Book Title: Jain Subodh Ratnavali
Author(s): Hiralal Maharaj
Publisher: Pannalal Jamnalal Ramlal Kimti Haidrabad

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Page 218
________________ ( १९८) ॥ पद-श्राविका गुण ॥ ॥ तरकारी लेलो मालनियां . आई बिकानेरकी यह देशी ॥ जी म्हारी बंदना झेलो मैं छु । श्राविका सुंदर शहरकी ॥ टेर ॥ बांध मुपती करूं समाइक, १, राखू पूंजनी आछी। प्रतिक्रमणो बे बिरियां करती, तो मैं श्राविका सांची ॥जी म्हारी ॥१॥ बास वरत मैं करूं तपस्या, नहीं करणीमें काची।। पक्खी पर्वका पौषा करती, तो मैं श्राविका सांची ॥ जी म्हारी ॥२॥ भाणे बैठी भाऊ भावना, सांची दिलमें राची।

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