे वारम्वार || मिली ॥ ३ ॥ माल कमाया जो सुख पाया । भर्या अखूट भंडार ॥ इस काया से करो तपस्या । जन्म मरण दो टार || मिली ॥ ४ ॥ वडे २ पारी आये । लिया लाभ खुद लार ॥ कर्ज चुका कर गये मोक्षमें । जहां मौज करत नरनार || मिली ॥ ५ ॥ केइ कलंदर ऐसे आये | नहीं समजे वैपार ॥ Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ५६ ) उलटा कर्ज किया सिर नंगे । अम्मा को मारी योंही भार ॥ मिली ॥ ६ ॥ उन्नीससो छांट के मांही । ठाना दश परिवार ॥ पारसोलामें आये मुनीश्वर । जवाहरलालजी अणगार || मिली ॥ ७ ॥ हीरालाल कहे सबको ऐसे । रहो गुणी होशियार ॥ पाप अठारा त्यागन करके | आत्म अपनीको तार ॥ मिली ॥ ८ ॥ ॥ उपदेशी पद मोक्ष का बटाउ || देशी उपर्युक्त ॥ चालोजी आपां मोक्ष नगर दरबार || मानोजी म्हारी विनंती वारंवार || आं० ॥ केइ जणात पहोंच गया है । केइक होवे तैयार || ass मसलत करत है मनमें | हां पहोंचे सरकार ॥ चालो ॥ १ ॥ Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५७) ज्ञान घोडा पर साज संयम को | वन वैठा अस्वार ॥ सीधी सडक लीवी शिवपुरकी । क्या लगती देर दार ॥ चालो ॥ २ ॥ विनय विछोना सील सिराना । संमर ओढना लार ॥ बांध गटडिया फेट पकडियां । ॥ चालो ॥ ३ ॥ होगया व्यारम् त्यार तप खरची बांधी या पले । द्रव्य अखूट भन्डार ॥ हजूर साहेबका जहां है टिकाना | शहर बसे गुलजार ॥ चालो ॥ ४ ॥ चार तीर्थ दरबार भरा है | सभापति जिन दीदार | लाख पैंतालीस लम्बा चौडा । सभा मंड श्रेयकार ॥ चालो ॥ ५ ॥ बहुत दिनसे उम्मेदवार है । अरजी दीनी डार || साहिब आपसे मिलने आता । कमों की की तकरार ॥ चाल ॥ ६ ॥ Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५८) केइ जणा तो ज्ञान सुणीने।लीनी सम्यक्त्व धार ॥ वरषत पाणी रह गया कोरा । केईक ऐसा नरनार ॥चालो ॥ ७ ॥ नगर उज्जैनी आया विचरता । ठाना दस परिवार। कहे हीरालाल साल चौसटके । वरते मङ्गला चार ॥ चालो ॥ ८॥ ॥ ज्ञान बगीचा लावणी-छोटी कडीमें ॥ __ मालीने लगाया बाग । बडा गुलजारी॥ फुल रहे फूल फलवाद केशरकी क्यारी ॥ आं०॥ आत्म अपनीका अम्बका पेड लगाया ॥ यत्नाका जांबू डालोडाल फैलाया ॥ यह सतका सीताफल शीतल है छाया॥ लगत है आति मीठा अमृत फल खाया॥ यह बड पीपल दोइ अभय सुपात्र मारी।फुल ॥१॥ . Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५९) मनका मोगरा चितकी चमेली फैली । गुरुभक्तीका गुलाव डगाल्यां पहली ।। किरियाकी केतकी केवडा दोनों भेली। चरचाको चंदन शीतल सुगन्धी मेली ॥ या सील रसनी सडक बनी चउतारी ॥ फुल ॥२॥ यह तीन तत्वका तीनों भेद कहलाना । नारंगी नीम्बू जामफलका खाना ।। नारेल खजूरा खारक पेड मेवाना। उत्तम लेशा तीनों तीन पहचाना ।। या दाखोंकी वेलीविनयका मंडप जहारी।फुल।।३॥ यह नव तत्वका मेवा नाना प्रकारे। अंजीर अंगुर विदाम पिस्ता छहारे । चैतन्य माली करे रक्षा वागकी वाहारे । धमाका कोट अति किया वहुत होशियारे ॥ प्रमाद रूप वन्तुकी करो रखवाली ॥ फुल ॥४॥ Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६०) या जिनवाणीका नीर भर २ पीलावे । मन वच कायाकी जेर धोरी चलावे ॥ जब अमृत फलके खाया रोग नही आवे। सब जन्म जरा के दुःख दूर टलावे ॥ हीरालालकहेऐसीवागकीवहारकरोनरनारी।फुल॥५॥ आत्मज्ञान-लावणी. अगर दुनिया में हो होशियार। करत दिल जान सो विचार ॥ आं०॥ कहां से आया हो तुम चाल। कहां के हो तुम रहने वाल ।। किसीके हुकमसे करते ख्याल । इहां तुम मोज करो महाबाल ॥ दोहा-क्या तुम लेकरआविया।किसकाकिया उधार॥ ' क्या कमाइ पल्ले बान्धी । अब क्या करो विचार।। Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६१) मिलत-किसीके हुकमपर चलते यार ।। अगर ॥१॥ भृले क्यों योवन के जोर घमन्ड । भृले क्यों देख दोलत प्रचन्ड ।। भूले क्यों देख विरादर अखन्ड । होवेगा तेरे सिरपर यम दन्ड ॥ दोहा-क्यो भूला गुल वदनपर।गजरथ तेज तुरंग।। राज पाट और जमी जेवर।क्या क्या आते संग॥ मिलत-बन्दे क्यों होते हो अन्ये यार ॥ अगर ॥२॥ घमन्डी हुवे केइ सरदार। उन्हों का पता नपाया यार। वाया तुमको वारम्बार । होगा दिल्यामतके रोज इजहार ॥ दोहा-जज कोर्ट के बीच में । होगा वहां इन्साफ ।। हाकिम हुक्म वहां गर्मागर्म है। क्या तुम दोगे जवाब। मिलत-लगे क्या वहांपर तुम्हारे बाप ॥ अगर ॥२॥ आखिर अंतः यम आयाही खलास । पहोंचना Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६२) हजरतही के पास ॥ इताअत करोमिया फरमास । जिंदगी जीना इत्कार . के वास ॥ दोहा-जन्म सुधारण चहात हो। तो करो गुरुकी सेव॥ हीरालाल दरम्यान सभाके । चेताते नित्यमेव ॥ मिलत-गाफिल क्यों होतेहो अन्धे यार॥अग४॥ ॥ पण्डित लक्षण-लावणी ॥ पण्डित होवे जो परवीन । पापसे डरे रात और दिन ॥ आं०॥ दर्द सब जीवोंका पहिचान । हटावो क्रोध लोभ और मान ॥ हणे नही किसी जीवके प्रान । समजलो यही ज्ञान और ध्यान॥ दोहा-केइ कन्द मूल भक्षण करामद मांसको अहार॥ ___ रयणी भोजन रक्त काममें । दुर्बुद्धी आचार ॥ Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६३) मिलन-डोलते मायामें ज्यों वग मीन॥ पण्डित ॥१॥ चंद रोज चलने के दरम्यान। गुजरी वक्तपर घर ध्यान॥ कगे गुण अवगुणकी पहिचान । घमन्ड क्यों रखते हो इन्सान ॥ दोहा-क्यों जानेहो वैरानको । सविल वडाहे दूर ॥ अन्धे हो क्यों गिरो कृपमें । जो दरियाका पूर ।। मिलत-क्यों तुम करतेहो गमगीन । पण्डित।।२।। साधूला पन्थ कठिण आचार । खोजा क्या उठाये तलवार ॥ गधेने उटे न गजका भार । क क्या कर गजका कार॥ दोहा-माया जाल के बीच में । फसे दोलन परिवार।। जया बाज अशक हकमे । यहले म अणगार !! मिलन-छोलता लोभ माने हो लीन ॥ पनि ॥३॥ चगेअब ध्यान मदामहीवागतोड नब कमांकी जंजीर। रमको युवद दिल पिजीगकभी नहीं होते हेंदिलगी। Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६४) दोहा-गुन्हेगारके गुन्हेको । वफा करो महाराज॥ जवाहरलालजी महाराज चरणसे।सभी सुधरेकाज॥ मिलत-हीरालाल चरणोंमें चित चीन ॥पण्डित॥४॥ ॥कोध-निषेधाममतमतकीजो राजधनमें यहदेशी॥ क्रोध मत कीजोरे प्राणी । थाने वरजे है गुरु ज्ञानी ॥क्रोध ॥ आ०॥ क्रोड बर्ष लग तपस्यातपिया।क्षिणमे होत विलानी॥ कठिणबचनसहे नरकोइ । ऐसोतपनहीं जानी।को॥१ कठिण बचन बोले नर कोइ । समता घटमें आनी॥ क्रोधानल बुझावोमनकी। मिले मोक्ष निर्वानीको॥२ क्रोध समान नहीं विष कोइ । पाप माहे अगवानी ॥ क्रोध झालजो ऊठी मनमें । सींचो क्षमा पानी।।क्रो॥३ घणा दिनाकी प्रीति जूनी। क्रोधी कहीं पेहचानी॥ जिमदूधनिमकपडियाविगडजायसवघानीको॥४ कषाय रुपणी अमि बुझावा। सूत्रधार सींचानी ॥ Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ६५ ) क्षमा खड्ग जोलिया हाथमें । दुर्जन के घर हानी | को॥५ क्रोधी नर मरकर दुर्गति में । जन्म लेत है जानी ॥ श्वान सर्पविली मरकटको । भव संचितविकलानी ॥ को६ जवाहरलालजी गुरू गुणवंता । शीतलचंद समानी ॥ हीरालालपीवोउपशम रस। केवल प्रगटेआनीको ७ || पद - सम्यक्त्वको हितशिक्षा || देशी वरोक्त | समकित शुद्ध राखो शुद्ध राखो । आयो हाथेरत्नमती न्हाखो || समकित || ढेर || कुरदेव धर्मकी सेवा | स्वपनामें मत झांखो ॥ उवट वाट घाट दुर्गतिका । संगन कीजे यांको ॥ ॥ समकित ॥ १ ॥ हिंशामा धर्म बतावे | ताके मुख धूल हांसो ॥ मिया पाप बतायो मोटो । आडो न आसी काको || समकित ॥ २ ॥ Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६६) तत्व तीनको निर्णय करने । हृदयमें धर राखो ॥ पाखन्डीको परिचय छांडो । जन्म सुधरसी थांको ॥समकित ॥३॥ सबही ग्रन्थ शास्त्र सुनाया । षट भाषा जो भाखो॥ क्रिया कष्ट इष्ट तुमारा। लूण अलूणा चाखो।।सम॥४॥ पांच दोषण टालो सम्यक्त्वका । मिथ्यात्व पञ्चीस ___ भवाको ॥ लक्षण पांचकी औलख कीजे । यो सम्यक्त्वको शाखो ॥ समकित ॥ ५॥ दुर्लभ मेलो मिलियो सज्जन । यत्न करीजोयांको॥ देवादिकसे डोलो मत कोइ । यो कहनो संताको ॥ समकित ॥ ६॥ दया पथरनो सम्वर औढनो। आत्म अपनी ढांको। हीरालाल शुद्ध मार्ग चालो । बांका दोडा मत झांको ॥ समकित ॥ ७॥ Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ६७ ) || पद त्रष्णाकी फांस || राग-धन्नाश्री ॥ अरे हो तृष्णा मोह लियो संसार || बाल बुट्टा योवन वाला ॥ न कोइ पाया पार || अरे हो तृष्णा || आंकडी || राज करंता राजा मोह्या । पट खन्डके सरदार ॥ अकस्मात बात नही मेले । न तजे टेक लगार ॥ ॥ अरे हो ॥ १ ॥ कामणगारी है तु नारी । वश कीधा भरतार || कर २ प्रीतीत न हुई । यदा तरुणी संसार ॥ ॥ अरे हो || २ || तृष्णा तरंगनी है अति गहनीं । इन्द्रादिक दीना डार ॥ पार लहेपुरुषोत्तमकोइ । कटिनअमिकी झाल||अरे तृष्णांची सब जग फैली | फल लागे खग धार || खानेवाला वोमत हीना । उनको डाले मार||अरे || || त्याग तृष्णा संयम पाले । छोड धन भर्या भन्डार ॥ Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६८) __ अपने मनको वस करलीनो । तुरंग चडयो ज्यों स्वार ।। अरे ॥५॥ हमको चाह है एकही उनकी । जो वक्से दातार॥ कहेहीरालाल ध्यानलगायो।ज्योंचरखाकोतार॥अरें ॥ पद-वैरागी के वाक्य ॥ राग-धन्नाश्री॥ अब हम आये समज के द्वार। सत्गुरु ज्ञान ध्यान समजायो॥ ताते भये अणगार ॥ अब हम आये ॥ टेर ।। भर्मकी टाटी भश्मकी बाटी। आककी टटिया निसारा। ऐसे संसारभयोभर्मनामेनाकोइ पायापार।अब॥१॥ नट्टे खट्टे होवे जो हट्टे । उनने रचीहै जार ॥ डालनफन्दऔरनको डोलाभरियाकपटभन्डारा,अब २ मन मतवाला कर्मका जाला । दूर किया जंजार ॥ जोगुरूज्ञानीहैनिर्भिमानी।तारणतरणअणगा।अब Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६९) ज्ञान दीपक जोया घट अन्दर । दूर किया अन्धार ॥ बिकटघाटसेपारउतारणाकियाघणा उपकार ॥ अब ४ हीरालाल भजमाल नामकी। जो कोइ होवे होशियार॥ रागधन्नाश्रीधुन्नलगाइसुणतां हर्ष अपार ॥ अव५॥ आपद-सद्गुरू बौध ॥ गाफल मतरहै-यह देशी ॥ गुरूजी ऐसा ज्ञान सुनावे रे । अन्धेको मार्ग दिखलावे ॥ टेर ॥ भवसागर से पार उतारे। काम क्रोध की लेहर निवारे ॥ खोटी द्रष्टि किसी परनारे। अपनी जान ज्यूं जान बचावे ॥ गुरुजी ॥१॥ जिसको संगत है मुनिवर की। उसकी नाव भव जलसे तिरेगी। बिकट घाटसे पार उतरेगी। Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६८) अपने मनको वस करलीनो । तुरंग चडयो ज्यों स्वार ।। अरे ॥५॥ हमको चाह है एकही उनकी। जो वक्से दातार ॥ कहेहीरालाल ध्यानलगायोज्योंचरखाकोतार॥अरेंद ॥ पद-वैरागी के वाक्य ॥ राग-धन्नाश्री॥ अब हम आये समज के द्वार । सत्गुरु ज्ञान ध्यान समजायो॥ ताते भये अणगार ॥ अब हम आये ॥ टेर ।। भर्मकी टाटी भश्मकी बाटी। आककी टटियानिसारा। ऐसे संसारभयो भर्मनामे।नाकोइ पायापार।।अब॥१॥ नट्टे खट्टे होवे जो हट्टे । उनने रचीहै जार ॥ डालनफन्दऔरनको डोलाभरियाकपटभन्डार॥अब २ मन मतवाला कर्मका जाला । दूर किया जंजार॥ जोगुरूज्ञानीहैनिर्भिमानी।तारणतरणअणगा।अव३ Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६९) ज्ञान दीपक जोया घट अन्दर । दूर किया अन्धार ॥ बिकटघाटसेपारउतारणाकियाघणा उपकार॥अब ४ हीरालाल भजमाल नामकी। जो कोइ होवे होशियार। रागधन्नाश्रीधुन्नलगाइ।सुणतां हर्ष अपार ॥ अब५॥ आपद-सद्गुरू बौध ॥ गाफल मतरहै-यह देशी ॥ गुरूजी ऐसा ज्ञान सुनावे रे । अन्धेको मार्ग दिखलावे ॥ टेर ॥ भवसागर से पार उतारे। काम क्रोध की लेहर निवारे ॥ खोटी द्रष्टि किसी परनारे। अपनी जान ज्यूं जान बचावे ॥ गुरुजी ॥१॥ जिसको संगत है मुनिवर की। उसकी नाव भव जलसे तिरेगी। बिकट घाटसे पार उतरेगी। Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७०) वो कभी नहीं खता खावे ॥ गुरुजी॥ २॥ खोल चश्म तुम अपने देखो। माया जालसे मतना बेहको॥ आगे तुमको पूछे लेखो। बडे २ घमन्डी घबरावे ॥ गुरुजी॥३॥ हकताला ने जो हुकम दियाथा । तुमने भी कुछ कौल कियाथा । अबक्या माफी मांग लियाथा । कियामतको फिर पस्तावे ॥ गुरुजी ॥४॥ सब जीवों की रक्षा करना। सच्ची राहपर पांव जो भरना । बदों की संगत कभी मत करना। जुल्मियोका जुल्म हटावे ॥ गुरुजी ॥ ५ ॥ यह दुनिया है हाटका मेला। कौन तुमारे संग चलेला ॥ Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कहोगे हमको नहीं किया पहिला। मुरिदों को अकल फिर आवे ॥ गुरुजी ॥६॥ अगर तुमारी है होशियारी। भक्ती करो गुणवत्तो की भारी ॥ हीरालाल कहे ये अकल हमारी । आलीजासे आलीजा पद पावे॥ गुरुजी॥७॥ ॥ पंद-सच्चामित्र ॥ गजल-कवाली ॥ मित्रका भरोसा भारी । वोही जो काम आते हैं। मुनासिबसमजके दिलको।जानसेजानलगाते हैं। मि? होवे कोइ बचनका सूरा । उनोका भागहै पूरा ॥ हजारों कोस भी जावे । वहां भी काम आते हैं।मिर मित्र वो दुःख मिटावे । सजन पन करके बतलावे॥ कृष्णधातकी खन्ड गये । द्रोपती लेकर आते हैं।मि३ भाइ लक्ष्मण के कारण । भरत उसी वक्त में धाया॥ Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७०) वो कभी नहीं खता खावे ॥ गुरुजी ॥ २॥ खोल चश्म तुम अपने देखो। माया जालसे मतना बेहको॥ आगे तुमको पूछे लेखो। बडे २ घमन्डी घबरावे ॥ गुरुजी॥३॥ हकताला ने जो हुकम दियाथा । तुमने भी कुछ कौल कियाथा । अबक्या माफी मांग लियाथा । कियामतको फिर पस्तावे ॥ गुरुजी ॥४॥ सब जीवों की रक्षा करना। सच्ची राहपर पांव जो भरना। बदों की संगत कभी मत करना । जुल्मियोका जुल्म हटावे ॥ गुरुजी ॥५॥ यह दुनिया है हाटका मेला । कौन तुमारे संग चलेला ॥ Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७१) कहोगे हमको नहीं किया पहिला। मुरिदों को अकल फिर आवे ॥ गुरुजी ॥६॥ अगर तुमारी है होशियारी। भक्ती करो गुणवत्तो की भारी ॥ हीरालाल कहे ये अक्कल हमारी । आलीजासे आलीजा पद पावे ॥ गुरुजी॥७॥ ॥ पंद-सच्चामित्र ।। गजल-कवाली ॥ मित्रका भरोसा भारी । वोही जो काम आते हैं। मुनासिबसमजके दिलको।जानसेजानलगाते हैं।मि? होवे कोइ बचनका सूरा । उनोका भागहै पूरा ॥ हजारों कोस भी जावे । वहां भी काम आते हैं।मिर मित्र वो दुःख मिटावे । सज्जन पन करके बतलावे॥ कृष्णधातकी खन्ड गये। द्रोपती लेकर आते हैं।मि३ भाइ लक्ष्मण के कारण । भरत उर्स क्त । Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७२) विसल्या दस्त लगाया। शक्ती गाउ मिटाते हैं।।मि४ अगर दिल साफ है जिनका | प्रेम से रहे मन उनका ॥ द्रोह से होवे मित्र खारा । कपट से गूंजजाते हैं। मि५ हमारा काज सुधारो । बिरादर पार उतारो॥ हीरालाल मित्रतायेही। मोक्ष के सुखचहाते है।मिद ॥ पद-सद्बौध ॥ म्हारोमन राच्यो राज राच्यो यह देशी॥ अजब रंग लागो जी लागो । तजियो जगत् को धन्धो आगो ॥ टेर । कमी नहीं यहां कोई बातकी । जो चाहिये सो ___ मांगो ॥ अजब ॥ १ ॥ अखूट खजाना भरा हमारे। लेना होवे तो पीछा सांगो क्यो भूला तूं घमन्ड मन्डमें । बान्धी बांकी पागो ॥ अजब ॥२॥ Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ७३ ) दयाधर्म रूचे नहीं तुजको । बोल नजाने बागो बणज किया वैपारीतुमको। क्याफलहाथे लागो ॥अ३ आवागमनका चरखाडौले । जैसे भाडाकोतांगो क्यों सोते हो अपनी नींद मे । अबतो सज्जन जागो ॥ अ४ गुजरगइ वापिस नहीं आती । जैसो सुरंगनीरागो जो खुद आपही फेरेउघाडा। गोया उसको नागो।अ५ क्या वक्सीस करेगा तुमको | कमल केसरीवागो धर्म तख्त के उपर बैठे। पकडे चारों पागो || अ६ तप जप खरची बान्धी पल्ले | पाप अष्टादश त्यागो ॥ हीरालालको जन्म सुधार्यो । वामीजीवडभाग ॥अ७ ॥ पद - शिक्षा किसे लगे || देशी वरोक्त || अकल विन, नहीं लागे २ | सतगुरु सीख शुद्धज्ञान | पुण्य विन० || अकल || आतिश होवे तो तेजी जागे । भश्मीकोक्या थागे ॥ Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७४) पुरुषाकारबिना वरदाया। कभीनहींहोवेआगे॥॥१ सूखा वृक्षको जल जो सींचे । फलफूल नहीं लागे॥ मृत्युकको अवाज लगाया । कबू नींद नहीं जागे ॥ अकल ॥ २ ॥ खोजाको समशेर बन्धाकर। रणजंगमें करे आगे॥ तेग उठावण वेला खोजा । पाठाफिरकरभागे|अ३ कृपणकी घणी करी बडाइ । दान हाथसे मांगे ॥ नारी बांझके चडे नहीं पानो । खर नहीं बोले सिंघ आगे॥ अकल ॥ ४ ॥ अधर्मीको धर्मी बनायां । शुद्ध मार्ग नहीं लागे। वारा वर्षे पाणीम रहेतो । विष विष भाव नहीं त्यागे ॥ अकल ॥ ५ ॥ कायर को वैराग्य चढावे । कर २ सिन्धू रागे ॥ हीरालाल सूरवीरहोवे तो। तुर्तविपतीको त्यागे॥६ Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ७५ ) विनयका पद आऊखो ट्राने सांन्धो को नही रे || यह देशी || विनय करी जे गुरुदेव कोरे । अहो निशचरण के मायरे ॥ ज्ञान दर्शन वली तपतणोरे। चारित्रनिर्मळथायरे ॥ वि१ संजोग छोडी दो प्रकार कारे । मातपिता ने घर नाररे ॥ अभ्यंतर विपय कषायकोरे । त्यागी जो होवे अणगाररे ॥ विनय ॥ २ ॥ विनयआराधेआचार्य कोरे । होवे अंगचेष्टा को जाणरे ॥ वल्लभ लागे गुरुदेवकोरे । जाणे ज्यों जीवन प्राणरे ॥ विनय ॥ ३ ॥ मुख अरि बचन प्रकाशतोरे । दुष्ट आचार अयोगरे ॥ सड्या कानका श्वान सारखोरे । निर्बंछ तससबलोगरे ॥ विनय ॥ ४ ॥ भाजन भयो छोडेकणतणोरे । शुकर भिष्टा जखायेरे ॥ उच्च आचार जो विनय तणोरे | मूकीने नीच नीचो जायरे || विनय ॥ ५ ॥ Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७६) इमजाणीनेविनयसाचवोरे।जाणीनिजहितउपकाररे।। पुत्रने शिष्य जाणो सरीखारे ।आपे ते ज्ञान भन्डाररे ॥ विनय ॥६॥ अहंकारी क्रोधीप्रमादीहोवेरे। रोगीने आलसीजाणरे॥ शिक्षा नहीं पामे गुरुज्ञानकीरे। ये पांच बोलके प्रमाणरे ॥विनय ॥ ७॥ आठबोलकरशिक्षापामियेरे । हंसेनहीइन्द्रीदमनहाररे॥ मर्म नबोले कोइ पारकारे। छोटा मोटा टालेअतिचाररे ॥विनय ॥ ८॥ लोलपी नहीं रसना तणोरे।होवे जे घणाक्षम्यावंतरे॥ झूठ न बोले साच सुहामणोरे।थासे जो एहवो कोइ संतरे ॥ विनय ॥ ९ ॥ शंख ने दूध दोइ ऊजलारे। शोहे छे जगत् मझाररे॥ त्यों सुपात्रने ज्ञान सीखव्योरे।होवेघणाको आधाररे ॥ विनय ॥ १० ॥ Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७७) इम अनेक औपमा करीरे । बहु सुत्रीबहुगुणवानरे॥ तारे निजपरं आत्मारे। कहां लग कीजे वखानेरे ॥विनय ॥ ११ ॥ गर्गाचार्यकेशिष्यपांचसोरे। मिल्याकुपात्रक्लेशीआयरे॥ गलियार गद्धा बैल सारीखारे । काम भोलायां नट जायरे ॥ विनय ॥ १२ ॥ आचार्य मनमांही चिंतव्योरे । छोडयो अवनितां को संगरे ॥ तपजप करणी कीधी निर्मळीरे ।दिन २ चडतारंगरे ॥विनय ॥ १३ ॥ करेआशातना गुरुदेवकीरे। बोले जो अवगुण वादरे॥ अहितकारी होवे तेहनेरे । ज्यों सर्प छेड्या विषवादरे ॥ विनय ॥ १४ ॥ धर्मवृक्ष मूल विनय छेरे । सींच्या स्यु वधे परिवाररे॥ पान फूल शाखा नीपजेरे। पामे मोक्ष सुख श्रेयकाररे ॥विनय ॥ १५॥ Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (८०) प्रदेशी राजाजी, चौकीदार चेतावे हो । नगरीका लोक जगावे हो प्रदेशी राजाजी ॥६॥ प्रदेशी राजाजी, दिन ऊगो आँख उघाडो हो। पाछे कौन आसीतुम लारो हो प्रदेशी राजाजी ॥७॥ प्रदेशी राजाजी, घरभवकी या खरची हो । पल्ले बान्ध्या विन किम सरसी हो प्रदेशी राजाजी॥८॥ प्रदेशी राजाजी, गाफल गोता खावें हो। जाका नाव दरियामें जावे हो प्रदेशी राजाजी ॥९॥ प्रदेशी राजाजी, यो अवसर मति चूको हो । माया जालकी ममता मूको हो प्रदेशी राजाजी॥१०॥ प्रदेशी राजाजी, हीरालाल कहे सोही स्याना हो । अपना हित हितको जाना हो प्रदेशी राजाजी ॥११॥ ॥पद-आत्मध्यान ॥ राग-धनाश्री॥ आत्मध्यानधरोमनमेशानरभवलीजोसुधारी रे॥आ.॥ जगत्का सुख आनित्य सब जाणो। लालची हुवा नरनारी रे ॥ आत्म ॥ १॥ Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (८१) सात धातूको पिंजर बनियो । क्या थें काया सिणगारी रे. ॥ आत्म ॥ २ ॥ सजन संपत मिलत बहू तेरी। क्या तूं लाया इखत्यारी रे ॥ आत्म ॥ ३ ॥ दुःख निवारतारे जो हमको। उन पुरुषोंकी बलिहारी रे ॥ आत्म ॥ ४ ॥ कहे हीरालाल निहाल करो निज। मक्सद लेना विचारी रे ॥ आत्म ॥ ५ ॥ ॥ पद-समता गुण दर्शक ॥ अंतर मेल मिट्यो नहीं मनको ॥ यह देशी ॥ लोभ लालचकी लाय बुजावो । पीवो उपशम रस प्यालारे ॥टेर ।। पीवत प्याला मन मतवाला । मांहे भरिया मशालारे ॥ लोभ ॥ १ ॥ Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (८२) भूल गयो भर्मना में भगवंत । जो दुःख मेटनवालारे ॥ लोभ ॥ २ ॥ रात दिवस तूं करत है धंधो । कूड कपट करी जालारे ॥ लोभ ॥ ३ ॥ सजन वोही सब दुःख मिटावे । अंतःकरण से वाहलारे ॥ लोभ ॥ ४ ॥ पुद्गल सुखमें सबर न आवे । इन्द्रादिक भूपालारे ॥ लोभ ॥ ५॥ कहे हीरालाल दयालसे अर्जी । दुर्गतीका देवो टालारे ॥ लोभ ॥ ६ ॥ ६ ॥ पद-निंदा दुर्गुण राग-अलीयामारु-मल्हार॥ अर्जी निंदककी नीत खोटी । यो तो बात बनावे सांची झूटी ॥टेर ॥ सीताजी सिर दोष चडायो । Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (८३) शोकां मिल सला घोटी ॥ निंदककी ॥ १ ॥ सुभद्राजीको कलङ्क लगायो। सासू ग्रही जिम चौटी ॥ निंदककी ॥ २ ॥ दुर्जन का कोइ दाव लगे तो। ज्यों बाज पाइ मांस बोटी ॥ निंदककी ॥ ३ ॥ निंदक मैला सबही हैलो । जिम भरी अशुचिये कोटी ॥ निंदककी ॥ ४ ॥ निंदक निंदा करतही डोले । जब जीमे अहार रूचे रोटी ॥ निंदककी ॥ ५ ॥ रात्री दिन छल रहे ताकतो । जिम बुगलो ताके मच्छी मोटी ।। निंदककी ।। ६ ।। कहे हीरालाल चाल चतुरनकी। गुण ग्रह जो समज मोटी ॥ निंदककी ॥ ७ ॥ Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (८४) ॥ पद-कलियुग दर्शक ॥ राग-होली ॥ कलयुगमें पाप अति छाया । कलयुगमें ॥ टेर।। मात पिता गुरु देवकी भक्ति । घट गइ कलयुगके आया ॥ कलयुगमें ॥१॥ बेटीके साटे बाप परणियो। नानीसी लाडी घरमें लाया ॥ कलयुगमें ॥२॥ बेची पुत्रीको व्याव रचायो । बुढा बींद परणवा आया ॥ कलयुगमें ॥३॥ गौ घातिक नर दुष्टकी सेवा । राजाअतित कर दुःख पाया।। कलयुगमें॥ ४॥ मेघदृष्टी दुर्भिक्ष दिखावे । अकाले वर्षे बिन चहाया ॥ कलयुगमें ॥५॥ लाज शर्म नहीं रही लोकांमें । बोले बके जैसो मद पाया ॥ कलयुगमें ॥६॥ कुगुरुको देख भूत जिम नाचे। ३ Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (८५) सत्पुरुषोंको देखकर घुर्राया । कलयुगमें ॥ ७॥ इत्यादी लक्षण कलयुगका । सतगुरुजी मुखे फरमाया ॥ कलयुगमें ॥ ८ ॥ कहे हीरालाल ऐसे कलयुगमें । जैन धर्म कल्पवृक्ष छाया ॥ कलयुगमें ॥ ९ ॥ ॥ पद-जरा गुण दर्शक-चेतन चेतोरे-देशी ॥ जरा आइरे२तूंचेत चितानन्द तज गुमराइरे।।टेर॥ गई अवस्था जौबनियाकी । आयो बुढापो वैरीरे॥ कायापुरीको किल्लो लियो। चउदिश घेरीरे ॥ज? बेटा बेटी मुख नहीं बोले । बुद्दो हेला पाडेरे । घरकी त्रीया मुख मचकोडे। जगा विगाडेरे ॥जर सारो दिन वैसी रहे घरमें । बाहिर क्यों नहीं डौले रे॥ घरका माणस सामां बोले, शंकादि खोले रे ॥ज३ Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४६) मांगे खीचडी मेले राबडी। पीवे सेहती सेहती रे ।। दंतपुरीका किल्ला पडिया। शिर छाइ सफेती रे॥ज अठी वठीने जोवे डोकरो। जोर कांइ नहीं चाले रे।। नाक झरे आंखे कम सूझे। खाट पोलमें डालेरे॥ज५ स्वार्थकी सगाइ भाई । बुढाने कुण पूछेरे ॥ देली चडता दीसे डूंगरी, । पगल्या धूजेरे॥ ज ६ डोकरियाकेबान्ध्यो टोकरियो। काम पडया हलावेरे॥ अन्नपाणी ऊंचास्यूं मेले, । पडयो २ पस्तावेरे॥ज७ जरा प्रभावे बुद्धि बिगडी । धर्म करणको वेटोरे ॥ मायाजालमें फसियो मूर्ख, । पापमें सेंठोरे ॥ ज ८ जब लग काया रहे निरोगी।इन्द्रिय पांचो पूरीरे ॥ हीरालाल कहे लावोलीजे, । कर्म चक चूरीरे ॥ जर ॥ पद-मनको सद्बोध. देशी-बणजाराकी ॥. श्री जिनराज अर्ज हमारी। Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (८७) मन नहीं माने म्हारी केण हो । गुरुजी हां हो जिनन्दजी। किण विध राखू यो मन वारी हो ।। टेर ॥१॥ चंचल चोर तणी परे चाले । मन पवन गति वेग हो ।गुरुजी ॥२॥ भक्ती में भंग करे मन मेलो। तो वार २ समझाबू हो ॥गुरुजी ॥३॥ मन तुरंग तणी परे चाले । यो भटकत रहे दिनरात हो । गुरुजी ॥४॥ पुद्गल रचना या संपत परकी। तो देख २ ललचावे हो ॥ गुरुजी ॥५॥ ध्यान चुकाय डिगाइ डाल्यां। मुनिवर केइ गुणवंत हो ॥ गुरुजी ॥६॥ मेघ मुनीको मन डिगायो। तो अपाढ भूती घर आया हो ।। गुरुजी ॥७॥ Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (८८ ) अरणक मुनीको मन ललचायो । तो और घणा भरमाया हो ॥ गुरुजी ॥८॥ प्रसन्नचन्दजी परिणाममें चडिया। तो ततक्षिण केवल पाया हो ॥गुरुजी।।९॥ ज्ञानसे बान्धी धैर्य धर राखो। तो संयम के घर लावो हो ॥ गुरुजी ॥१०॥ कहे हीरालाल मन वश कीजे। तो मोक्ष तणा फल पावो हो ॥गुरुजी॥११॥, ॥ पद-अभिमानीके लक्षण ॥ राग महाड ॥ फोकट बादलियां जिम गाजे । तेहनो हृदय निपट नीलाजे ॥फोकट ॥ टेर.॥ मुखडे बचन बोले अति मीठो । काज सुधारं आज॥ दमडी देतां जीवडो दुःखे । परमार्थके काजे॥फो॥१॥ Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (८९ ) पाच जनामें बैठी आगे । बात बनावे ताजे॥ धर्म क्रियामें कपट करतो। सुखियोसबमें वाजे॥फो॥२॥ धर्म उन्नती करवा सारु । कार्य करंतो लाजे॥ मृत्युक कारणव्याव वगैरा।मानबडाइ छाजे॥फो॥३॥ गर्व करी इम वोले गेहलो । बान्धू समदर पाजे ॥ कामतणोकोइअवसरआयां। पाछोतोकिमभाजे॥फोट स्वधर्मीको साज देतां । दान सुपातरियां जे ॥ हीरालालकहऐसामाणसकोकिमसुधरसीकाजे॥फो५ ॥ गजल-महमदी फरमान ॥ राग-कव्वाली.॥ सभीका प्राण बचाना। वजन किसको न करवाना। खोज दिल बीच अहो भाइ। सभी शास्त्रके मांही? महमदका जोफरमानां। कहां लिखासो भी वतलाना॥ हुक्म हजरतका वोही । तोरात अंजिल फरकानार कांटातूं लगामत किस्के । सभी दिल दर्द है जिस्को। Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (९०) तीर तेरे हक पर होवेगा। किसीपर भूल नहीं जाना३ पेशाबी पैदास जो गोया । वही नापाक है गोया ॥ कुन्द गौस्त के खुरशद । वही दोजख पाया ना ४ विगाना गोस्त जो खाते । बचसल सनासे बनवाते॥ तुराअस्तगौस्तको चहाते।फिकर तुजकोनहींलाना५ अपनी जान है जैसी सभी की समज लो वैसी॥ अगर खातिर नहीं तुजको।तो तेरी गरदन पर धरानाद अजा बुलवाकर क्योंमारो। तो अपना पुत्रक्योंप्यारो॥ चिडियां चित २ करती है। सभीपर महर तो लाना७ पैदाजिसने किया तुमको।नैकीपर रहना हरदमको॥ किसीका गला मत काटो। मियां यही महर कहलाना चस्म तुम हिये के खोलोजिक्र दिल बीच यह तोलो।। हीरालाल ज्ञानसे गावे । बहिस्त के दर खुलाना ९ Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (९१) ॥ पद-अनित्यता दर्शक ॥ राग-ठुमरी ।। कंहा डोलत अभिमान गुमानी । तेरे सिरपर काल निशानी ॥ कहां ॥ टेर. ।। चहूं गति भटकत शट नर अटकत । जैसे बैल वहे घानी ॥ कहां ।। १ ॥ तन धन जौवन घनजिम छिनछिन । निश भर चपला चमकानी ॥ कहां ॥ २ ॥ पलकमें पलटत जोवन किम टिकत । जैसोपूर चढे पानी ॥ कहां ॥ ३ ॥ मात और तात भ्रात सव सजन । जैसी बाट बटाउवानी ॥ कहां ॥ ४ ॥ कहे हीरालाल दयालू मयालू । पावत अमृत जिनवानी ॥कहां ॥ ५॥ Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (९२) ॥ जक्त जंजाल दर्शक-गजल ॥ इस जक्तके जंजाल म्यान भूलना नहीं। नूर देखर दरपनमें फूलना नहीं ॥टेर ॥ यह संसार हाट घाट जैसा गट है सही। ठग लेत दुनियादारी मीठे बोलतो कही ।इस॥१॥ यह जौबनका जोर शोर इसमे राचना नहीं। __ दया दान मान पान बिन यंही तो गई ॥इस॥२॥ यह साफ दिल रख जाप कीजिये वही । न कीजिये कुसंग घर पारके जई ॥इस ।। ३ ॥ दया पाल पाप टाल ज्ञान रंगमें रही। इम कहे हीरालाल ख्याल मोक्ष का यही ॥इस॥४॥ ॥पद-धारी नहीं होवे ॥ राग-आसावरी ॥ तेरी धारी कैसे घेरेरे । तूतो नाहक भ्रमना करेरे चहावत है संपत तूं संघली। अपनेही काज घरेरे॥ Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (९३) होनहार पदार्थ प्रगटे । तूं क्यों भूला फिरेरे ॥ ते ॥१॥ संभूम चक्री विप्तापाइ । रस रामसे डरेरे ॥ राज लियो छे खंडको सारी । जो वैरीको दूर करेरे ॥ तेरी ॥ २ ॥ कंस कृष्णका झगडा भारी । कैसा दाव धरेरे ॥ फते हुइ मुरारी की सारी | कंस गयो यम घरेरे ॥ ॥ ३ पुफदंत वच्छ राजको डाल्यो । समुद्र जल भरेरे ॥ राजा दशरथ छलवा काजे । राक्षल होंस भरेरे ॥ तं ॥ ४ ॥ अंतर आत्मध्यान लगायां | अपनो काज सरेरे ॥ कहे हीरालाल जहाज जक्तकी । आपोआप तीरेरे ॥ तेरी ॥ ५ ॥ ॥ उपदेशी लावणी छोटी कडी में || यह कंचन वरणी काय पाय सुन प्यारे । पाय नर भवको अवतार जन्म क्यों हारे ॥ टेर. ॥ Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (९४) यह सातो व्यसन संग तजोरे भाइ । जो कुसंगत से लगे दाग तुम तांइ ॥ अब क्यों भूला है भरम मायाके मांइ । तेरा जोबन जोर चला छिन्न मांइ ॥ सकुन तकीये वर उम्मर नहीं पाय दारे॥पाय॥१॥ अब साधूजी महाराज सुनावे जिनवाणी । तुम रखो पक्की परतीत झूठ मत जाणी॥ अब करो सखावत सुपात्र हिये हुल्लसानी । और करो कर्मसे जंग खडे मैदानी ॥ यों करो भक्ति भगवंत की जन्म सुधारे।पाय॥२॥ यह फिरे कालका चक्र खोफ जरा लाना ॥ निज नाम धनीका लगा देना निशाना ॥ मत पीवो मदिरा तजो मांसका खाना ॥ क्यों करते हो परद्वार पर आना जाना । 'मतकरोसोबत जाहिलोकी जन्म बिगारे॥पाय॥३॥ Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ९५ ) यह जीना जिन्दगी तो यही फरज है तुमको | भक्ति प्रभूकी याद करो हर दमको | यह क्रोध मान मद मोह जीतलो मनको ॥ करो ज्ञान ध्यानका युद्ध हटादो यमको । कहे हीरालाल मतपडो भर्म मिटारे ||पाय || ४ || ॥ लावणी उपदेशी - वरोक्त चालमे ॥ तूं क्यों करता है मान । जिन्दगी जीना । तेरा चला जाय जॉवन । पानीका फीना ||ढेर || बडे भूप कही गर्भके अन्दर छाया । होगये दुनिया में जैसे बद्दलकी छाया || चिलका बीजली रेन मे स्वपना आया । क्या लगती है देर झव झवकाया || रावण के मुताबिक ये हुवे नखमीना ॥ तेरा ॥१॥ महलों में होताथा राग चमर लाता । Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (९६) भरा रहता था दरबार पार नहीं आता ॥ दिन रेन विषय में रहते रंगभर राता। ले गया उनको भी काल पार नहीं पाता ॥ धरा रहा उन्होंका ठाठ राजका कीना॥ तेरा ॥२॥ जब उडेहंस समुदरको सूखा देखी। कहा रहा नाम निशान जक्तमें एकी ॥ केइ दुवा तखत मालिक अलीजा लेखी। बने दुर्गतीके मिजमान जो करते सेखी ॥ ऐसे करो अक्कलमें गौर हुवे परवीना ॥तेरा ॥ ३ ॥ यह स्वार्थका संसार लजन परिवारे ॥ ममताकी पोट क्यों धरतें शिर तुम्हारे ॥ सद्गुरुकी सीख तूं मान मानरे प्यारे। यह दया धर्म दिल धार पार उतारे । हीरालाल कहे ऐसे होवो ज्ञानके भीना।।तेरा ॥४॥ Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ९७ ) || प्रभू || ढेर || ॥ प्रभूसे अर्जी ॥ खाजा लेलो खबरिया हमारी रे - देशी ॥ प्रभू सुनो अर्जिया हमारी रे | लेलो २ खबरिया हमारी रे जिनवर के नामसे होत ऋद्धि सिद्धि । पातक दूरकर मुक्तिको लीधी ॥ मिटेगी २ जन्म मरणकी वारी रे || प्रभु ॥ १ ॥ कोड भवांका दुःख मिटे आपके दीदार से | जन्म जरा रोग मिटे किया के उद्धारसे || खुलेगी २ मुक्तिकी वारीरे ॥ प्रभृ ॥ २ ॥ क्रोध मान दोई डोले आपकी फिराक में । लोभ माया दोई छूटे चैतन्यको सुराक में || लुट गये २ जग्त संसारी रे धर्म संग रहे रंग दिलसे विचारी । धन गाजे मोर नाचे ऐसी प्रीती प्यारी || खुलेगी २ अंखियां हमारी रे ॥ प्रभू ॥ ४ ॥ ॥ प्रभु ॥ ३ ॥ Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (९८) आप नामको वश रखो ममताको मारी । हीरालाल सुख चहावे अर्ज तो गुजारी ॥ हटेगीर कुमतिकी नारीरे ॥प्रभू ॥५॥ ॥ लावणी-त्रियाचरित्र ।। चाल-खडी ॥ अमल अकल तुम सुनो चतुरनर । नाशके हुकममें नहीं रहना ॥ तुच्छ बुद्धि त्रियाकेतनमें भेदउलीकोक्यादेना ॥टेर॥ पद्मावती राजा कोणिककी । थी पटरानी नारजी॥ हार हाथी लेनेके वास्ते । कहा जो वारम्बारजी॥ राजाकोणिकने नहीं विचारी। भाईसेकरीतकरारजी। वहेल कुंवर उठ गये विशाला।नाना के दरवारजी॥ जब दोनों राजाके युद्ध हुवा था।शास्त्रमें अधिकारजी॥ हार हाथी हाथ नहीं आया। हुवो घणो संहारजी॥ तजोमानभजोभगवानासुनीयरुज्ञानहियेगहना॥तु१॥ Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (९९) मुनि एवंता आया गोचरी। कंशके महेलां मांयजी।। जीव जमा जर फिर गइ आडी।करीकु बुद्भवतलायजी भाइ तुम्हारा राज करत है। थे डोहलो घरदारजी।। एक मात और तान तुह्माग । कोनलेवेकर्मवटायजी॥ जर मुनीने ज्ञान विचारा । होतब जसा दस्थायजी॥ पुत्र नणंदका होसी सातमाश्ने देसी खूणे बेटायजी।। होनहारनहीमिटेकिसीमानामप्रसकामजलेना।तु.२॥ राजा रावणवी वहिन पापनी।बुरी सीख बतलाइ है। वेट विमाने चले गजबी। सीता लेनेसो आयनी ॥ करी करट सीताको लीथी। लंका. वागमें लायजी॥ हनुमंत उमीनीखवार की है। मीनाकोलच पायजी। गमचन्द्र लस्वारले चरिया। जब रावण वगयजी।। बान्ध लिया परिवार उसीका।वोभी नर्क लिधायजी। ऐसाहालगालुमहुवाहाचरित्रत्रियााक्याकहना।तु३ और सूत्रोंगे ईका वर्णन । रमडो चतुर सुजानजी। Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१००) शामाराणीके कहने सेती।हुवा घणाका घमशानजी। अबला नाम सबलेको जीते।तीन लोक दरम्यानजी। ब्रह्मा विष्णु शंकर इंदर। छत्रपति कौन ज्ञानजी ॥ पुरुष हुवा है पुण्यवंत केई । केई नार्या गुणखानजी।। धर्मध्यान जो करे तपस्या। देवे सूपात्र दानजी ॥ हीरालाल हरदम सुनावे। सुधारस शिक्षावेना ॥तु.४॥ ॥ चरित्रावली॥ -area ॥ भरत बाहूबल चरित्र ।। लावणी-चाल दूणकी ॥ यह दया दान परजाको पूर्ण कीनी । महाराज ऋषभजी संयम लीनोजी॥ दिया भरतेश्वर को राज।। काज आतम को कीनोजी ॥ टेर ॥ यह बाहूबल बलवंतको देश उत्तरमें ।। महाराज। Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १ ० १ ) तख्त सिला एक नगरीजी । और रहे अटाएं पुत्रजनों को दे दी सगरीजी ॥ यह ब्राह्मी सुन्दरी पुत्री आपकी दोई || महाराज || रही वो अकनकं वारीजी । इन के नहीं कर्मका भोग । जाउंजिनकी बलिहारीजी ॥ अव पुण्योदय भरतेश्वर छः खन्ड मांही ॥ महाराज ॥ वेरीको किया आधिनोजी ॥ दिया ॥ १ ॥ यह चक्र रत्न नहीं आवे आपठिकाने || महाराज ।। भाईसे करी तकरारीजी ॥ देखी भरतेश्वरकी खेंच | आदम पे गये पुकारीजी ॥ यह ऋषभदेव उपदेश देइ समझाया || महाराज ॥ अटाणूं कारज सार्याजी || रवा चावल सरदार | बांका तरखार्याजी ॥ नहीं माने आण परवाना परापठाया || महाराज ॥ शैन्य पर हुकमज दीनोजी ॥ दिया ॥ २ ॥ Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १०२ ) यह तीन लक्ष घर पुत्र बाहूबल जाया ||महाराज ॥ केई विद्याधर आयाजी ॥ भिडगया मोरछा रण खेत । हटे नहीं पीछा हटायाजी ॥ जब भरतेश्वरजी चक्रको चाक चलायो || महाराज ॥ चक्र जायफिर २ आवेजी || नहीं चले वंश पर जोर । देवता ऐसा चेतावेजी ॥ एक अनल विद्याधर अनलकी वर्षा की धी ॥ महाराज ॥ चक्र जाइ उत्तमांग लीधोजी ॥ दिया ॥ ३ ॥ जब इन्द्र आय दोनों को यों समझाया ॥ महाराज ॥ किसीको नहीं खपानाजी ॥ तुम करो आपस में युद्ध | जीत होवे बलवानाजी ॥ जब केइ तरहका किया युद्ध नहीं हार्या ॥ महाराज ॥ बाहूबल मूंठ उठाईजी || तब इन्द्र पकड लियो हाथ । सोचो दिलके मांही जी || यह बात हुई नहीं होवे जग के मांही ॥ महाराज || Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१०३) रस ममताको पीनोनी ॥ दियो ।। ४ ।। यों किया लोच सब सोचको अलग हटाया।महाराज। भरतेश्वर मन विचारीजी॥ मत मानोहमारी कहन। भोगवो ऋद्धि तुमारीजी। नहीं माने वाइबल बात के संयम लीनो।।महाराज।। दिलमें आयो अभिमानोजी ।। नहीं पड़े पांव लघुमात । वनमें रह्या घर ध्यानॉजी।। हीरालाल कहे अब करो मोक्षकी करणीमहाराज।। आप छो जानका भीनाजी ॥ दिया ॥ ५ ॥ ॥ लावणी-बावली मुनीको ब्राह्मी सुन्दरी सतियों का सोध ।। बाल वरोक्त ।। यों कहे ऋपभजिन ब्राह्मी सुन्दरी दोई ॥महागज॥ मुनिको जाइ समझावोजी॥ थालीनो संयम भार। मान तो पगे मिटावोजी ॥टेर।। . Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ यह करी बचन प्रमाण आणजिनवरकी।।महाराज॥ वीर के पासे आवेजी ॥ मुनिधों ध्यान अडोलापलक तो नाहीं मिलावेजी॥ थां तजो सभी संसार भार उठायो ॥ महाराज ॥ गज पर कांई चड बेठाजी॥ गया सेल शिखर उतंग । अबे तो आवो हेटाजी। या आत्म करणी करो पार उतरणी ॥ महाराज ॥ सुख मुक्तिका पावोजी ॥ थां ॥ १ ॥ यह कठिन परिसह सह्या वनके मांही ॥महाराज॥ शीत और तापे सुखानाजी ॥ रही वृक्ष लता लपटाय । अंगपर आबका पानाजी।। यों सर्व दिवस विदित ध्यानके मांही ॥ महाराज। अबे तो आवो ठिकानेजी ॥ जब होवेगा कल्याण । केवल ज्ञान उपजे थानेजी ॥ यों करे विनंती लुल २ चरणे लागे ॥ महाराज ॥ Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१०५) प्रभूके पाम सिधावोजी ॥ यां ॥ २ ॥ यह क्रोध मान जो चारों मोक्ष अटकावे॥महाराज। ऐसी या सीख सुनाइजी ।। झट उतर गयो अभिमान । दिल की थी गुमगईजी॥ अब जावू जिनेन्द्र के पास मुनियाँको बंदमहागज।। पांच जब एक उठायोजी ॥ नब ज्योति अधिक उद्योन। ज्ञान केवल प्रगटायोजी।। यह वाहृयल केवली एम कवाया ॥ महागन ॥ सभीमिल महल गावोजी ॥ यां ॥ ३ ॥ यह कियादेव मोहत्सव दुंद भी बाजी ।। महाराज ।। आया समवसरणके माहीजी ॥ श्री आदीनाथ महागज । सभामें दिया फरमाईजी।। यों लक्ष बउरासी पूर्व आउखो मोटो । महागज ।। अटल अविचल पद पायाजी ॥ श्री रत्न चन्दजी महाराजा शिष्यको ज्ञान भणायाजी Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१०६) श्रीजवाहरलालजी महाराजपरमउपकारी।महाराज॥ हीरालाल सब सुख पावोजी ॥ थां ॥ ४ ॥ हरिवंश-चरित्रावली. । ॥ कृष्णलीला-गाफिल मत रेहरे-यह देशी ॥ कन्हैयो रमवाने जावेरे। गोकलमें धूम मचावेरे ॥ कन्हैयो । टेरे ॥ मात यशोदाकी आज्ञा लीनी सब लडकोले सला कनिी ॥ और कन्हैयो भंग भी पीनी । जमनाके घाट पर आवेरे ॥ क ॥ १ ॥ लगी चोट गेंदके जबर । ऊंची गइ असमानके ऊपर । डूब गइ काली द्रोह अन्दर। गवालिये खडे २ दिखलावे ॥ क ॥ २॥ Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १०७ ) कूद पडे कन्हैया दपटी | गेंद लिवी नागने झपटी ॥ कहे नागनी तूं है कपटी | जब नागनी नाग जगावेरे ॥ क || ३ || जागा नाग सहथ पण वाला । किया युद्ध नहीं खाया टाला ॥ नाथा नाग श्रीनंदके लाला | गवाल्या येथे कने आवेरे ॥ क ॥ ४ ॥ महिया वेंचन चली है गुजरी । वक्त हुईथी जब बडी फजरी ॥ हट कर कर मटकी एकरी | ग्वालन कमर से लचकावेरे ॥ क ॥ ५ ॥ कार लोप मत करो कन्हैया | मुफ्त माल मत खावो महिया || कंश भूप की आण मनँया । Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ' (१०८) कहां अपनाही जोर चलावेरे ॥ क ॥ ६ ॥ कौन पुकार सुनेगा इनकी। क्या परवाह है हमको किनकी॥ खबर लूंगा दुश्मन है उनकी । ऐसे मूंछो पर हाथ लगावे ॥ क ॥ ७॥ कहा कहिये सुन मेरी सजनी। नंदके ललवाने घेरी लीनी ॥ जोर जुल्मी हमसे कीनी । ऐसे राह विच लूट मचावे ॥ क ॥ ८॥ खेल ख्याल आया गिरधारी । मात कहे कुरबान तुम्हारी ।। हीरालाल कहे कंश की ढारी। वो ढारी कैसे टरावे ॥ क ॥ ९ ॥ Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १०९ ) || जीव जसाका एवंता ऋपिसे सवाल || नंदा प्रभु जगजीवन अंतरयामी || यह देशी ॥ सुनो देवरजी, संयम छोडी महेल पधारोमहाराजीया || ढेर || मुनिवर आया गोचरी । भोजाइ आडी फीरी ॥ देवरस्यूं करे मरकरी | ये स्वांग धरीने कांड डोलो घरोघरी ॥ सुनो ॥१॥ पाय अगवाणे चालनी । उघाडे मस्तक हालनो ॥ दोष क्यालीस टालनो । ऐसो कष्ट आचार क्यों पालनो ॥ सुनो ॥ २ ॥ जाया एक मातारा | अंतर नहीं कोइ बातांरा | क्षत्री कुल जादू जातांरा । थांके लिख्या लेख हाथ पातरा ॥ सुनो ॥ ३ ॥ मार्गमें ऊभी रही । हाथ दोइ आडा दई ॥ आगे जावां देस्य नहीं । Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (११०) सूतो सिंह जगायो कटुक वचन कही।सुनो ॥४|| चंदन शीतलता सोहवे । अंत मिथ्या अमि होवे। होन हार बुद्धि ढोवे। हीरालाल ज्ञान हृदय जोवे ॥ सुनो ॥ ५॥ एवंता ऋषीका जीव जसासे जवाव-देशी वरोक्त।। सुनोभोजाई,गर्वन कीजो नहींलीजे छेहसाधूतणो॥ सुनो भोजाई, गर्व न कीजे । धन यौवन माया तणो ॥ टेर ॥ तूं बोलेगर्वे घरगुमराई। थारे मानदिशा मनमेंआई। थारी दीसे थोडी ठुकराई। फूल फूले जो जासी कुमलाई ॥ सुनो॥ १ ॥ मन मान्या मङ्गलबधावना।कररह्या सहुआपआपना॥ जो जासे सोही आवना। चलकादार चूडो दीसे पावना ॥ सुनो ॥ २॥ Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १११) गावरमें कीटय निम फूलछोत मानशिवरपर डोले?।। कूला के मंडाने नोले । अधिकारी अविका नर बोले छे ॥ सुनो ॥३॥ यामरना गुंथावे जोनारी । पुत्ररत्नन जणसीयामारी।। मानगो नाम होसी गिरधारी।। चूर्ण बाल धने क.सी दुःखयारी ।। नुनो ॥४॥ सुनजीवजनामनयटकानाको मार्गअलगीसकानी प्रीतम पुकार की आनी। हगलाल गावे मुनिवर वानी ॥ नो॥ ५॥ - ॥जीव जना और कागजात विचार-देशी बोग। सुनोमिनमजी! ना तुम्ागा आया हमयर गाँवरी॥ अगस्तिमजी ! दचन कठिन काहीन । गया पाहा फिर ॥टेर ।। मतामालपमें दसडीकही पानीतरपीआइमनमही।। Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (११२) दे गया सराप जो दुःखदाई। हँ बेठी रही समता लाई ॥ सुनो ॥ १॥ कंथ कहे तूं सुन प्यारी । बात करी अविचारी ॥ भावी बल कोन देवे टारी। सुख पाया जो नरनारी ॥ सुनो ॥ २ ॥ कंश मनमें घणोपस्तानो। निस्तारोहमारे करवानो। सभा करी पण्डित आनो। मिल गयो बातको सब टानो ॥ सुनो ॥३॥ पण्डितनेकहीसमझानी। मुनीवरनेजोकहीथीवानी।। वासब मिल गइ मिलवानी। पुन्यवंत गिरिधारी जन्में आनी ॥ सुनो ॥ ४ ॥ हीरालाल कहे सुनलीजो। विन विचार्यो मतकीजो।। संतोष सभी जीवको दीजो। समता रस प्याला पीजो ॥ सुनो ॥ ५॥ - Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥छे भाइ साधका वर्णन-लावणी चाल लंगडी ।। श्रीनमीनायभगवानपधागभव्यजीवोपेउपकारकरण। भालपुरक वागमे । रच्योदेवता समवसरण ।। टेर॥ नागसेटमानानुलमांके । छे नंदनहुवेअतिगुणवंत।। नलम्बी औपमा । शास्त्रमें भाखी भगवंत ॥ याणीउनीश्रीनेमीनायकी संयमलीनधिगमनखंत ।। मातापाने आयकर । पूछन मुर्दा हुइ मतीयंन । शेर-रेट सेटानी इस वाहामुत्र बलम हाड कंतनी।। बल दीपक चन्द्र जैसा। प्राण जमा अत्यंतनी॥ चारित्रतोअनिदोहिलो । नहींसोहिलोलगारजी।। पष्ट करणी सर्व वरणी। करनो उग्रह विहारजी।। हट-पटु भात कियो उपाय कुंवर नहीं मानी। जब मात पिता इम कहे लगा एक ध्यानी ।। मोय कर संयम लियो प्रभृ पास आनी । वं श्री नेमीनाथके शिष्य उत्तम पट प्रानी ।। uy Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ११२) दे गया सराप जो दुःखदाई। हूं बेठी रही समता लाई ॥ सुनो ॥ १॥ कंथ कहे तूं सुन प्यारी । बात करी अविचारी ॥ भावी बल कोन देवे टारी। सुख पाया जो नरनारी ॥ सुनो ॥ २ ॥ कंश मनमें घणो पस्तानो। निस्तारोहमारेकरवानो॥ सभा करी पण्डित आनो। मिल गयो बातको सब टानो ॥ सुनो ॥३॥ पण्डितनेकहीसमझानी। मुनीवरनेजोकहीथीवानी।। वासब मिल गई मिलवानी। पुन्यवंत गिरिधारी जन्में आनी ॥ सुनो॥ ४ ॥ हीरालाल कहे सुनलीजो। विन विचार्यो मतकीजो।। संतोष सभी जीवको दीजो। समता रस प्याला पीजो ॥ सुनो ॥ ५ ॥ Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ११३ ) 1 ॥ छे भाइ साधूका वर्णन - लावणी चाल लंगडी ॥ श्री नेमीनाथभगवानपधारे। भव्य जीवोपे उपकारकरण । भद्दलपुरकेबाग में । रच्योदेवता समवसरण || टेर ॥ नागसेटमातासुल सांके | छे नंदनहुवे अतिगुणवंत || नलकुंवरकी औपमा । शास्त्र में भाखी भगवंत || वाणी सुनी श्रीनेमीनाथकी। संयम लीनोधरीमनखंत || मातापासे आयकर | पूछत मुर्छा हुइ मतीमंत || शेर - सेठ सेठानी इम कहे। मुझ वलभ होइ इष्ट कंतजी ॥ कुल दीपक चन्द्र जैसा । प्राण जैसा अत्यंतजी | चारित्रतोअतिदोहिलो । नहीं सोहिलो लगारजी ॥ कष्ट करणी सर्व वरणी | करनो उग्रह विहारजी छूट बहु भांत कियो उपाय कुंवर नहीं मानी । जब मात पिता इम कहे लगो एक ध्यानी || मौछव कर संयम लियो प्रभू पास आनी । हुवे श्री नेमीनाथ के शिष्य उत्तम पट प्रानी ॥ Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (११४) मिलत-बेलेरकरेपारनाजिनवरआज्ञाशीशधरण॥भ॥१ द्वारामतिनगरीआयनेमजीविंदनगयेबहतेनरनारा॥ छेभाइयोंकापारनाआया।छटभक्तकियोचोविहार॥ आज्ञामांगीश्रीनेमनाथकी । दोदोमुनिवरहुवेतैयार फिरतार आविया ।देवकी माता के दरवार ।। शेर-मुनियोंको देखआतेहुवे धिन्यगरीबनिवाजजी विनय भक्ति सामे आइ । करत अपना काजजी॥ थालभर मौदककी । प्रति लामिया अणगारजी ॥ शुद्ध आवै दान देता । पामे भवनो पारजी ॥ छूट-मुनिराज अहार बेहरीने पाछा फिरिया । सिंघाडो दूजो आयो थोडिसी विरिया ॥ म्हारा पुण्योदय दो विरिया पगलाकरिया । इम तीजो सिंघाडो देखकर हर्षे भरिया ॥ मिलित-हाथ जोड आडी फिरी रानी। अर्ज करे सुनो भवी वरनन ॥ भदल ॥ २॥ Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ११५ ) बारह योजनकी लम्बी नगरी | नवयोजनचौडीजानी ॥ बलभद्र कृष्णकी जक्तमें । जोडी है अविछल आनी ॥ द्रव्यवंत दातार घणेरा|जिन भक्त सुनता वाणी ॥ मुनिराज को क्यों नहि। मिलियो फिरतो अन्नपाणी।। शेर - देवकीसे मुनिवर कहे | नगरी में बहु दातारजी || तीन सिंघाडाहम आविया | पटभाइएकउणियारजी ।। कोन मात कोनतात थांरा । कोननगरीकोवासजी ॥ भद्दलपुरमें सुलसाजी | नाग शेठ सुत खासजी ॥ छूट - एक एक जणेको बतीस परणाई | वो नार्या कंचन वरणी कमी नहीं कांई ॥ इण भांत ऋद्धि मुनिराज सर्व संभलाई । फिर आया नेमजी पास आज्ञा पाई || मिलत-मुनिराजका वचन सुनकर । राणी आश्चर्य अति करणं || भद्दल || ३ | मुनि एवंता कह्याथा मुझको । अष्टपुत्र पयायति ॥ Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (११६) ऐसा भरतखन्डमें और दूसरी माता जायंति ॥ सात पुत्र पामीन अजुलगाएककृष्णहैदुःखहरणं॥ निर्णयसागर नेमजिन । पासे जाकर करूं निरण।। शेर-रथमें बैठ बंदन गया। लारे घणो परिवारजी। भगवंत संशय टालियो। योतोघणोअधिकारजी।। पुत्र नहीं कोई औरका।यहछेही थाराअंगजातजी॥ पूर्वकी बीती हकीगत । भाखी श्री जगनाथजी॥ छूट-माता सुणी बात हिवडामें हर्ष भरानी । निज नन्दन अपने देखनको हुलसानी ॥ करी सबको बंदना फिर आइ नेमजी पासे । जिनराज बचनको रही हियेमें विमासे ॥ मिलत-मेहलोंके अन्दर आइ देवकी। चिन्ता उपनी चितधरणं ॥ भद्दल ॥ ४ ॥ सात पुत्र मुजअंग ऊपना।एकणकोंनहींहुलराया॥ बालपनाकी बालककी। रमत करी नहीं रमाया ॥ Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (११७) छे पुत्र सुलसाघर वधिया।सोसबजिनवरफरमाया। सोलह वर्ष नंदघर रही । अहीर कृष्ण ये कहवाया। शेर-माताके पांव लागवा। आया कृष्ण महाराजजी। माताकी चिन्ता देखकर। गिरधर हुवा नाराजजी॥ हाथ जोडी मान मोडी । पूछियो विरतंतजी॥ माताने पुत्रके आगे । सबभाखियो अरहंतजी॥ छूट-माताकी चिन्ता मेटी सब गिरधारी । हुवा भ्रात आठमां जगमें बल्लभकारी ॥ महाराज नेमजीकी वाणी सुनी वृत धारी । हीरालाल कहे गजमुनिको वंदन हमारी ॥ मिलत-श्री जवाहरलालजी गुरु देव हमारा । भवसागर तारण तिरणं ॥ भद्दल ॥५॥ - पद-द्रौपदीका सत्य ॥ राजा हूं मैं कौमका ए देशी॥ वचन सुणी नारद तणो । पद्मनाभ भूपाल । Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (११८) विषया सुखके कारणे । लाया द्रौपदी नासा टेर॥१॥ तेलोकर स्मरण कियो । आयो मित्र जो देव ॥ कहे नृप ला देवो द्रौपदी। यही हमारी सेव।। ब २॥ कहे देव सुणो नृपती । तुम कही बात अजोग । पांडव त्यागीपर पुरुषसंगाकदीय न वांछे भोगाव३॥ राजा बात माने नहीं । नहीं नयणोंमें लाज ॥ पलंग उठायोद्रोपदीकोधर्यों बागे महाराज ॥ ब४॥ राजा लेइ परिवारको । आयो द्रोपदी पास ॥ करूं पटराणी माहरी । चालो आप आवास ॥ब ५॥ सुन राजा म्हारी विनंती । मत्त कर खेंचाताण ॥ षट मास लग माहेरी। करले बात प्रमाण ॥ ब ६॥ शोरठ देश दारामति । जहां है हमारे भ्रात ॥ वो आसी वहार माहेरी। ले जासी गृहीहाथ ॥ ब७॥ करी मुमानित नृपती । मेली महेल दरम्यान ॥ वेले२पारना । आयांविल नव पद ध्यान ।। ब ८॥ Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (११९) पांडव पांचो जागिया । खबर करी सब देश ॥ कुंथाजीको भेजिया। श्रीपति जहां नरेश ॥ ब ९ ॥ पाया पत्ता नारदसे । हरी पांडव सब सिंघ ॥ गंगा तटके ऊपरे । लश्कर जेम तरंग ॥ व १०॥ सुर शक्ति समुद्र तीरी । धातकी खन्ड मझार ॥ अमरकंखा कोढा दीवी। पद्मनाभ गयो हार॥११॥ द्रोपदी ले हाथे दिवी । करी दुशमनको घाण ॥ हीरालाल कहे जीतका । घुरिया तुर्त निशाण ॥१२॥ ॥पद-कृष्ण विलाप. राग अलिया मारू मलहार॥ ओजी नीर लावो वीर प्यारा । यातो प्यास लगी परिहारारे ॥ टेर ॥ कर पत्र पात्र जलके कारण । पहोता सरवर पारारे ॥नीर १ ॥ हरी पोढय ओडन पितम्बर । Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १२० ) ॥ नीर २ ॥ ॥ नीर ४ ॥ लावा अंग पसारारे शिक्षा उपर वृक्षको छांयां । पाँव पर पांव उचारारे जरद कुंवर देखी धनुष्य जाण्यो मृग ते वारा रे बांय पग परिहार करी के । जरद कुंवरको निहारारे मुद्रिका जाइ दीजे भुवाने । कीजे सब समीचारा रे ॥ नीर ६ ॥ ले मुद्रिका पाछा फिरिया | ॥ नीर ५ ॥ ॥ नीर ३ ॥ चडायो । पलटी प्रणाम की द्वारारे ॥ नीर ७ ॥ रोश करीने धनुष्य चडायो । हुवा हरीका अंतकारारे ॥ नीर ८ ॥ जल लेइने हलधर आया । भाई से प्रेम अपारा रे ॥ नीर ९ ॥ Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१२१) देवता आइ दिया समझाइ। हलधर लिया संयम भारारे ॥ नीर १० ॥ कहे हीरालाल नेमजीकी वाणी । मिलिया छे तंत सारा रे ॥ नीर ११ ॥ ॥राम-चरित्र॥ सीताहरण-जटाउ ओद्धारा।देसीख्यालकीषटपदी॥ अमरगतपायापंक्षीतिरियोरेसुणी नवकारने ॥७॥ सिंह नादजो सांभली सरे। राम गया झट चाल।। पाछे रावण आवियो सरे । कीधी माया जाल ॥ सीताकोलेचालियोसरो देखी रुप रसालरे |॥१॥ तिहां जटाउ पक्षीयो सरे । रहतो सीता पास ॥ भोलावण राम दे गया सरे । सीताकी सहवास ॥ रीसकरीलारां हुवा सरे।दे रावणको त्रासरे॥॥२॥ वरज्यो तो माने नहीं सरे । पंख छेद दियो डार ॥ Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१२२) हलकर तो करे आत्मा । पक्षी पीड निवार ॥ लक्ष्मण पासेपहोंचियासरे । रामचन्द्रतिणवाररे अ३॥ लक्ष्मण कहे क्यों आविया सरे। कबमें करी अवाज॥ बनमें मेली एकली सरे । कीधो काम अकाज ॥ फिरजावोउतावलासरे।सीतांकनेमहाराजरे ॥॥४॥ सीता जोइ पाइ नहीं सरे । जिहां गयाथा बेठाय ॥ फिरतां तिण बनरे विषे सरे। पक्षी पडियो पाय ।। दयादेखरामचन्द्रजीसरे।श्रीहाथमैलियोउठायरेअ५ सरणो श्री नवकारको सरे । संभलायो तिण वार।। प्राण मुक्त पक्षी जा उपनोसरे । चौथा कल्पमझार॥ कहेहीरालालनवकारंमंत्रसाहुवाघणाउद्धाररे॥॥६॥ ॥सीताजीसे भभीषणकाभाषणलावणी-छोटीकडीमें अपहरी सीता बनवास । राजा रावणको । मेली लंकागढ के बाग । मोज करी मनको ॥ टेर। Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१२३ ) जब लिया सीताजी आप । अविग्रह धारी ॥ आवे राम लक्ष्मणकी खबर । मुझे सुख कारी॥ जव करुंगा भोजन । पियूँगा निर्मल वारी ॥ इम निश्चय कीधो मन । द्रढता धारी ॥ करेनवकरमंत्रकाजापापाप हटायाउनको ॥मेली॥१॥ यह खवर शहरमें हुइ। सभीजन जाणी॥ रावण लायो पर नार । कुबुद्ध उठाणी ।। आयो सीताजी पास । बोले यों वाणी ॥ कोन मात तात घरनार । किसे यहां आणी ।। सीताजाणीपुरुष पुण्यवंताबोलेनरइनको ।।मेली॥२॥ जब मांड हकीगत । सभी हाल सुनाया ॥ राजा रावण छलकरके। मुझे यहां लाया ॥ ___ यह लंका नगरीका । ग्रह जो ऐसा आया । या दश मस्तक रावणके । कातर कहवाया ॥ समझाकर राजा रावनको। भेजादो घरे हमनको मे॥ Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१२४) यों सुना हाल सीताका । भभीषण राजा ॥ इनकी तो बिगडी बुद्ध । सुधारुं काजा ॥ आयो राजा रावणके पास । अर्ज करी ताजा ॥ नहीं दूं सीता इम बोले । छोडकर लाजा॥ वो बनवासी दो जना। फिरत वनवनको ॥ मेली४॥ रावणको गफलत जान । करी होशियारी॥ कौन जाने होनहार । बात कियों गढ त्यारी॥ यह दारु गोला नार। औरभी भारी ॥ सब कोट कोटपर । ओट लगादी सारी॥ हीरालाल कहे योभाइका करण भलपनका॥मेली५॥ भभीषणकीरावणको हितशिक्षा॥लावणी-चाल दूणकी यों अर्ज करे रावणसे भभिषण भाई । महाराज काम विचारके करनाजी ॥ नहीं लगे दुशमनका दाव । Page #145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १२५ ) ॥ टेर ॥ जगतमें सत्यका सरनाजी या रामचन्द्रजीकी नार आप क्यो लाया || महाराज जगत में गुल मचायाजी ॥ परत्रियाके परभाव केइने राज गमायाजी ॥ या जलती गाडर घर वीच कबू नही लानी || महाराज विपतिकी वेल कहवानीजी || या लंका नगरीपर हाथ करो क्यों उत्पात्त उठानीजी ॥ चड आया राम और लक्ष्मण दोनो भाइ || महाराज विश्वास कभी नहीं करनाजी ॥ नहीं १ ॥ ये सुग्रिवादिक केइ भूप संग लाया ॥ महाराज हनुमंत हुवा अगवानीजी ॥ ये पुरिके कंदामै वीर सभी मिलमता टेहरानीजी | राजा सुग्रिव चौकस करी मुलकामें ॥ महाराज रत्न जटी खबर दीधीजी || चोरी कर रावण राज लंकामें ले गया सीधीजी ॥ Page #146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१२६) जब खबर करन हनुमंतको दूत पठायो । महाराज लंकाका किया वेवरनाजी ॥ नहीं २ ॥ अब हंस दीपमें डेरा आकर दीना ॥ महाराज समुद्रको तिरिया पानीजी। आवे लंकाके दरम्यान खबर सब देशमें जानीजी॥ अब दे सीता मुझ हाथ फेर दूं पीछा ॥ महाराज रावणको क्रोधज आयोजी॥ लिया खड्ग हाथपर हाथ भिड गया दोनो रायाजी॥ जब कुंभकरण इन्द्रजीतजी झगडो मिटायो॥ महाराज भभीक्षण गया रामके चरनाजी॥नहीं३॥ या लंकापतकी पदी रावण पाई॥ __ महाराज अक्षुनी तीस लस्कर लेरांजी॥ हुवा रामभक्त अति सक्त लगा दिया तंबूडेराजी॥ यो इन्द्र समान आभिमान रावण चड आयो॥ महाराज युद्धपर रण रंग राताजी ॥ Page #147 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १२७ ) भभीक्षणको रावणके साथ भेज दियाश्रीरघुनाथाजी॥ यह राक्षस वानर मिल सवही चडकर धाया ॥ महाराज भाइ दोइ मदतके करनाजी।। नहीं | या नागफासमें कुंभकरणको रामजी वान्थ्यो । महाराज और सब गक्षस बन्धानाजी ।। किया रामदलने जोर देख रावण घबरानाजी ॥ जब भभिक्षणपर रावण हाथ उठाया ॥ महाराज हवा लक्ष्मण अगवानीजी ॥ किया दोनो भूपने युद्ध । घने घमन्ड गुमानीजी। जब राजा रावणने शक्तिवाण चलायो॥ महाराज पडया जाइ लक्षमण धरणीजी ॥ नहीं५॥ जब आइ विशल्या सती घाव मिटाया ।। महाराज युद्धपर चड़ गया सूराजी॥ बट्ट रुपनी विद्या साध आया रावणभी हजूराजी॥ जव देखवल लक्ष्मणको चक्र चलायो । Page #148 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १२८ ) महाराज चक्र गयो फेरफेरीजी ॥ फेर उसी चकके साथ उनकी हो गइ ढेरीजी || जब लिया राजलंकाका तीन खंड मांही ॥ महाराज हरिलाल कहे जीत के करना जी || नहीं ६ ॥ मंदोदरी राणीकीरावणको हित शिक्षा ॥ आसावरी - राग ॥ पियू अपनासे अर्ज करी रे। प्रेमदाअतिप्रेमभरी रे || टेर || पुरुषोतम श्री रामचन्द्रकी । नारी कायको हरी रे ॥ आफंदवेल घेर मति घालो | सुनतांमें नाथ डरी रे॥ पि१ ॥ तुम घर रमणी है अति सुन्दर। कौनसी चूक परीरे ॥ निजघर संपतिता के विरानी ।ताकीतो भूलखरी रे। पि२॥ सुग्रिवादिक संग मिलायो । मानो उदधि तरी रे ॥ युद्ध करणको आवे लंका। जीतोगा कैसेकरीरे॥पि ३ ॥ कुंभकरण इन्द्रजीत अंगद | जो तुम मदत करी रे ॥ सोतो रामके दलमें बन्धिया।छोडावोनाथखरी रे॥ पि४ | Page #149 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१२९) हाथजोड या अर्ज हमारी ।मानो तो याही घरी रे॥ परत्रियाको पातक मोटो। डालो क्यों न परी रे॥पि५॥ होनहार जैसी बुद्धि आवे । उपजन अंग खरीरे ।। हीरालाल कहे चंदके राहू।कुमतियोंआणफिरी रेपिद ॥रावणको भभीक्षणकी शिखामण।।आसावरी-राग।। तेरी टारी कैसे टरे ।यातो ज्ञानीयोंशाखभरेरे ॥ टेर ॥ पुश्कल वेलां देदेहेला । समझायाही सरेरे ॥ बंधव हमारा प्राणसे प्यारा। ताते पांव परेरे ॥तेरी॥ जो कछु हवा सोतो हुवा । अबही चित्त धरेरे॥ पाछली भूल चेते नरकोई । तो पण काज सरे रे।तेरीर दियां परनारी टले घात थारी। यूं जानत सबके घरेरे॥ यो ऋषिवाणी सुणी अगवाणी।तें क्यों भूल परीते३ युद्धमें शूरा प्राक्रम पूरा । कोइसे ना डरेरे ॥ ठाडे रणखेत तेगवल तोकी । वैरीको प्राण हरे रेशाते? Page #150 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१३०) यो गढ लंका है अति वंका । तोडेगा त्रण परेरे॥ कोटी मणकी सिला उठाई । लक्ष्मण बलसिरी रेते हमतो तुमको देत चेताइ । बारोवार केरीरे ॥ मानो कछू नहीं मानोगे तो।हम है दोष परेशातेरी॥६॥ बुद्धि कुबुद्धि भइ रावणकी । कर्ता वोही भरेरे॥ कहेहीरालाल दयालकीवाणी। पुण्यकीजहाजतिरेरे सीताजीकीखबरहनुमानजीलाये॥राग-आसावरी॥ पवनसुत खबरकरनकोजावे। सीताबैठी कौनस्वभावे॥ सबहीभूपतमिसलतबनाई । हनुमंतकोजोबुलावे ॥ रामकहेतूंजागढलङ्का । संदेसोजायचेतावे | प॥१॥ मुद्रिका मम हाथ जो केरी। हाथो हाथ दिरावे ॥ पाछोवलतोलाजेसेलाणी। हमको अमानत आवे॥पर चरण नमी मुद्रिका लीनी नहीं जरा देर लगावे ॥ महेन्द्र नानासे जंग करीने। तुर्त हीलंका सिधावे॥प३ Page #151 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १३१ ) गुप्त रूप रही उपर सेती । मुद्रिका ताम गिरावे || देखी मुद्रिका सीता पतीकी । हर्प हिये न समावे॥ ४ चिन्ता जाणीने प्रगट हवा | चरणे सीश नमावे || रामलक्ष्मणदोनोहे घणा सुखमें। तुम क्यों आर्तध्यावे ॥१५ कहां लक्ष्मण कहां राम विराजे । कहां पर स्थान लहावे ।। सुग्रिव नृपके काज शुधारी । केकंदा संग मिलावे ॥ ५६ देवो सेलाणी सांची हमको । जलदी वलतो जावे ॥ हीरालाल कहेहोवे नरारा । कार्य पार लगावे ॥ प ७॥ ॥ रामजी की जीत ॥ लावणी-चाल दूणकी ॥ यह अतुल वलीवंत जक्तके मांही | महाराज फते जंग हुवा परवानाजी | सब लिया राज त्रिखन्ड आजघर रंग वधानाजी ॥टेर ॥ यह राजा रावण परलोक हुवा परजामें । महाराज राक्षस मिल भागण लागाजी । Page #152 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१३२) दी धीरज रामचन्द्र रहो आप अपनी जागाजी॥ इन्द्रजीत मेघनाथ को दम दिलासा। महाराज अनुजय कुंभ के करणाजी। बडेरघमन्डी जोधालिया सब रामका सरणाजी॥ यह धैर्य ध्यान संतोष सबही को कीनो। महाराज रावणका किया चलानाजी ॥ सब ॥ १ ॥ यह मंदोदरी प्रमुख हजारो राण्या। महाराज जिनोको ज्ञान बतलाया जी। हुवा शूरामें सरदार युद्ध परकाममें आयाजी ॥ अब करो आण प्रमाण सभी लक्ष्मण की। महाराज आनंद और मङ्गल वरते जी। श्रीधर्मघोष महाराज आयेगढलङ्का विचरतेजी॥ श्रीरामचन्द्र महाराज वांदवा आया। महाराज अनुभव अमृत पाना जी ॥ सब ॥२॥ सब सुणी ज्ञान उपदेश मुनिकी वाणी। Page #153 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१३३ ) ___ महाराज केइ नृप हुवा वेरागी जी। श्री कुंभकरण इन्द्रजीतज मारा था बडभागीजी॥ केइ राण्या प्रमुख संयम मार्ग लीधो । महाराज सत्यका सत्य नही छोडा जी। कियानदीनखदावीचसंथारामुनिनेकर्मको तोडाजी॥ यह दिया गज लंकाका भभिक्षणजीको। महाराज अयुध्या नगरीको आनाजी ।। सब ।।३।। यह दिगविजय कर देश सभीको साधा। महाराज सोलह सहश्र देशा भूप नमायाजी । करीतीनखन्डमें आण अजुदया नगरीको आयाजी।। यह उन्नीसो चौसटके साल चौमासा । महाराज शहर मंदसोर के मांही जी । श्रीजवाहरलालजीमहाराजठाणादशरह्यासुखपाइजी। या जुगल लावणी जयकारणी जगमाही। __ महाराज हीरालाल कोटी महल गवानाजी।।सव।।४।। ARA Page #154 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१३४) ॥सीताजीकी धीज ।। लावणी-खडीराहमे ॥ अमरलोकसेआये विबुद्ध जबासांचझूटकीवादपडी॥ धीजकरणकोअमिकुंडपरासीतासतपर आनखडी। टेर सीता के सिर दोष चडाया ।बात फैलगइ गली गली॥ पडाभरमजब रामचन्द्रको जिकरआइजवचलीचली।। दूधके अंदरनिमकपडेज्यों।दुशमनाईकरीमिलीमिली।। सत्त सहाइ हुवा देवता । फिरतो बनेगा भली भली॥ झेला-जब रामचन्द्रजी हुकम ऐसा देदीना । सीताको करो बनवास खास यह कहना ॥ जब हाथ जोड कहे लक्ष्मणजी यों बेना । होवे सीताका कोइ बाँक मुझे कह देना॥ मिलत-रामचन्द्र चड गये हट्टपर । विप्त सीताके सिर पड़ी ॥ धीज ॥१॥ शाम वैस और शाम रथमें । बेठा सीताको लेगया ॥ नरनारी नगरी के कहते । देखो कैसा जुलम किया। Page #155 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ११५) ऊंचा पहाडझाडीजंगलमे। जहांसीताकोउतारदिया। कहता सारथी सुणोरी माइ । हमने खोटा जन्म लिया। छूट-नवकार मंत्रका जाप लियाहे सरना । सब विघ्न विनाशे दूर सुख के करना ॥ मामाजी सीताके आय लेजाय घरम्याना। हुवे जुगल पुत्र गुणवान योवनमे सोमाना।। मिलत-सजी सवारी अजुध्या उपर गमचंद्रसे आन भिडी ।। धीज ।। २॥ किया युद्ध हटाया लस्कर । रामजी का नहींहाथचले। नेणभूजाफरकणसेजाणा।सजनजनकोइआय मिले।। इत्नेमें कोइ आयसुनावे । सीतासुत अंगजात भले ॥ छुट-लोकीक सुधारन काज के धीज ठेरावे ।। कर उंडा कुन्ड अमिसे पूर्ण भगवे ॥ सीता स्नान कर आले वस्त्र पहर आवे । होवे सील सांच मुज आंच रति नहीं आवे॥ Page #156 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १३६ ) मिलत - सोच नहीं कोई दिलके अन्दर होवे जिसकी गदीर बडी ॥ धीज ॥ ३ ॥ अग्निकुंडका हुवा जलसारा । नरनारी सब देखरा ॥ कुसुमकी वृष्टिकरी देवताः । जयश्कारसुर शब्दकिया || निकलङ्कहुवा तननिर्मल | सकल जहानमें यश लिया || दुर्जन कादिल देखघबराया। सिरमंदा सिर झुकादिया ॥ छूट - यो सील महा सुखकंद विघ्नको टाले I जो पाले निर्मल चित्त रीति से चाले || श्री रत्नचंदजी महाराज कनजेडे वाले । गुरु जवाहर लालजी गुणवंत सुमितीको पाले । मिलत - चौसर के साल भोपाल शहर में हीरालाल गाइ ज्ञान जडी ॥ धीज ॥ ४ ॥ || रामचंद्रजी की मोक्ष || लावणी - चाल दूणकी || उदय पुण्य के जोग चारित्र आवे | Page #157 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१३७) ___ महाराज हरीको विरह क्यों पडताजी। श्रीरामचन्द्रमहाराज संयम भारलेइ विचरताजी॥टेर।। यह सीनाजी भी लिया हे संयम धारी। महागज की है निर्मल करनीजी ॥ हुवा वर्ग बारमे पद ऋद्ध हुइ इन्द्रकी वरनीजी॥ यह अवधि ज्ञान कर भव पाछलो देखे । महाराज रामपि है वनवासेजी। फरी सीतारुप वेक्रिय आया पति रामके पासेजी॥ चा-नाटकगीतवाणित्रवजावे।मुणियांमनउन्मादंउपावे राम ऋपिको बहु ललचावापांवनेवर घुघरीघमकावे॥ मिलन-यह अचल मुनिश्वर रह्या ध्यानके मांही महागज मेरुसम डिगे न डिगताज़ी॥श्रीराम॥१॥ जब किया रूप प्रगट गुन्हा बक्साया । महाराज मुनिजी कम पायाजी । फिर उसीवक्त दम्यान ज्ञान केवल प्रगटायाजी ॥ Page #158 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१३८) यह किया देव मौछव सभीने जाण्या। __ महाराज केवली उपदेश सुणायाजी। सब पाये परमानन्द सितेन्द्र सीस नमायाजी ॥ चौ-मुनिराजकीअमृतवाणी।सुणतांसुखलहेसवप्राणी भवअमिकीझालबुजानीपामेपदअविन्याशीस्थानी॥ मिलत-यह समझाया नरनार धार वृत लीना । महाराज आपकोसरण जो धरताजी ॥श्रीराम॥२॥ जब पूछे सितेंद्रजी आपमुझे बतलावो। महाराज भाइ लक्ष्मण अति प्याराजी।। वो कौनगतिमै वशेकभीनहीं रहता न्याराजी ॥ तब कहे केवली सुनो जिकर तुम उनका । महाराज पंक. प्रभा के माहीजी। निज कृतकर्मके जोग भोगअधोगति पाइजी ॥ चौ-देखनकाजसुरेन्द्रआये।निर्कावासकेदुःखमिटाये॥ दोनो हाथोंमेंधरके उठायोगिरजावेबहुपछतावे ॥ Page #159 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१३९) मिलत-जोबन्धा निकाचित आयुष्य नरककमाही। महाराज कर्ता वोही पाय के भरताजी ॥ श्रीराम॥३॥ यह दिया दम दिलासा मोह वश केइ । महाराज कहो कछू कयो न जावे जी। बडेरमनुष्य और इन्द्र जिनोको भ्रमन करावेजी ॥ फिर रामचन्द्र महाराजको सीस नमाया । महाराज इन्द्र गये आप ठिकाने जी। हुवा रामऋपिश्वर सिद्ध जिनोको जक्त मैं जाने जी॥ चोपाइ-श्रीरत्नचन्द्रजी ज्ञान शिखायो । जवाहरलालजी मुनी गुरुपायो । जिन मार्ग के सरणमें आयो। हीरालाल सदा सुख चहायो । मिलत-यह उन्नीसो चौसट साल भोपालके मांही। महाराज आनंदसदा रहेहै बरताजी।। श्रीराम॥३॥ Page #160 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१४०) ॥श्रेणिक चरित्र ॥ लावणी-चाल दूणकी । श्रीपद्मनाभ महाराज तिर्थकर पहिला । महाराज जीवकी दयाजो पालीजी। कियो धर्मतणो उद्योत हुवा द्रढ समकितधारीजी॥ या राजग्रही नगरीकी महिमा मोटी । महाराज श्रेणिक राजा भूपालाजी। पटराणी चेलणा जाण पुत्र दो हुवा सुकुमालाजी ॥ यह कोणिक कुँवर पुण्यवंत महा तप धारी। महाराज वेहल कुँवर है छोटा जी। याने बख्श दिया महाराज हार हाथी दोई मोटाजी।। छूट-तब कोणिक कँवर के दिलमें आइ । मोकुराज मिले कब करूं मोज मन चाहाई यह कालि कुँवर दशों भ्रात लिया बुलाई । मिसलत करे तुम सुणो सभी एक साई ॥ Page #161 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१४१) मिलत-होतबकी बात है न्यारीजी । कियो ॥१॥ आपहीराजा श्रेणिक को पकडपीजरमैडालो। महाराज राजकी करली पांतीजी। सब कियोवचन प्रमाणहुवाराजाकाघातीजी। एक दिन भूपतिको देखी गफलतमांइ । महाराज दमादम मिलकर आयाजी । दियापकडपिंजरेसिंघजोरनहींचलेचलायाजी॥ छूट-कोणिक कुँवर गादीपर आकर बैठा । माता के पांव पडन को गया था बेटा ॥ माताने आदर नहीं दिया रखदिल सेंढा । धरलियो ध्यान रानीको झुका सिर हेटा ॥ मिलत-कँवर कहे मात हमारीजी ॥ कियो ॥२॥ में राजलियो थाने हर्ष भाव नहीं आयो। महाराज राणी हकीगत सुणावेजी । तेने किया वाप सेवैर मुझे हित कैसे Page #162 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१४२) मैने दिया एकात मेंडाल बाप तुजेलाया। महाराज जिनो किया गत कीधीजी। सुन उतर गइ सबरीस पिछले भवसे लीधीजी॥ छूट-अब तोडूं पीजरा फरसी को हाथ मै झेली। आता देख कौणिक को मुद्रिका मुखमै मेली।। कर पूर्ण आयुष्य नृप गयो नरक मे पहली। चौरासी सहश्र वर्षों की स्थिती भुक्तेली । मिलत-कर्मगत टलेन टालीजी । कियो॥३॥ यह आगमिक काल चौवीसी मांही ।। महाराज होसी जिनपद अवतारीजी । श्री पद्मनाभ महाराज विमल वाहन अस्वारीजी॥ सुरपति सेवानें रहकर राज चलावे महाराज देवसेण नाम कहवासी जी। फिर लेकर संयम भार धर्म मार्ग बतलासीजी॥ Page #163 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१४३ ) छूट-यों केवल ज्ञान पद परमार्थ को पासी । फिर जन्म मरण रोग सोगमे कभी न आसी। हीरालाल कहे गुणवंत तणा गुण गासी। तास घर सदा ऋद्धि सिद्धी मङ्गल वरतासी। मिलत-हवा केइ पर उपकारीजी ॥ कियो॥४॥ ॥कोणिक चेडाका युद्ध-लावणी चाल दूणकी॥ यह अमरपति नरपति खगपति राया महाराज सबी लालचको ध्याताजी परम शांत उपशांत हुवा फिर मुक्तिपाताजी ।टेर। या चंपानगरी वसे लोक धनवंता महाराज कोणिक नृप राज करंदाजी यह वेहल कुँवरको हकहार हाथी मोजयरदाजी ॥ यह जलक्रिडा करणको गंगा जलमांही। __ महाराज वेहल कँवर जव जावेजी। Page #164 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १४४ ) सभ राण्याको परिवार संग लेइ जलमें झुलावेजी ॥ या रामत देखकर लोक करे परसंस्था । महाराज वैरीका दिल घबराताजी || परम ॥ १ ॥ या पद्मावती पटनार राजा कोणिककी महाराज भूपसे कुबुद्ध भिडाइजी ॥ लेबो हार हाथीको मांग जदी अपनी ठकुराइजी . जद वेहल कुँवर पर कोणिक हुकम फरमाया || महाराज कुँवर तो कही नही मानेजी ॥ उठ गया नानाजी के पास कोणिक राजाके छानेजी ॥ जब कोणिक राजाने दो तीन दूत पठाया || महाराज सरण आया नहीं दिलाताजी ॥ परमाश जद रणभूमी पर हुवा भूप एकछा महाराज चेडा नृप बाण चलायाजी । यह काली कुँवर दश भ्रात जिनों का जोर हटाथाजी ॥ जद कोणिक नृपने मदतको देव बोलाया । Page #165 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१४५) महाराज सकेंद्र और चमर इन्द्रांजी। फिर हुवा भारत भरपूर मनुष्यका वृन्द वृन्दांजी। जब चेडा महाराज दिलमें वह घबराया ।। महाराज जवरसे जोर न चलताजी।। परम ।। ३॥ जब भवनपति सुरभवनके अंदर लाया। महाराज करी अणसण सुख पायाजी । ले गया देवता हार, हाथी अनिमें समायाजी ।। यह माया जालका झगडा जगके मांही । महाराज गिणे नहीं कोई सगाइजी । बाप बेटा भाइ परिवार और सब लोग लुगाइजी॥ श्रीजवाहरलालजी महाराजके चरणां मांही।। महाराज हीरालाल ध्यान लगाताजी ॥ परम ॥४॥ ॥ श्रावक वर्ण नाग नतवाकी सझाय ।। आऊखो टूटाने सांधोको नहीं रे ।। यह देशी ।। Page #166 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १४६ ) चेडामहाराजमोटानरपतिरे। पाले जिनधर्मकी आणरे ॥ कोणिकराजछोडी आवियारे। पडगडराजा के खेंचा ताणरे । आठ आगार श्रावक राखियारे । नहीं लोपे जिन धर्मकी आणरे ॥ आज्ञा नं लोपे मालिक जेहनी रें । योही धर्म पायो प्रमाण रे ॥ चेडा ॥ २ ॥ श्रावकवर्ण नाग नतवो रे । राजतणो वो करे काम रे॥ बेलेतो बेलेकरे पारणारे शूरवीर छे प्रमाणरे ॥ चेड | ॥ ३ ॥ चेडामहाराज हुकम दियो रे । शूरसुभटो होवोरे तैयाररें ॥ स्नेहबक्तरप हेरी परवर्या रेवाजिंत्र बाज्यातिणवांररे ॥ चे ४ वर्ण नामा नाग नतवोरे । पारणाको दिन होयरे ॥ छटभक्तका अष्टम कियो रे। पण हुकमनलो प्योकोयरे ॥ चे ५ रथ बैठीने सामे आइयो रे । रणभूमीका अहि ठाणरे । हाथी घोडा नेरथ पालखी रे | भिडगयारानोरानरे॥ चेडा६ ॥ प्रतिपक्षी आयो एक आदमीरे । लियोछेधनुष्यने वाणरे ॥ Page #167 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१४७ ) विनअपराधपहिलानहींहरेकीधोछेयहपरिमाणरे।।७ जामतेवैरीवाणमूकियोरोलागोआणीनागजीकेसाथरे। रीसआणीनेधनुष्यवंचियो अबदेखतूंपुरुषोकाहाथरे एकही बाणेवैरी मरीगयो रोस्थलीनोछेपाछोपलटायरे।। संथारो कियो एकांत जायनेरे । वाण खेचता आयु पूरो थायरे ॥ चेडा ॥९॥ पहिलेस्वर्गमें जाइऊपनारे। आयूष्य पायाचारपलरे।। महाविदेहमांहीजन्मसी।मोक्षजासीमेटीसलाचे१० बालमंत्रीथोएकनागनोरोदेखादेखीराख्याशुद्धभावरे॥ महाविदेहक्षेत्रमाहीजन्मियोरोमोक्षजासीकर्मक्षपायरे॥ संवत उन्नीसो बांसठेरे। वार तिथी शुभ जोगरे । हीरालालगायोरामपुराविपे। सुणजोसहूश्रावकलोगरे ॥ महाशतकजी श्रावककी सझाय ॥ हूंतो वारीहो जिनवर नेमी ॥ यह देशी ।। Page #168 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१४८) यांतोराजग्रहीनगरीभली।तिहांश्रेणिकरायभूपाल ॥ महाशतकनामेंग्रहस्थपतिाघरमेंतरहछेतसनार ॥१॥ श्रावक श्रीरधमानका॥ टेशजाणेजीवादिकनाभेद ॥ क्रोडचौवीसकोपरिग्रहो।राखेमुक्तिजावणकीउम्मेद॥२ रेवंतीनामाभारजा। बारहसोकांकी मारणहार ॥ . मांसतणीअतिलोलपणीमदमस्तथइबिक्राल||श्रा३॥ तिणकालनेतिणसमय । महाशतक कियोसंथार ॥ नारीयानिर्लजपापणी।अणिकेजाग्योकामविका॥४ मस्तककेशजोबिखरिया। दीनोछातीकोपल्लोखोल ॥ बचनविषयराबोलती। निर्लजहुइनिटोला|श्रावक॥५॥ अहो प्रीतममाहेरा । स्वर्गमोक्षकावांछणहार ॥ . छोडोक्रियाकर्मथायरा। सुखभोगवोसंगहमारा|श्रा।।६॥ सुणियावचनघरनास्का । नहींतजीधर्मकीटेक ॥ वारम्वारकह्याथकां। अवधीज्ञानमेलीनोदेख॥श्रा॥७॥ हेभोरेखंती पापणी। दिनसातरह्याथारे और ॥ Page #169 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१४९) लोलुकपहिलीनर्कमें। थारीगतिकर्मकेजोर॥श्रा।८॥ वचनसुणीनेपाछीगइ। तवपधार्याश्रीबृद्धमान ।। गौतमजीनेमोकल्या।सुधारवाश्रावकजीरोध्यान॥श्रा९ मांससंथारेस्वर्गसुधर्मे । चारपल्यआयुष्यरेजोग ॥ श्रावकजीसुखभोगवे।मुक्तिजासीमहाविदेहकेनोग१० गुरुश्रीजवाहरलालजी । ज्ञानध्यानगुणमेंदयाल । हीरालालगायोहर्षस्यूसिंवतउन्नीसोबांसटकेसाल॥११ वासती चंदनवाला चरित्र॥ लावणी-चाल दूणकी ॥ या चंपानगरी दधीवाहन नृप पूत्री। महाराज रुपमैं ज्यों इन्द्राणीजी। हुइमहावीरजीकीआपशिष्यणीप्रथमवखानीजी॥टेर।। यो कोसंबी नगरीको राजा चडकर आयो । महाराज भूपके हुइ लडाइजी। तब दधीवाहन नृप हार गयो जब लूट मचाइजी ।। Page #170 -------------------------------------------------------------------------- ________________ GAU %3D (१५०) एक दुष्ट नर चड गयो मेहलके मांहीं। महाराज पुत्रिमां छिपकर बेठी जी। देखी रुप अनोपम अतुल्य पकड करले गयो सेंठीजी। यह कियाबचन कठोर विषय की वाणी । महाराज रानीजी दिल घबरानी जी॥ हुइ ॥१॥ यह सील भंग भय राणीजी जाणी। महाराज तबही संथारो कीधोजी । फिर काटी दाँतसे जिभ्या देवगति वासो लीघोजी। यों देखके दिल घबरानी चंदनवाला । महाराज पुत्रिया ढलगइ धरणी जी। फिर किया रुदन विलाप कहां गइ मेरी जननी जी। तसदी धैर्य घर पायक अपने लायो । महाराज नारिया कलह करानी जी ॥ हुइ ॥२१. वो बेचन चला बजार राज रंभा को। महाराज लक्ष सोनये देवारी जी। Page #171 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१५१) एक वेश्याले चली मोल सासन देव विप्ती टारीजी।। कोइ सेठजी ले गया मोल पुत्रीकर राखी । महाराज सेठानी जंग मचायो जी। म्हारे छाती उपर शोक सेठ या मोल ले आयाजी।। एक दिन देख अवसर रॉडियो मांथो। महाराज लोह मयी बन्धन वान्धीजी ॥ हुइ ॥३॥ यादी भोयराम डाल तालो जड सेंठो । __ महाराज तीन दिन तेलो ठायो जी। फिर आया सेठ तत्काल सतीको कष्ट मिटायो जी॥ यह खूणे छाजले उडद वाकला लीधा । महाराज देहली उपर बेठी जी। फेर भावे भावना चित संत कोइ आवेतो लेसीजी। श्री महावीर महाराज अविग्रह कीधो । महाराज जोग मिल्या ले अन्न पानीजी ।। हुइ ॥१॥ यह सिद्धार्थ नंद आनन्दे आवता देख्या । Page #172 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१५२) महाराज रोमांचित हिये हुलशानी जी। धन्य घडी धन्य भागआज घर जहाज आनीजी ॥ एक बोल घटतो जान के पाछा फिरीया। महाराज नयण में नीर न पावे जी। फिर गया दीन दयाल सती के आंश्रू आवेजी ॥ जइ लियो पारनो हुइ रत्नकी बर्षा । महाराज इंधवी देव बजाइ जी ॥ हुइ ॥ ५॥ या बात सुनी बाइ मूलां दोड कर आवे । महाराज रत्न कोइ ले नहीं जावे जी । थाने कीधो यो उपकार सती मुख यो फरमावेजी। जब वीर जिनेश्वर केवल ज्ञानज पाया। महाराज सती पण संयम लोधोजी। हुइ छत्रीस सहश्रकी गुरुणीवासमुक्ति में कीघोजी यह उन्नीसो त्रेसठ नीमच के मांही। महाराज आसोज सुदी पूनम चंदाजी। Page #173 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १५३ ) गायो सती तणो सम्बन्ध दिनोदिन आनन्दाजी ॥ श्री जवाहर लालजी महाराज धर्म दीपायो । महाराज हीरालाल विघन हटानीजी || हुई || ६ || || बँकचूल सम्वन्ध || लावणी - चाल दूणकी ॥ यह लिया वृत पच्चखाण को निर्मल पाले । महाराज कष्टमें कभी नही डिगताजी । यावित जायसव दूर मिले सुख सब मन गमताजी || टेर || यह बँकचूल कुँवर हूंता राजाका | महाराज पल्ली में जाकर वसियाजी । हुवा चोरो का सरदार सदा कुकर्म में फसियाजी | एक दिन मार्ग भूल मुनिश्वर आया । महाराज पलीमें चौमासो कीधोजी । मत देना इहां उपदेश मुनिजी मानज लोधी जी ॥ शेर - चतुर्मास पूरा हुवा, मुनिश्वर किया विहारजी । Page #174 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ___ (१५४) पल्लीपतिपहोंचावाचल्यो,अपनीसीमपहिलेपारजी। जबमुनि उपदेशज दिया, शुस कराया चारजी। नमस्कार कर पाछो फिरियो, आयो अपने द्वारजी॥ चो-विनजानाफळनहींखानो।नृपनारकोमाताजानो॥ विनचेतायावैरीनहींहणिये।वायसमांसअभक्षगणिये॥ मिलत-एक दिन चोर संग लेकर धाडे चडियो। महाराज बखीलको रहे न समताजी ॥या ॥१॥ यह प्रति शत्रूके जोर चोर सब भागा। महाराज फिरे वो बनमें भमता जी। . नहीखायाअजान्या फलबकचूलत्यागसेडरताजी॥ और सभी चोरों ने वो फल खाया । महाराज जिनोने प्राण गमायाजी। चल गयाबंक चूल उठ घरे अधरातको आयाजी। शेर-नार सूती पर पुरुष संगे, देख चडीरीस जारजी। वैरीको मारण काजे, खैच कहाढी तरवार जी ।। Page #175 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१५६) टोकर लगा चेतावियो, तेग तोकी तिणवारजी। बहिन उठ आसीस देवे, मैसुणियो श्रृंगार जी॥ चो-सबवातसुणीसुखपायो। बेनपातकाआपबचायो। नटनाटिक करवा आयो । मैतो श्वांग तेरोहीवनायो। मिलत-एक दिन बंकबूल राजके महलों मांही। महाराज चोरीसे चोर नही डरताजी ॥ या ॥२॥ या राणीकी उडगइ नींद चोरको देखा। महाराज रुपमन मोहन गारो जी। कहेललितवचनललनाकोसफलकरआजजमारोजी।। में देवूगा धन माल मान कयो मेरो । महाराज कुंवर को बहू ललचावेजी । नहीं माने कुँवर गुणवंत मात यों कही बतलावेजी॥ शेर-गुप्तपने यो सुण्यो राजा,सभी नारी चरित्रजी। जिनाखोरी नहीं करेचोर,वश कियो अपनो चितजी॥ जवरानी हल्ला किया, पकडा दिया वो चोरजी। Page #176 -------------------------------------------------------------------------- ________________ a (१५६) पूछे राजा बात छानी,नहीं कियो रानीपर घोरजी।। चो-सत्यवादी कुँवरको जानी । लियो कुँवर पणे निजठानी। त्यागतीजातणोफललागो।सत्यराख्याउदयहोवेभागो मिलत-एक दिन बैरीको जीतन काजे राजा। महाराज कुँवरपर हुकमज करतो जी॥ या ॥३॥ जाय अडियो वैर्यासे जल्दीसे उन्हे हटाया। महाराज कुँवरके शस्त्र लागेजी ॥ करोवायस मांसकोअहार ऐसीकहेराजाकेआगेजी। जब राजा कुँवरसे कहे कँवर नहीं माने। महाराज श्रावक जिनदासको तेडीजी । करो श्रावक बचन प्रमाण राजा हट्टलेनो छेडीजी॥ शेर-मार्गमें देखा सेठने, रुदन करे मिलनारजी। सेठ पूछे क्या कारण है, रुदन करो इसवारजी॥ नृप कुंवर तोजीवे नहीं। जो खासे वायस मांसजी॥ Page #177 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१५७) त्याग खन्डयां धर्महारे। यों करती है प्रकाशजी॥ चो-श्रावक कुंवरको आइसेंठो कीधो । कुंवर अणसण पचखी लीधो ॥ स्वर्गबारमें पहोतोसीधोत्याग चारतणोफललीधोजी। मिलत-श्री जवाहरलालजी महाराज तणे प्रसादे। __ महाराज हीरालाल कहे सुमतिके धरताजी|या४॥ ॥ मानतुंग मानवतीकी लावणी ।। चाल-दूणकी। यह एवंती देश उजेनी नामें नगरी । महाराज मानतुंग महीपाल कहवानाजी । त्रियाकीजालका फंद काम अन्धभोगठगानाजी॥टेर॥ एकदिन भूप रजनीका मौका देखी । महाराज शहरमें फिर वो चलकेजी।। चार चतुर कन्या मिल वातां करे हिलमिलकेजी॥ आपारमा आजकी रात व्याव मन्डे कलकोजी। महाराज सासरे वासज लेनोजी। . . T . Page #178 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१५८) यह सासू सुसरा जेठ पतिका कहनमें रहनोजी ॥ दोहा-मानवति एक शेठकी, पुत्री चतुर सुजान। कला चौसट जाने सही, अमर रुप इशान ॥ जो परणो प्रीतम भनी, वरतातूं मुझआन । चार बोल पूरा करूं, तो मानवती मुझमान ॥ 'छूट-चरणोदक पावू बृषभरुप असवारी । करे ऐंठो भोजन सह सो सो गाली हमारी ॥ यह सुनी बात राजाने दिलमें धारी। इसकूँ मै परनूं देखू सभी होशियारी ॥ मिलत-फिर आय राजा प्रधानको तुरत बुलाया। महाराज व्यावकर रंग बधानाजी ॥ त्रिया ॥१॥ एक स्थंभ आवास वास कर मेली । महाराज भूप कहे तूं मुंज नारीजी । थारा बोल्या बोल संभार याद कर बात तूं थारीजी॥ मत छेडो नार नृपती छेह नहीं लीजे। Page #179 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १५९ ) महाराज कागज लिख दीनों डारीजी । मेरे संकटको कर दूर बाप मैं बेटी तुमारीजी || दोहा - कारीगर बुलायने, सुरंग खोदायों एक । मानवतीका मेहलमें, दाखल हुवासो देख || आवे जावे बाप घर, करी जोगनको भेख | राग अलापे शहर में, नर मिल देखे अनेक || छूट-या खवर शहरमे हुड़ जाय राजाको । बुलाव जोगन सुनावो गाना हमको ॥ पांव पडे जोडिया हाथ शरम नहीं उनको । होगया रागवश फिरे मृग ज्यों वनको ॥ मिलत - राजा को वश करलिया सुनावें गाली | महाराज कपटसे भूप छलानाजी ॥ त्रिया ॥ २ ॥ एक दल स्थंभनकी पुत्री रत्नवती नामा | महाराज मानतुंग परणवा जावंजी । जब कहे जोगनसे चलो आपविन नही सुहावजी ॥ Page #180 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१६०) तब कहे जोगन क्याप्रिती तुमसे हमको । महाराज राजा कछु एक न मानी जी। लेचल्योजोगनकोसंगराजा कछूवातनजानीजी॥ दोहा-मार्ग जाता विपिनमें, जोगन गइ तिणवार। रुप करी कुँवरीतणो, हींचे अम्बा डार ॥ बहुत देर हुवां थका, सोधन चल्यो महिपाल । सरवर पाल सहकारने, झूले राज कुँवार ॥ छूट-राजा रुप देख कन्याको विषय ललचायो । भूल गयो जोगन कोध्यान इसीको ध्यायो। सब हाल पूछ नृप व्याव को ढंग ठहरायो । पीवे चरणोदक बैल बनन कोल करायो । मिलत-जब कियो व्याव राजाफिर आगे ध्यायो। महाराज फिरवो जोगनकी मायाजी ॥त्रिया॥३॥ अब आया शहर पाटन जोगन इमबोले । Page #181 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १६१ ) महाराज हमे कुछ शरम जो आतीजी । तुम परणो राजकुँवार हम वनवासको जातीजी ॥ यों करी छल रत्नवती वो पास पहुंची। महाराज कपटसे केइ नहीं लाजेजी । कमानतुंगी दासी आइ तुम मिलन के काजेजी॥ दोहा - परण्यो राजा हर्षसे, आयो आपके ठाम । रत्नवती की गुरुणी हुइ, दियो राजाको आराम || पट मास लग राखियो, ऐंठो खवायो कसार । गर्भ धर्यो सुख भोगतां, निपट कपटकी जार ॥ छूट-जब लावी सेलाणी सच बोल हुवा है पूरा | पियु पहेलां पहुंची नगरी उजैनी सनृरा ॥ आइ पिता आपके घर महल सन्रा । करो महोत्सव सबही प्रगट बताया पूरा ॥ मिलत- एक कागज लिखकर नृप नाम हू " 1 Page #182 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १६२) महाराज हाल सब मांड सुनायाजी॥ त्रिया।।४॥ यों बांची पत्र राजाको रोश भराया। महाराज दुष्ट दुर्बुद्धि नारीजी । या लोक हंसावन बात करी या जक्त मझारीजी॥ कहां गइ जोगनी कहां रत्नवतीकी गुरुणी। महाराज सती प्रपंच लखानाजी। जवली सीखनरनाथ आयानिजआपठिकानेजो ॥ दोहा-राजा मानवतीनिल्या, कहे कुलक्षणीनार॥ गर्भ धर्यों को पुरुषको, थें हंसायो संसार॥ सेलाणी आगे धारी, या मुद्रिका यो हार । जोगन कन्या गुरुणी हुइ, यह कृत मुज भूपाल ॥ छूट-राजमें हुवो आनंद मौछव जो कीधो। मानवतीके जन्म्यो पुत्र नाम ज दीयो । राजा रानी संयम ले स्वर्गको रस्तो लीधो। श्री जवाहरलालजी महाराज सूत्र रस पीधो॥ Page #183 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१६३) मिलत-यह उन्नीसो पेंसट रत्नपुरी मांही महागज-हीरालाल आनन्दे गायाजी ॥ त्रिया॥५॥ ॥ एलची पुत्र चरित्र ।। लावणी-चाल-दूणकी ।। या पूर्व जन्मकी प्रीति रीति या देखो। महाराज मोह कर्म सांग बनायोजी। धनदन सेठको पृत नटवीको देख ललचायोजीगर।। इम कहे सेठजी पूत्रको यों समझाये । महाराज और परणाहूँ नारीजी । मत जावो नटके संग मानलो कही हमारीजी ।। यह कुंवर कबूल नहीं करे सेठ की वानी। महाराज सेट नट पाले आवेजी॥ तुम पुत्रीको परणाय पुत्र मेरे मन भावेजी ॥ जब कहे नट घर रहे जमाई आई । महाराज विद्या सवही सिखलाऊंजीवनदत्त॥१॥ Page #184 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१६४) जब कहे सेठ या बात पुत्र नहीं कीजे। महाराज कुलको लांछन लागेजी। नहीं मानी सेठकी बात उठ कर होगया आगेजी। यों कियो नटको स्वांग ढोल बजावे । महाराज विद्यामें हुवा प्रवीनाजी। बारह बर्ष हुवा नट संग रहे शठ रंगमें भीनाजी॥ एक शहर जबर जो देख ख्याल रचायो।। महाराज वंश चड बाजा बजायाजी॥धनदत्त॥२॥ यह देख रह्या सब लोक ख्याल खिलकतको । महाराज भूपकी निजसं आइजी। नटवी रुपका कूपमें भूप चित गिर्यो जाइजी ॥ नहीं देवू दान गिर पडे नट जो आइ । महाराज नारी में लेस्यूं परणीजी। ऐसी राजा विचारी बात कर्मगती कैसी करणीजी। , नट मांगे दान नृप घात विचारे उनकी । Page #185 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महाराज त्रियासे जग भरमायाजी ॥धनदत्त॥३॥ एक मुनिराज महाराज गोचरी आया। ___ महाराज नटके नजरां पडियाजी। धन्यरमुनि संसार त्याग फिर पार उतरियाजी॥ __ यों भाई भावनां काँका वृन्द उडाया। ___ महाराज ज्ञान केवल पद पायाजी। यह राजादिक सब लोक ज्ञान सुन घणा सुलटायाजी।। श्री रत्नचन्द्रजी महाराज विश्ववदिता । __महाराज जवाहरलालजी यशवंताजी। यांको भाग बडो बलवंत वधे पुन्यवेल अनंताजी॥ यह उन्नीसो त्रेसर नीमचके मांही। महाराज हीरालाल यह गुण गायाजीराधनदत्तट ॥ जंबूकुंवरके स्त्रीयोंसे प्रश्नोत्तर ॥ स्त्रीयों के सवालाघडोम्हाने भरवादो नंदलालाएदेशी Page #186 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१६६) माणीधरसाहिबबोलोहो।थारीअंतरगांठकोखोलो।टेर॥ बेठेपलंगपरथ्यानलगायोआगेनार्यामांड्योरमझोलो? पुत्र्यांपराइपरणीक्योंलाया।याबातहियामेंतोलोमा२॥ सारखासोनेपीयरपाछी।तुमबिननहींकोइओलोमा। यहघरमन्दरसुन्दरनार्यापतीविनपत्नीनिटोलोमा। नरबिननारीरहेसिणगारीकलंकलागेतरुणीकोचोलो५। आपवैरागीकेहमसंगलागीसाथेइलेस्यासंयमअमोलोद कहेहीरालालजंबुफॅवरो।अचलाजिमरहियाअडोलो॥७ जंबूकुंवरका-जबाब ॥ देशी-वरोक्त ॥ कामणम्हारीसंयमलेनोहो।मानोरहमारोयोकहनो। टेरे कहेजंबूकुँवरसुनोसबहीना।झूटासुखमें चितक्योंदेनो जोतुमहमसेराखोस्नेहातोसंसारविषनहींरहनो। का॥२॥ विषयविप्तविटंबनाजानोश्वानजैसानिर्लजक्योंबनो३। कौन मात तात भ्रात संगाती जैसो रजनीको स्व प्रकहनोका ॥४॥ Page #187 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१६७) करीरममतारहेजगभमताजिप्सोभाडेतीभारकोवहनो ५ मुमुणउपदेशसमजगइसारी।मातपिताकेसंगमेलेनो॥६॥ कहेहीगलालसवमहावृत्तधारे । साचोसंघमिल्योसुख जेहनो । कामण ॥ ७॥ ॥सुदर्शनसेठामहला वेठीराणीकमलावती-एदेशी सांभलहो सेठा । संसार जाण्यो सवही स्वार्थी ॥ टेर॥ बोले यो एक सहश्र आठ। जो मार्ग आप आदरो॥ में नहींजास्या वीजी वाटासांभलहोसेठा॥संसार॥१॥ संसारयहस्वपनासारीखोहिमपणलेस्यासंयमभार ॥ डाभरणीजलविन्दवो।आयुष्यधनपरिवारासा॥२॥ स्वार्थी सगा सहु आइ मील्या। धर्म सगो नर जोय॥ अविचलराखांआपांप्रीतडी।जोहममाणसहोय ॥सां३ संगत मिलीआपसारखी । तो यो धर्मको ढंग ।। गजअस्वारीअरूटजोहुवा। कौनकरेऋसभकोसंगासां Page #188 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१६८) नेह निभावण जगमें दोहिलो। धारणो धर्म व्यवहार साधूसतीनवलीसूरमा।यहथोडाहीदीसेसंसाराासां॥५ एहवा जो सजन मिले । नहीं तजिये तेहनो संग॥ भीडपड्यापणभागेनहीं चोलमजीठकोरंगासां॥६॥ आप आपने घर आवियानिज२ पुत्रको बुलाय ॥ भारसोंप्योसबसंसारको।यांकेवैराग्यरह्योघटछाय सां७ सहू मिलि संयम आदयों । अहंत मुनिसुवृत्त पास। दुवादशवर्षवृतपालिया।मनमाहीमुक्तिकीआस॥सांट मास संथारे स्वर्ग सुधर्मे । सेठ सकेंन्द्र पदे होय ॥ पांचसे सामानिक ऊपनासहेश्रनेत्र रह्या जोय।।सा॥ महाविदेहक्षेत्रमेंमुक्तिपामसी।सहूनोएकअधिकार। सूत्रभगवतीमेंभाखियो।सुणियांवरतेमङ्गलाचार सां१० संवत उन्नीसो बरस बांसटे । रामपुरामें अभिराम ॥ गुरुजवाहरलालजीप्रशादथी।हीरालालकरेगुणग्राम११ ॥ इति संपूर्णम् ॥ Page #189 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१६९) ।। अधरवरणोका सवेया ३१॥ अरिहंत ध्यानधर ज्ञानका उद्योत कर । संसार सागर तर ऐसीकरो करनी ॥ गुरुक चरण चित रखिये हरप नित। साधन स्वर्ग गति यह रीत तरनी ॥ दानदया सत्य सील दुर्गतिको दूर ठेल । नुकत्यको सजगेलकष्ट दुःख हरनी ॥ अंतःकरण सेती इंद्रियोंको जीतेजती । हीरालाल कहे सिद्ध गतीकी निसरनी ॥ १ ॥ सुनाहा चतुर नर सुत्तरकी शिक्षा पर। आलमको दूर कर एक चित्त लाइये ॥ किजीये सुकृत्य, नहिं किजीये दुकृत्य संग। साधुसेती एक रंग नित्य गुण गाइये ।। अलिक अदन त्याग हिंस्यासे न कीजे राग । अष्टादशा दुष्ट यांकि संगत न जाइ ये ॥ Page #190 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१७०) कषायको त्याग करे सुद्धलेशा चितधरे । हीरालाल कहे एसे स्थानकको आइये ॥२॥ जगत तारण जिनराज हैखलक जाण । अंनतगुणकी खान त्रिलोक्के धणी है । चौसट इंदर आय चरणे रहे लिपटाय । इन्द्राण्या नृत्य गीत हर्ष चित आणिये ॥ सुर ने असुर नर आते जाते हर्ष धर।। जगतारण जिनेश्वर अक्षय गुण ठाणी है ॥ सिद्धगति दायक नायक सहु साधुनके। हीरालाल कहे आदि अरिहंतको जाणिये.॥३॥ गुरु गुण कथन करत नहि आवे अंत । ज्ञानके सागर संत सदा सुखदाइ है ॥ करत उजास एसे सूर्य आकास तैसे । चंदहै सीतल जैसे तैसे रिख राई है ॥ आछोहि चारित्र देत किधो हे अनंत हेत । Page #191 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१७१) अहोनिश सरण लेत चौरासी घटाई है ।। ऐसा है दयाल दाता करि है अनंत साता। हीरालाल कहे ज्ञाता गुरू गुण गाई है ॥४॥ देखो इस जगत्को झुठकी रचीहे लाल । सांबसे न चाले चाल जगत संसारी है ॥ कूडा जो कलंक देत निंदकहै लाज रहित । दुष्टसेती करे हेत नर्क अधिकारी है । सांचके न आवे ऑव झूट काहा रहे राच । रतन सरिखो काँच करत उजारी है ॥ मुगुण सुजाण नर तुरतहि छाण करे हीरालाल कहै सतगुरु गुण धारी है ॥ ५॥ ।। इति संपूर्णम् ॥ Page #192 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १७२) ॥ सील वृतकी ३२ ऊपमां ॥ दोहा.-सीलरत्न सबसे बडो, सब बरतां सरदार । बत्तीस ऊपमा वर्णवी, प्रश्न व्याकरण मझार. ॥१॥ मन वच काया शुद्ध करी, धारे सीलसुरंग। स्वयंभूरमण दधितिर गयो, रहीतिरणी अवगंगा॥२॥ ॥सवैया ३१॥ जोतषीमें निशाकर आगरमें रत्नांगर । बहु रत्न रत्ना माही मुख्यता बखाणिये ॥ मुगट आभूषणमांही वस्त्र माहेक्षेम जुग्ल । अरि बिंदकुसमामे सुवासित जाणिये ॥ चंदनामे गोशीसक ओषध्यामे हेमवंत । नदीयामें सीतासम ओर नहीं मानिये ॥ Page #193 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १७३ ) 10 11 दधिमे सयंभू रमण रुच कहे गोलाकार | 12 परापत कुंजरामे अग्रेसर टाणिये ॥ १ ॥ १३ tr चोपदामे सिंघ सुरो नागांमांहे धरणीधरो । १५ मावन कुंवार माही वेणुदेव लाइये || 15 १७ कल्प माहे ब्रह्म लोग सभामे सुधमीं जोग । . स्थितिमं लवस्थीती उग सवठसिधमाई यै || १२८ ૨૦ रंगाम किरमचिरंग दानामे अभय अंग | ३१ वज्रऋिषभ संघे में अति अधिकाइये || ટ્ર संाणे चौरसस्थान ज्ञानमे केवल ज्ञान | ૧૪ ध्यानामे सुकल ध्यान निरमल धाइये || २ || * ૨૪ देशामे सुक्ल लेशा मुनियांमे जिनंदजैसा । Page #194 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१७४) २७ क्षेत्रामें विदेह क्षेत्र महत्व बतायाहै ॥ मेरुगिर ऊंच माही नंदन वन बनमाही। जंबु वृक्ष लामाहीं प्रीष्ट कहवायाहै ॥ शेन्यामे चक्रवृती दिपतहै पृथ्वीपती । स्थामाहे हरिरथी अरिको नशाया है ।। हीरालाल कहे सील व्रतयों औपमालहे। तीनो लोक माहींसुर नर गुण गायाहै ॥ ३ ॥ सोवन जडित चूडो रूडोहार मोत्यां तणो। नाक नक वेसर लिलाड टीको भारीहै ॥ कडा तोडा लंगर रमजोर घोर बाजरया । विछिया बीटया अंगोठिया दंत चूंपा न्यारी है ।। कांकणने करमदी गेंद बाजुबंद बिंदी। नोगरि फूलरी काजर टिकी सणगारि है ॥ Page #195 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १७५ ) करनफूल सिसफूल दुलाड तिलडि मुख । हीरालाल कहे सील विन नागी नारी है || ४॥ वस्तर जीरण अंग नही जाने रूप रंग | area नथाके गलामेन तार है || गेणाको नही है जोग नादारथ कहे लोग । लाज काज लिया बैठ रहे घरद्वार है || अपवती विना परपूप नहीं जोवे नेण । बाप बंधु पुत्रवत समझे संसार है || सीलने संतोषवंत दयापारे जीवजंत । हीरालाल कहे चंदसम निर्मल नार हैः ॥ ५॥ असल कनक लवणाइ चतुराई करी । तामेकाहा गुण देखो दिल में विचारी है ॥ तुरंग या गज केरी नकल बनाइ धरी । पुरुष आरूढ नहीं होत असवारी है ।। नृपकी नकल नहीं राजको चलावे काम | Page #196 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१७६ ) सेठकी नकलस्वांग सेटानीन धार है ॥ हीरालाल कहे तोल असलको मोल कोन । नकलीवस्तुको ओर बेचत बजार है ॥ ६ ॥ कासीमें निवास कियो मुढको न खुलियो हियो। सुरज उध्योत भयो अँधके अंधार है ॥ गंगामें न्हिलायां खर तुरंगनीहोत पर । अमृत सुसीच्या नीम मधुना नीहार है । जोगमिल गयो सुध तोही नहीं छाडे रूढ । ज्ञान नहीं पायो मुढ काकी मार है ॥ समुदर माहि पेस प्यासो जो को रहे नर। हीरालाल कहे तेने पडे धिकार है ॥७॥ चोरिको करन चोर चाल्या राते कोही गैर । आया है नगर पोर खातखणे सुररे ॥ सेठानी कहत सुनो सेठ चोर आया पोर । सेठजी कहे तेजाणुं याहि बात पूररे ॥ Page #197 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 7 ((3709)) ६ धन माल लेइ कर चोर चाल्या निज घर । कहे हीरालाल सोतो गया घणी दूरे ॥ जाणुं २ करस्यो चोर माल लेइ गयो । एसो जाण पनो पायो तामे पंडे घूररे ॥ ८ ॥ मैं तो घनो ऊपदेश दियों घनी करी रेश। थने तो न लागे थारा करमाकी गत है || धर्मकी जाण प्रीत जगकी बताइ रीत | मैंतो सब बात कही सांची २ सत है || थारे तो न आस आई मनमेंभी नहीं भाइ । हीरालाल दोष नाहीं थारी याही मत्त है ॥ जैसा पुण्य थारा होसी तैसा आगे आडा आसी । म्हारी गत मैंहीं जाणु थारी याही गत्त है ॥ ९ ॥ मानव जनम वृक्ष काल रूप जाण हाती । • रातदिन रूप मुसा आयु जड काटते है || संसार समान कूप रागद्वेष- अजगर । Page #198 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १७८) कूटुम्ब समान माखा चटा चट काटत है ॥ विद्याधर साधू कहे आवरे नूं दुःखी नर। लालचम पडयो २ हाहा जो करत है ।। हीरालाल कहे मीठा लागा है टिपका मुख । अल्प दिनारो सुख दुःख तो अनंत है ॥ १०॥ ॥ नव रस वर्णन ॥ ॥ दोहा॥ आगम अनुयोग द्वारमें, नव रस रचीत संसार । वरने जिन आगम वीषे. विरला लहे विचार ॥१॥ वीर श्रृंगार अद्भूत रस, रूद्र त्रिवडा इम जाण। विभत हांस कुर्णा कहि, ऊपशांत नव बखाण॥२॥ Page #199 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १७९) ॥ सवैया ३१ ॥ आदिहीमें वीररस दान दिया होवे जस। तपस्या करियांसुकस करे कोइ तनको ॥ निग्रंथ धर्म धीर होवे महा सुरवीर । राज पद त्याग व्रत धारेजके जनको ॥ काम क्रोध मोह प्रीत शत्रु मोटा लिया जीत । वेरिको विनासे तहां धारे वीर मनको ॥ . हीरालाल कहे महावीर सिद्ध नाम एह । घातिक करम क्षय कीधामहाघनको ॥ १॥ बीजो हे अंगार रस ललनाके होतवस । बिलोक विलास लीला रति गुण जाणिये ।। कांकण मोत्याको हार नवा २ सिणगार । अंजन मंजन शुभ गंधादिक आणिये ।। सिंगार वचन वक्त उपजत ऊनमत्त । तरुण पुरुष युवतिके संग गणिये ॥ Page #200 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १८०) नेवरको झणकार धुंघर सबद प्यार। हीरालाल कहे रस सिंगार वखाणिये ॥ २ ॥ अद्भूत रस अपूर्व वस्तु कोइ देख्या सेती। मुख अरू नेनको विकार विकसात है ॥ शुभाशुभ रूप जोवे हर्ष विखवाद होवे । · ताके चित्त माही विकल्प उपजात है ॥ जिन दरसन जिन वाणी अद्भूत रस । सुणिया भविक हर्ष चडत अगात है । हीरालाल कहे अद्भुत रस पियालहे। परम मुगती पंथ सिद्धगति पात है ॥३॥ रुधिरको रस जहां रौद्र प्रणाम जाण । भ्रकुटि लिलाड नेत्र मुखको विकार है । पशु वध परिणाम वैरीको बिनासे ठाम । असुर दानव पर वहे तखार है ॥ - रूधिर प्रणाम सेती विनोको विभंग करे । Page #201 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १८१) गुरु जन त्रिया संग गुढ अतिचार है । हीरालाल कहे एसे रूधिर प्रणाम सेती। आगेही करम घाती होवा जेजेकार हैं ॥ ४ ॥ त्रिवडा ते लज्जा रस संकासे ऊपत भयो। रखे कोइ जाण लियो मम काज करियो । प्रथम संजोग समे रूधिरकों वस्त्र होत । त्रिया भाव केरे काज आगे लेइ धरियो । तथा लज्जा आण वहे पोताकी सैयाको कहे । लोकिक की लाज लहै अकाजपर हरियो । हीरालाल कहे रस पाचमाको अर्थ लहे । मुनी लाजे पापसेती भवदधि तरियो ॥ ५ ॥ विभत्सको रस दूर्गंधसे दुगंछा करे। तीहसे प्रगट भयो वेराग रस भाव है ॥ अशुची अशुध पुदगलको भरियो तन । श्रोतादिक द्वार सब अशुचीकी आव है । Page #202 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १८२ ) ॥ ६ ॥ धन जो वैरागीजन जानलियो एहवो तन । धरियो वेरा मन जिम जल नावहै ॥ संजमको सारजो संसारको उतारे पार । हीरालाल कहे योही तीरणको दावहै हाँसरस उपजत हाँसकी वस्तुको देख्यां । विप्रीत बचन सुण्या आवे हाँसरस है || पुरुष स्त्रीनेो रूप बालबध तरुणीको । अन्यदेस भाखालिंगे हडहड हाँस है || सुता देवर के मुख मोभाइ मंडण कियो । जाग्रत भयासे नार हीहीकार हिंस है || इम अनेक उदारण हाँसरस काज | हीरालाल कहे मुनी मोन भाव वस है ॥ ७ ॥ कलुणिरसकी उतपती हे वियोग संग | नार भरतार पुत्रादिक व्याधि वयाणा || शत्रुभय मन जाणी सकल्प विकल्प आनी | Page #203 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १८३ ) ॥ ८ ॥ आक्रंदादि शब्दनीर झरे जेके नयणा || जिम कोई नारके भरतारको वियोग भयो । अन्य आगल मांड कहे निज दहेणा ॥ हीरालाल कहे सुख भोग हे संतोष जोग । जैनधर्म पाया रोग मिटे करो जयणा क्रोधादिक उपशांत होत है प्रशांतरस | विषय कषाय हिंसा दोषसे नीतियां || कोइक पुरुष मुनीराजको देखीने कहे । सोमद्रष्टी निर्विकार सोवे साधु जतियां || शशी जूं सीतल मुख उपसम रस युक्त । इम गुण करी जुक्त साधु वा कोइ सतीयां ॥ हीरालाल इम कहे अनुयोग द्वार लहे । ताकोही आधार नाम कथनामे कथीया ॥ ९॥ Page #204 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ___ (१८४) अथ पाटावलींना सवइयाः ३१॥ . श्री महावीरजीके पाट परंपरा जान । सुधर्माजी जंबुस्वामी आदि इम जाणिये ॥ प्रभवाजी संभवस्वामी यसोभद्र संभुत विजे। भद्रबाहु स्थूलभद्र अष्टमा बखाणिये ॥ आर्यगीर बलसिंह सोवनस्वामी वीरस्वाभी। छंडिलाजी जीतधर आर्यसमंद आणिये ॥ नीदलने नागहस्ति रेवंतजी सिहगणी। थंडिलाजी हेमवंत नागजीत मानिये ॥१॥ गोविंदस्वामी भूतदीन छोहगणी दुसगणी। देवढगणीक्षमाश्रमण वीरभद्र गाइये ॥ संकरभद्र यसोभद्र विरसेन विरसंग्रामसेन । १७ - २९७० Page #205 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१८५: ), 83 ૩૪ 84 जयसेन हरीसेन जयषेण लाइये ॥ af ३७ ३८ ac जगमाल देवरिख भीमरिख कर्मरिख । ४० ४१ ૪૨ राजरिख देवसेन संकरसेन धाईये ॥ ra ४४ ૪૫ लक्षमिलाभ रामरिख पद्मसुरी पेतालीस । ४ १ ४७ ૪ हरीसेन कूसलदत्त उवणिरिख ठाइये ४९ ५० ૫૧ પર जयसेण विजेरिख देवसेन सुरसेन । ५३ ૫૪ महासुरसेनस्वामी महासेन धारी हैं ।। ५५ EF ५७ ५८ जयराज गजसेन मीश्रसेन विजेसिंह । ॥ २ ॥ ५८. १० ९१ शिवराज लालजीने ज्ञानजीरिख भारी है ॥ FR 13 ६४ ५ भाणोजी रूपजीरिख विजेराज तेजरिख । FF १७ कुवरजीस्वामी के पीछे हरिजी विचारी है ॥ Page #206 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १८६ ) Fe Fa गोधोजीस्वामी गुणवंत परसरामजी पुनवंत । एतेस पाठजाकी गांउ बलिहारी हैं ॥ ३ ॥ ७० ७१ लोकप्णजी म्हारामजी हुवा जग अति नामी । ७२ दोलतरामजीस्वामी गणी गुण धरणं ॥ 193 ७४ लालचंदजी मोटा स्वामी हुकमीचंदजी हुवानामी | ७५ ७१ शिवलालजी शिवगामी उदेचंदजी उदयकर्णं ॥ ७७ &1 चोथमलजी गुणवान श्रीलालजी वर्तमान | ७८ अठतर पाट इम घरो नित चर्णं ॥ कहे हीरालाल गुरु मेरे जवाहरलाल | जिन धर्म प्रतिपाल पारके उतरणं ॥ ४ ॥ 11 8 11 Page #207 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१८७) ॥ वारा भावनाका वर्णव ॥ सवैया ३१ ।। अनित्य असरण संसारने एकंतभाव। पंखि पत पंचमिया भावोनित्य भावना । अशुचिने आश्रव संवर निर्जरा जाण । धर्म भावना चित धरमको लावना ॥ लोगा लोग एकदश बोध दुहा द्वादश । जनम मरण माहीं फेर नही आवना ॥ हीरालाल कहे भव्य भावोरे भावना नित। कर्म खपाइ हित मुगतिको पावना ॥१॥ सुनोहो चतुर नर दुवादश चित धर । भाखी श्री जिनवर ताकी एह रीत है ॥ प्रथम अनित्य तन धनने जोवन पन । कारमो कुटंम्व किम कीजे तहां प्रित है । Page #208 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १८८ ) मंदिर मकान घर द्वारादि अनित्य जान । खानपान वसनजो भुषण में नित हे ॥ कहे हीरालाल याही भावना भरत भाइ । महिलो में केवल पाइ गया ऊंची गत है ॥ २ ॥ असरणको सरनो जिनंद मारग तणो । और नहीं कोई तणो आगम आधार है || मात पिता मिल्या भाई विवध प्रकार आई । आयुष्य के अंत नाही राखे तिण वार है || श्वांसखां कुष्ट आदि देहीमें अनेक केई । सोलस प्रकार, राज रोग अधिकार है ॥ संकट हरण भव दुखको मेटण जण | हीरालाल इम चींत्यो अनाथि अणगार हे || ३ || जोरे जीव ज्ञान नेन विवध विचार वेण । संसार समुद्रफेन भान केसों भलको ॥ लखचोरासि माहीं फंस्यो हे अनंत जाहीं । 1 7 L ~ Page #209 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१८९) ऊंच नीच भयो जैसो चपलाको चलको ॥ वाप मरि पुत्र भयो पुत्रको पुत्र थयो । उलट पुलट जैसो नाटकको खलको । हीरालाल कहे लीनो संजमसु शालिभद्र । तुरत त्यागन कियो नासिकासो मलको ॥ ४ ॥ एकतभावना एका एकीहै चेतन मेरो। कोइ नहीं तेरो देख ज्ञान चित धरणो॥ आवताहि एकाएकी जावत हे एकाएकी। आगम गमन सो तो करमाको करनो ॥ आपही संचित कर्म भोगत है आपो आपी। सुख दुःख निजकृत आपको उधरणो ॥ कहे हीरालाल नमिराज भये ऋषिराज । एकंत विराजीकाज संजमको सरणो. ॥५॥ जैसे निश वासकाज पंखि तरू रया राज। तेसो परिवार मिल्यो जविवहु भांत है । Page #210 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१९०) कोइ तो नर्क कोइ श्वर्ग आगम गम । कोइ तीरीयंच कोइ मनुष्यमे जात है ॥ देहने चैतन्य भेय ताको पण रहे नेह । चय उपचय जेय पुदगलके साथ है ॥ हीरालाल कहे एसी मृगापुत्र महाऋषि । जातीस्मणे ज्ञानवसी फेर नहीं डिगत है ॥ ६॥ असुची या तन सुची मानत मुरख जन ।। करत जतन खिन२ जोय खटको । जबतक देतसाज तबतक करे काज। तानमान रंगराग कर नृत लटको ॥ ऊपर चर्म भूमढक्यो हे अंतर धर्म । विनाहि चैतन्य कहे एकंतमे पटको ।। कहे हीरालाल एसी सनंतकुँवार चक्री । तुरत त्यागन करी राज षटखंडकौः ॥७॥ तन है तलाव जामे आश्रब द्वार पंच । । Page #211 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१९१) आवत करम संच जासे भारी होत है ॥ मिथ्यात्व अव्रत प्रमादने कषाय करी । अशुभ अधवसाय करमाको सोत है ॥ हिंसाझूट आदि विस बोल कह्या आश्रव । ताको जो परहरे कर्म मल्लधोत है ॥ __ कहे हीरालाल ऐसी समुद्रपाल महा ऋषि। __ भाइ हे भावना जैसी पाया धर्म जोतहै ॥ ८॥ समकित आदि वीस वोलको सुलट किया। संवर कोठाम जीयां कर्मकोन्यावहै ॥ रोकदियो आश्रव संमर भावना कर । पाप सब परहर संवुडा केवावे है ॥ जैसे नीरनाव माहीं रोकदियो आवेताही। जैसे वासुदेव दल अरिको नसावे है ॥ हीरालाल कहे कोश मुनि वंद्या सुख लहे । चरण सरण गहे ऊंचिगत जावे है ॥ ९ ॥ Page #212 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१९२) अकाम सकाम दोइ निर्जराका भेद योही। त्रीयंच मनुष्य माहीं सह्या दुःख भारी है ॥ मन बिना सहे दुःख परवसे मरे भुख । तोहि मिल जाय सुख सुरपद धारीहै ॥ अनसण आदि द्वादस भेदे तप करे। ज्ञान सहित काजसरे जांकी रीति न्यारी है ॥ कहे हीरालाल तप करके निहाल लाल। एसी करतुत जाल अर्जुन मारी है ॥ १० ॥ लोक माहि एक जिन धर्म है जहाज जाण । तारण तिरण काज भवजीव दासत्ता॥ चिंतामणी कामधेनु कल्पवृक्ष मानु तेनु । वंछित सुखारो देनु राखे शुद्ध आसत्ता ॥ जिनवर दिनकर मिथ्यात तिमर हर। . केवल ज्ञानधर धर्मका भासत्ता ॥ __ हीरालाल कहे धर्मरूची जिने धर्म रूच्यो। । Page #213 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १९१) दया पाली तोडिया कर्म पाया सुख सास्वता॥१९॥ सात राजू माही ऊर्ध लोक अधो सात राजू। मध्य एक राजद्रीप समुद्र असंख्य है।। कल्पग्रीवेग पंच अनुत्तर सुरवर । सिद्ध ठाम सबपर स्वरूप अलख है ।। व्यंतर भुवनपती सुख देख रह्या अती। सातोही नरकगती महा दुःख रंक हे ।। पट द्रव्य रूप लोक लख्यो शिवराज जोग । हीरालाल कहे जिन वचन निशंक है ॥ १२ ॥ बोध वीज दुर्लभ सुलभ सुर नररिद्ध । कारज सर्व सिद्ध आत्म स्वरूप है । शुद्ध बान समकित चारित्र है यथातथ्य । मिथ्यात भरम चित तिमर निरुप है ॥ किजीये जतन पायो रतन अमोल हाथ। पर वचनाके साप पालिये परूप है ।। Page #214 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १९४) अठाणूं युत प्रति बोध दियो एक सुत । हीरालाल कहे सिद्ध स्वरूप निरूप है ॥ १३ ॥ ॥ गुरू महाराज श्री रत्नचंद्रजीके गुणग्राम-सवैया ।। संवत्त अठारेसौ अठोतर साल माहीं। माघ वदि सातमीको वार मंगलवार है ॥ कनजेडो गाम ठाम पिता दयाचंदजी नाम । ताके पुत्र अभिराम रत्नचंदजी अवतार है ॥ उगणिसौ चवदामें जेष्ट सुदि पंचमिको। सरवाण्या गाम माहीं लीधो संजम भार है ।। सालाने बेनोही दोइ संग मिल्या सुखहोई । जिन धर्म साचो जोइ कीधो-जयजयकार है ॥१॥ समत्त उगणीसो पचासके साल माहीं। , .. दितिया असाढ वदी बीज सुक्रवार है ॥ रजनिके काल माही आयुष्य पूरण करी। .. Page #215 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१९५) आलोइ निंदीयकर गया खेवापार है ॥ पेंतीस वर्ष लग पाल्यो है संजम भार । बहोतर वर्प सव आयुष्य विचार है ॥ कहे हिरालाल घणो कियो उपगार जाण । शिष्यको भणायो ज्ञान ध्यानका भंडार है ॥ २॥ ॥ उपदेशी छप्पय छंद ॥ कियो रूप नरसिंह, द्वारके मुले आयो। महितल मारी लात, नादे अंमर गजायो । धरणी भइ धडधडाट, थरहर धूजण लागा। गढमढ मंदिर कोट, घडडड पडिया भागा ॥ देख अतुल्य वल खलबल्यो, मन विचार इसडोकियो। हीरालाल कहे नृपपझने,सरण सतिकोजायलियो॥१॥ फिरे नंदीको पुर, फिरे सुरो रण चढियो। फिरे मेघ पहल, फिरे गजमदको जटियो । Page #216 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१९६.) फिरे सुर्यको घाम, फिरे चंदाकी छांया। . फिरे ऋतु बिन वृक्ष, फिरे सुख पायां काया ॥, वयवालि वनीता फिरे, फीरे सिंघ अगनी सेडरे। हीरालालकहेएसोपुरूषकाबचनअवलकभीनाफिरे.२ बचन काज श्री हरिश्चंद, राजको छोडि आयो। बचन काज श्रीरामचंद्र, बनवास सिधायो॥ बचन काज श्री लंकापति, राज भवीषणको दीनो। बचन काज श्रीकृष्ण, धावो धात्री खंड कीनो॥ बचन हार मानव बुरो, निपटनी होवे लाज। हीरालाल कहे बचने बंध्या तुरत सुधारे काज ॥३॥ बचने होवे मिलाप, बचने वैर मिटावे। . बचने बधे दोलत, वचने,अमृतरस पावे ॥ .' बचने पामे राज, बचने विद्या बल आवे । वचने शीतल होय, बचने वैराग उपावे ॥ रोग सोग वचने मिटे, गुरु मावित बचने रीजिये। Page #217 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १९७ ) हीरालाल कहे रस वचनको, बुद्धिवंत नर पीजिये. ४ अधिक मात ओर तात, अधिक सुत नार स्नेही । अधिक बंधु परिवार, अधिक सज्जन जन केही ॥ अधिक राजको टाट, पाट पितांमवर गहना । अधिक माल रसाल, अधिक मुख अमृत वयना ॥ अधिक पद भूपत भयो, अधिक रूप रमणी गणो । हीरालाल कहे इस जक्तमें, अधिकधर्म जिनवर तणो. ५ अधिक ज्ञान गुण ध्यान, अधिक तप संजम सूरा । अधिक सील संतोष, अधिक प्राक्रम पूरा ॥ अधिक दया उपदेश, अधिक मुख अमृत वाणी । अधिक कियो उपगार, अधिक जीव यतना जाणी ।। अधिक धिरज धरणी धरा, अधिक तेजदिवाकर जसो। हीरालाल कहे मुनीराजको, अधिकशीतल चंदा असो६ ॥ इति संपूर्णम् ॥ Page #218 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १९८) ॥ पद-श्राविका गुण ॥ ॥ तरकारी लेलो मालनियां . आई बिकानेरकी यह देशी ॥ जी म्हारी बंदना झेलो मैं छु । श्राविका सुंदर शहरकी ॥ टेर ॥ बांध मुपती करूं समाइक, १, राखू पूंजनी आछी। प्रतिक्रमणो बे बिरियां करती, तो मैं श्राविका सांची ॥जी म्हारी ॥१॥ बास वरत मैं करूं तपस्या, नहीं करणीमें काची।। पक्खी पर्वका पौषा करती, तो मैं श्राविका सांची ॥ जी म्हारी ॥२॥ भाणे बैठी भाऊ भावना, सांची दिलमें राची। Page #219 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १९९) स्थानक जाऊं वेगी ऊठने, 'तो में श्राविका सांची ।। जी म्हारी ॥३॥ देव गुरुकी करी ओलखना, धारिया जांची जांची। हिंसा धर्मके संग न जाऊं, तो में श्राविका सांची ॥ जी म्हारी ।। ४ ।। 'हीरालाल' कहे एवी श्राविका, भणी गुणी पुस्तक वांची। विनयवंत गुणवंत कहावे, सोही श्राविका सांची ॥ जी म्हारी ।। ५॥ ॥ कान्फंस वर्णन-ठुमरी. ॥ कान्फ्रेंस महारानी सुंदर,क्यारहुकम फरमावतीहरे॥ भला क्या क्या हुकम फरमावती है रे।। कान्फ्रेंस।।टेर। देशदेशके धार्मिक भाया। उनका मेलमिलावतीहरे।। Page #220 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २००) भला; उनका ।। कान्फ्रेंस ॥ १॥ पातिक प्रांतिक भेज उपदेशक । जयविजय करावती है रे ॥ भला; जय ॥ कान्फ्रेंस ॥२॥ कूकू रिवाज आज तक केइ । उनको दूर हटावती है रे॥ भला; उनको ॥ कान्फ्रेंस ॥३॥ संपतीकरनीविपतीकीहरनीधर्मीकोराजदिलावतो हैरे भला, धर्मी ॥ कान्फ्रेंस ॥ ४॥ जीव दयाका प्रबंध रचावत । सब संघसे भक्ति बढावती हैरे। भला सब कान्फ्रेंस ॥ ५॥ कान्फ्रेंस कानून बतावता लोकिक सुधार करावतीहैरे भला, लोकिक ॥ कान्फ्रेंस ॥ ६ ॥ पुज्य श्री लालजी गुरु जवाहरलालजी, हीरालाल सुमती युगावती हैरे।भला हीरालालाकान्मन्स॥७॥ .. ॥ इति श्री जैन सुबोध रत्नावली समाप्तम् ॥ Page #221 -------------------------------------------------------------------------- _