Book Title: Jain Subodh Ratnavali
Author(s): Hiralal Maharaj
Publisher: Pannalal Jamnalal Ramlal Kimti Haidrabad

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Page 210
________________ (१९०) कोइ तो नर्क कोइ श्वर्ग आगम गम । कोइ तीरीयंच कोइ मनुष्यमे जात है ॥ देहने चैतन्य भेय ताको पण रहे नेह । चय उपचय जेय पुदगलके साथ है ॥ हीरालाल कहे एसी मृगापुत्र महाऋषि । जातीस्मणे ज्ञानवसी फेर नहीं डिगत है ॥ ६॥ असुची या तन सुची मानत मुरख जन ।। करत जतन खिन२ जोय खटको । जबतक देतसाज तबतक करे काज। तानमान रंगराग कर नृत लटको ॥ ऊपर चर्म भूमढक्यो हे अंतर धर्म । विनाहि चैतन्य कहे एकंतमे पटको ।। कहे हीरालाल एसी सनंतकुँवार चक्री । तुरत त्यागन करी राज षटखंडकौः ॥७॥ तन है तलाव जामे आश्रब द्वार पंच । ।

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